"करवा चौथ": अवतरणों में अंतर

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|उद्देश्य = सौभाग्य
|आरम्भ =
|तिथि = कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुथीचतुर्थी
|दीर्घ-प्रकार =
|तारीख़ =
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|अनुष्ठान =
|उत्सव =
|समान पर्व= होई अष्टमी, तीज
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}}
 
'''करवा चौथ''' हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है.है। यह [[भारत]] के [[पंजाब]], [[उत्तर प्रदेश]], [[मध्य प्रदेश]], और [[राजस्थान]] का पर्व है.है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुथीचतुर्थी मेंको मानायामनाया जाता है.है। यह पवॅपर्व सौभाग्यवती स्त्रियोंस्त्रियाँ मनाती मानातीहैं। है.यह वत्तॅव्रत्त सुबह सूयोदय से पहले करीब ४ बजे के बाद शुरू हो कर रात में चंद्रमा दशॅनदर्शन के बाद संपूणॅसंपूर्ण होता है.है।
 
करवाचौथ भारतीय नारी कासर्वाधिकमहत्वपूर्ण व्रत है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाएंमहिलाओं तक सभी नारियांनारियाँ करवाचौथ का व्रत बडीबडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत काíतक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदयव्यापिनीचतुर्थीचन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्यदेनेअ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सवज्यादातरव्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहाररहकरनिराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
 
==व्रत==
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यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।
 
 
== व्रत की विधि ==
 
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस दिन प्रातः स्नान करके अपने सुहाग (पति) की आयु, आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहें।
 
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पति की माता (अर्थात अपनी सासूजी) को उपरोक्त रूप से अर्पित एक लोटा, वस्त्र व विशेष करवा भेंट कर आशीर्वाद लें। यदि वे जीवित न हों तो उनके तुल्य किसी अन्य स्त्री को भेंट करें। इसके पश्चात स्वयं व परिवार के अन्य सदस्य भोजन करें।
 
==कथा==
===प्रथम कथा===