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उपाय के सफल न होने पर जो कुछ किया जाना चाहिए, उसे '''अपाय''' कहा गया है। कहा गया है- 'उपायं चिन्तयन् प्राज्ञः अपायं अपि चिन्तयेत्' (विचारवान पुरुष जब उपाय सोचे उसी समय यह भी सोचना चाहिए कि उपायों के काम न करने पर क्या किया जाएगा।)
 
राजशास्त्र प्रेणताओं ने प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में राजा की सफलता एवं राज्य में शान्ति के लिए चार प्रकार के उपायों साम, दाम, भेद और दण्ड का उल्लेख किया है। इसलिए प्रत्येक शासक को प्रजा पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए तथा राज्य की सीमाओं में वृद्धि के लिए इन चार उपायों में से किसी का आश्रय लेना चाहिए। [[रामायण]] में इन चार उपायों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि इन चार नीतियों पर भली-भाँति विचार कर कार्य करने से सम्यक् पूर्वक राज्य चलाया जा सकता है।<ref>रामायण, २/७३/१७ ; ४/५४/६; ५/४१/२; २/१००/६८</ref> [[महाभारत]] में अनेक स्थानों पर चार प्रकार के उपायों का वर्णन किया गया है।<ref>महाभारत भीष्मपर्व, ९/७३/७५ ; शान्तिपर्व १०३/३६-३७ ; भीष्मपर्व ९/७३-७५</ref> महाभारत के अनुसार जैसे कुत्ते मांस के टुकड़े के लिए परस्पर लड़ते और एक दूसरे को नोंचते है उसी प्रकार लोग वसुधा को भोगने की इच्छा रखकर आपस में लड़ते और लूटमार करते है किन्तु आज तक किसी को अपनी कामनाओं की तृप्ति नहीं हुई। इस अतृप्ति के कारण ही लोग चार उपायों का सहारा लेकर पृथ्वी पर अधिकार करने का प्रयत्न करते हैं। [[मौर्य राजवंश|मौर्यकालीन]] ग्रन्थ [[चाणक्य|कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)|अर्थशास्त्र]] में भी साम, दाम, भेद, दण्ड इन चार उपायों का वर्णन किया गया है।<ref>अर्थशास्त्र ९/३/७</ref> [[शुक्राचार्य]] ने अपने [[शुक्रनीति]] में इन्हीं चार प्रकार के उपायों को शासक की सफलता के लिए आवश्यक बताया है।<ref>शुक्र्रनीति ४/१/२३-२८</ref> [[खारवेल]] के [[हाथीगुम्फा शिलालेख|हाथी गुफा]] अभिलेख में, जो ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी का माना जाता है, साम, दाम, भेद और दण्ड द्वारा विजय प्राप्त करने का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त [[मत्स्य पुराण|मत्स्यपुराण]],<ref>मत्स्यपुराण २२२/२</ref> [[अग्निपुराण]],<ref>अग्निपुराण २२६/५-६</ref> [[देवगुरु बृहस्पति|वृहस्पतिसूत्र]]<ref>वृहस्पतिसूत्र ५/१,३</ref> एवं [[विष्णुधर्मोत्तर पुराण]] में सात प्रकार की नीतियों का वर्णन मिलता है, जो एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं। केवल [[विष्णु पुराण]] में उर्पयुक्त चार प्रकार के उपायों का वर्णन मिलता हैं। [[कामन्दकीय नीतिसार|कामन्दक]] के [[कामन्दकीय नीतिसार|नीतिसार]] में सात प्रकार के उपायों साम, दाम, दण्ड, भेद, माया, उपेक्षा और इन्द्रजाल का उल्लेख मिलता हैं।<ref>कामन्दक नीतिसार १७/३</ref> इस प्रकार स्पष्ट होता है कि साम, दाम, भेद और दण्ड का उल्लेखाउल्लेख लगभग सभी प्राचीन ग्रन्थों में सामान्य रूप से किया गया हैं।
 
==सन्दर्भ==