"मेगस्थनीज": अवतरणों में अंतर

64 द्वार और 570 दुर्ग
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[[चित्र:Chandragupt maurya Birla mandir 6 dec 2009 (31).JPG|अंगूठाकार|मेगस्थनीज यूनान का एक राजदूत था जो [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के दरबार में आया था।]]
'''मेगस्थनीज''' (Megasthenes / Μεγασθένης, 304 ईसापूर्व - 299 ईसा पूर्व) [[यूनान]] का एक राजदूत था जो [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के दरबार में आया था। [[यूनाना|यूनानी]] सामंत सिल्यूकस [[भारत]] में फिर राज्यविस्तार की इच्छा से 305 ई. पू. भारत पर आक्रमण किया था किंतु उसे संधि करने पर विवश होना पड़ा था। संधि के अनुसार मेगस्थनीज नाम का राजदूत चंद्रगुप्त के दरबार में आया था। वह कई वर्षों तक चंद्रगुप्त के दरबार में रहा। उसने जो कुछ भारत में देखा, उसका वर्णन उसने "[[इण्डिका (मेगस्थनीज द्वारा रचित पुस्तक)|इंडिका]]" नामक पुस्तक<ref name="Internet Archive 2016">{{cite web | title=Full text of "Indika. The Country and the People of India and Ceylon" | website=Internet Archive | date=23 अक्टूबर 2016 | url=https://archive.org/stream/DKC0054/DKC_0054_djvu.txt | language = en | accessdate=22 जनवरी 2018}}</ref> में किया है। मेगास्थनीज के इंडिका बुक का प्रमाण माने तो बुद्ध एक काल्पनिक व्यक्ति है क्योंकि मेगास्थनीज ने अपने पुस्तक में कहीं भी बौद्ध धम्म के बारे में कोई वर्णन नहीं किया है। मेगस्थनीज ने [[पाटलिपुत्र]] का बहुत ही सुंदर और विस्तृत वर्णन किया है। वह लिखता है कि भारत का सबसे बड़ा नगर पाटलिपुत्र है। यह नगर [[गंगा नदी|गंगा]] और [[सोन नदी|सोन]] के संगम पर बसा है। इसकी लंबाई साढ़े नौ मील और चौड़ाई पौने दो मील है। नगर के चारों ओर एक दीवार है जिसमें 64 फाटकद्वार और 570 दुर्ग बने हैं। नगर के अधिकांश मकान लकड़ी के बने हैं।
 
मेगस्थनीज ने लिखा है कि सेना के छोटे बड़े सैनिकों को राजकोष से नकद वेतन दिया जाता था। सेना के काम और प्रबंध में राजा स्वयं दिलचस्पी लेता था। रणक्षेत्रों में वे शिविरों में रहते थे और सेवा और सहायता के लिए राज्य से उन्हें नौकर भी दिए जाते थे।