"पेशवा": अवतरणों में अंतर

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(बालाजी विश्वनाथ की पत्नी का नाम राधा बाई था। उनके दो पुत्र एवं दो कन्याएँ थीं। उनके पुत्र-पुत्रियों के नाम हैं: बाजीराव जो उनके पश्चात पेशवा बने और चिमनाजी अप्पा। दो पुत्रिया भी थीं उनके नाम भयू बाई साहिब और अनु बाई साहिब।)
 
==पवन बाजीराव प्रथम ==
'''{{मुख्य|बाजीराव प्रथम}}'''
जन्म १७०० ई. : मृत्यु१७४०। जब महाराज शाहू ने १७२० में बालाजी विश्वनाथ के मृत्यूपरांत उसके १९ वर्षीय ज्येष्ठपुत्र बाजीराव को पेशवा नियुक्त किया तो पेशवा पद वंशपरंपरागत बन गया। अल्पव्यस्क होते हुए भी बाजीराव ने असाधारण योग्यता प्रदर्शित की। उनका व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली था; तथा उनमें जन्मजात नेतृत्वशक्ति थी। अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से, तथा प्रतिभासंपन्न अनुज चिमाजी अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान् बना दिया। शकरलखेडला (Shakarkhedla) में श्रीमंत बाजीराव ने मुबारिज़खाँ को परास्त किया। (१७२४)। मालवा तथा कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया (१७२४-२६)। पालखेड़ में महाराष्ट्र के परम शत्रु निजामउलमुल्क को पराजित कर (१७२८) उससे चौथ तथा सरदेशमुखी वसूली। फिर मालवा और बुंदेलखंड पर आक्रमण कर मुगल सेनानायक गिरधरबहादुर तथा दयाबहादुर पर विजय प्राप्त की (१७२८)। तदनंतर मुहम्मद खाँ बंगश (Bangash) को परास्त किया (१७२९)। दभोई में त्रिंबकराव को नतमस्तक कर (१७३१) उन्होंने आंतरिक विरोध का दमन किया। सीदी, आँग्रिया तथा पुर्तगालियों को भी विजित किया। दिल्ली का अभियान (१७३७) उनकी सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था। उसी वर्ष भोपाल में उन्होंने फिरसे निजाम को पराजय दी। अंतत: १७३९ में उन्होनें नासिरजंग पर विजय प्राप्त की। अपने यशोसूर्य के मध्याह्नकाल में ही २८ अप्रैल १७४० को अचानक रोग के कारण श्रीमंत बाजीराव की असामयिक मृत्यु हुई। मस्तानी नामक मुसलमान स्त्री से उनके संबंध के प्रति विरोधप्रदर्शन के कारण उनके अंतिम दिन क्लेशमय बीते। उनके निरंतर अभियानों के परिणामस्वरूप निस्संदेह, मराठा शासन को अत्यधिक भार वहन करना पड़ा, मराठा साम्राज्य सीमातीत विस्तृत होने के कारण असंगठित रह गया, मराठा संघ में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ प्रस्फुटित हुईं, तथा मराठा सेनाएँ विजित प्रदेशों में असंतुष्टिकारक प्रमाणित हुईं; तथापि श्रीमंत बाजीराव की लौह लेखनी ने निश्चय ही मराठा-इतिहास का गौरवपूर्ण परिच्छेद रचा।
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जन्म, १७८४ ई. : मृत्यु १८३०। माधवराव द्वितीय की आकस्मिक मृत्यु के बाद महाराष्ट्र में अव्यवस्था तीव्रतर हो उठी। प्राय: सात महीने तक उत्तराधिकारी का प्रश्न समस्या बना रहा। माधवराव के निस्संतान होने के कारण वास्तव में राज्याधिकार राघोबा के ज्येष्ठ पुत्र बाजीराव द्वितीय का था। किंतु नाना फड़नवीस उसके विपक्ष मे था। अत: नाना ने बाजीराव के अनुज चिमनाजी को उसकी अस्वीकृति पर भी पदासीन करने का निश्चय किया। उसकी नियुक्ति वैध ठहरने के लिये प्रथमत: उसे माधवराव की विधवा यशोदाबाई से गोद लिवाया गया (२५ मई १७९६)। तदनंतर २ जून को उसका पदारोहण हुआ। किंतु तत्काल ही आंतरिक विग्रह से प्रभावित हो नाना फड़नवीस ने बाजीराव के पक्ष में तथा चिमनाजी के विरुद्ध षड्यंत्र आयोजित किया। फलत: चिमनाजी बंदी हुआ, बाजीराव पेशवा नियुक्त हुआ। (६ दिसम्बर १७९६)। अंतिम आँग्ल-मराठा-युद्ध की समाप्ति पर जब बाजीराव ने अंग्रेजों के सम्मुख आत्मसमर्पण किया, चिमनाजी बनारस जाकर रहने लगा, जहाँ १८३० में उसकी मृत्यु हो गई।
 
== सोनू बाजीराव द्वितीय ==
'''{{मुख्य|बाजीराव द्वितीय}}'''
जन्म १७७५ ई. : मृत्यु १८५१। रघुनाथराव तथा मराठा दरबार के अभिभावक नाना फड़णवीस में तीव्र मनोमालिन्य था। अत: माधवराव द्वितीय की मृत्यु पर नाना ने बाजीराव की अपेक्षा उसके अनुज चिमनाजी अप्पा को पेशवा घोषित किया (२ जून १७९६) किंतु आंतरिक दाँव पेचों से प्रभावित हो, नाना ने तुरंत ही चिमनाजी को पदच्युत कर बाजीराव को पेशवा घोषित किया। (६ दिसम्बर १७९६)। बाजीराव का अधिकांश जीवन बंदीगृह में व्यतीत होने के कारण उसकी शिक्षा दीक्षा नितांत अधूरी रही। उसकी प्रकृति भी कटु और विकृत हो गई। अयोग्य तथा अनुभवहीन होने के अतिरिक्त वह स्वभाव से दुर्मति तथा विश्ववासघाती था। अपने उपकारी नाना के विरुद्ध षड्यंत्र रचकर उसने उसके अंतिम दिवस कष्टप्रद कर दिए। १८०० में नाना की मृत्यु से बाजीराव पर रहा-सहा नियंत्रण हट जाने पर बाजीराव के दुर्व्यवहार तथा महाराष्ट्र की विच्छृंखला में वृद्धि होने लगी। पेशवा द्वारा विठोजी होल्कर की हत्या (१८०१) ने यशवंतराव होल्कर को पेशवा कर आक्रमण करने के लिये उत्तेजित किया। पेशवा तथा सिंधिया की पराजय हुई। पेशवा की अँगरेजों से बेसीन की संधि (१८०२) के उपरांत बाजीराव पुन: पुणे पहुंचा। इसी क्रम में [[द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध]] छिड़ गया। परिणामस्वरूप बाजीराव को अँगरेजों का प्रभुत्व स्वीकार करना पड़ा, तथा महाराष्ट्र की स्वतंत्रता भी समाप्त हो गई। अंतिम आँग्ल-मराठा-युद्ध में अँगरेजों ने पुन: बाजीराव को संधि के लिये विवश किया (५ नवम्बर १८१७) जिससे उसे मराठा संघ पर अपना राज्यअधिकार त्यक्त करना पड़ा। अंतत: युद्ध की समाप्ति पर मराठा साम्राज्य ही अँग्रेजों के अधिकार में हो गया। बाजीराव अँगरेजों की पेंशन ग्रहण कर विठूर (उत्तर प्रदेश) जाकर निवास करने लगा।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/पेशवा" से प्राप्त