"सुग्रीव": अवतरणों में अंतर

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[[दुंदुभि]] के बड़े भाई [[मायावी]] की बालि से किसी स्त्री को लेकर बड़ी पुरानी शत्रुता थी। मायावी एक रात किष्किन्धा आया और बालि को द्वंद्व के लिए ललकारा। ललकार स्वीकार कर बालि उस असुर के पीछे भागा। साथ में सुग्रीव भी उसके साथ था। भय के कारण भागते हुये मायावी ज़मीन के नीचे बनी एक कन्दरा में घुस गया। बालि भी उसके पीछे-पीछे गया। जाने से पहले उसने सुग्रीव को यह आदेश दिया कि जब तक वह मायावी का वध करके लौटकर नहीं आता, तब तक सुग्रीव उस कन्दरा के मुहाने पर खड़ा होकर पहरा दे। एक वर्ष से अधिक अन्तराल के पश्चात कन्दरा के मुहाने से रक्त बहता हुआ बाहर आया। सुग्रीव ने असुर की चीत्कार तो सुनी परन्तु बालि की नहीं। यह समझकर कि उसका अग्रज रण में मारा गया, सुग्रीव ने उस कन्दरा के मुँह को एक शिला से बन्द कर दिया और वापस किष्किन्धा आ गया जहाँ उसने यह समाचार सबको सुनाया।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga9/kishkindha_9_prose.htm| title = मायावी का वध| accessdate = 2012-05-01| archive-url = https://web.archive.org/web/20090921040224/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga9/kishkindha_9_prose.htm| archive-date = 21 सितंबर 2009| url-status = dead}}</ref> मंत्रियों ने सलाह कर सुग्रीव का राज्याभिषेक कर दिया। कुछ समय पश्चात बालि प्रकट हुआ और अपने अनुज को राजा देख बहुत कुपित हुआ। सुग्रीव ने उसे समझाने का भरसक प्रयत्न किया परन्तु बालि ने उसकी एक न सुनी और सुग्रीव के राज्य तथा पत्नी [[रूमा]] को हड़पकर उसे देश-निकाला दे दिया। डर के कारण सुग्रीव ने ऋष्यमूक पर्वत में शरण ली जहाँ शाप के कारण बालि नहीं जा सकता था। यहीं सुग्रीव का मिलाप [[हनुमान]] के कारण राम से हुआ।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga10/kishkindha_10_prose.htm| title = सुग्रीव से वैर| accessdate = 2012-05-01| archive-url = https://web.archive.org/web/20120217115123/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga10/kishkindha_10_prose.htm| archive-date = 17 फ़रवरी 2012| url-status = dead}}</ref>
 
== सुग्रीव-वालिबालि द्वंद्व ==
राम के यह आश्वासन देने पर कि राम स्वयं वालिबालि का वध करेंगे, सुग्रीव ने वालि को ललकारा। वालिबालि ललकार सुनकर बाहर आया। दोनों में घमासान युद्ध हुआ, परंतु दोनो भाइयों की मुख तथा देह रचना समान थी, इसलिए राम ने असमंजस के कारण अपना बाण नहीं चलाया। अंततः वालिबालि ने सुग्रीव को बुरी तरह परास्त करके दूर खदेड़ दिया। सुग्रीव निराश होकर फिर राम के पास आ गया।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga12/kishkindha_12_prose.htm| title = सुग्रीव-वालि प्रथम द्वंद्व| accessdate = 2012-05-01| archive-url = https://web.archive.org/web/20120217115255/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga12/kishkindha_12_prose.htm| archive-date = 17 फ़रवरी 2012| url-status = dead}}</ref> राम ने इस बार [[लक्ष्मण]] से सुग्रीव के गले में माला पहनाने को कहा जिससे वह द्वंद्व के दौरान सुग्रीव को पहचानने में ग़लती नहीं करेंगे और सुग्रीव से वालिबालि को पुन: ललकारने को कहा। हताश सुग्रीव फिर से किष्किन्धा के द्वार की ओर वालिबालि को ललकारने के लिए चल पड़ा। जब वालिबालि ने दोबारा सुग्रीव की ललकार सुनी तो उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। तारा को शायद इस बात का बोध हो गया था कि सुग्रीव को राम का संरक्षण हासिल है क्योंकि अकेले तो सुग्रीव वालिबालि को दोबारा ललकारने की हिम्मत कदापि नहीं करता। अतः किसी अनहोनी के भय से तारा ने वालिबालि को सावधान करने की चेष्टा की। उसने यहाँ तक कहा कि सुग्रीव को किष्किन्धा का राजकुमार घोषित कर वालि उसके साथ संधि कर ले। किन्तु वालिबालि ने इस शक से कि तारा सुग्रीव का अनुचित पक्ष ले रही है, उसे दुत्कार दिया। किन्तु उसने तारा को यह आश्वासन दिया कि वह सुग्रीव का वध नहीं करेगा और सिर्फ़ उसे अच्छा सबक सिखायेगा।<ref>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga15/kishkindha_15_prose.htm| title = तारा की याचना| accessdate = 2012-05-01| archive-url = https://web.archive.org/web/20090921120630/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga15/kishkindha_15_prose.htm| archive-date = 21 सितंबर 2009| url-status = dead}}</ref> <br />
दोनों भाइयों में फिर से द्वंद्व शुरु हुआ लेकिन इस बार राम को दोनों भाइयों को पहचानने में कोई ग़लती नहीं हुयी और उन्होंने वालिबालि पर पेड़ की ओट से बाण चला दिया। बाण ने वालिबालि के हृदय को बेध डाला और वह धाराशायी होकर ज़मीन पर गिर गया।<ref name = ''वालिबालि वध''>{{cite web| url = http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga17/kishkindha_17_prose.htm| title = वालि वध| accessdate = 2012-05-01| archive-url = https://web.archive.org/web/20100909142654/http://www.valmikiramayan.net/kishkindha/sarga17/kishkindha_17_prose.htm| archive-date = 9 सितंबर 2010| url-status = dead}}</ref>
 
== लक्ष्मण को शांत करना ==