"औरंगज़ेब": अवतरणों में अंतर

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== शासनकाल ==
मुग़ल, ख़ासकर [[अकबर]] के बाद से, ग़ैर-मुस्लिमोंमुसलमानों पर उदार रहे थे लेकिन औरंगज़ेब उनके ठीक उलट था। औरंगज़ेब ने [[जज़िया]] कर फिर से आरंभ करवाया, जिसे [[अकबर]] ने ख़त्म कर दिया था। उसने [[काश्मीरी पण्डित|कश्मीरी ब्राह्मणों]] को [[इस्लाम]] क़बूल करने पर मजबूर किया। कश्मीरी ब्राह्मणों ने सिक्खों के नौवें [[गुरु तेग़ बहादुर]] से मदद मांगी। [[गुरु तेग़ बहादुर|तेग़बहादुर]] ने इसका विरोध किया तो औरंगज़ेब ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। इस दिन को सिक्ख आज भी अपने त्यौहारों में याद करते हैं।
 
=== साम्राज्य विस्तार ===
औरंगज़ेब के शासन काल में युद्ध-विद्रोह-दमन-चढ़ाई इत्यादि का तांता लगा रहा। पश्चिम में [[सिक्खों]] की संख्या और शक्ति में बढ़ोत्तरी हो रही थी। दक्षिण में [[बीजापुर]] और [[गोलकोण्डा|गोलकुंडा]] को अंततः उसने हरा दिया पर इस बीच छत्रपति [[शिवाजी]] की [[मराठा]] सेना ने उनको नाक में दम कर दिया। छत्रपति शिवाजी को औरंगज़ेब ने गिरफ़्तार कर तो लिया पर शिवाजी और [[सम्भाजी]] के भाग निकलने पर उसके लिए बेहद फ़िक्र का सबब बन गया। आखिर शिवाजी महाराजा ने औरंगज़ेब को हराया और भारत में मराठो ने पूरे देश में अपनी ताकत बढाई शिवाजी की मृत्यु के बाद भी मराठों ने औरंग़जेबऔरंगज़ेब को परेशान किया।
इस बीच हिन्दुओं को [[इस्लाम]] में परिवर्तित करने की नीति के कारण [[राजपूत]] उसके ख़िलाफ़ हो गए थे और उसके 1707 में मरने के तुरंत बाद उन्होंने विद्रोह कर दिया।
 
== औरंगज़ेब के प्रशासन में हिंदू ==
औरंगज़ेब के प्रशासन में दूसरे मुगल<bdi>मुग़ल</bdi> बादशाह से ज्यादा हिंदू नियुक्त थे और [[शिवाजी]] भी इनमें शामिल थे। मुगल<bdi>मुग़ल</bdi> इतिहास के बारे में यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि दूसरे बादशाहों की तुलना में औरंगज़ेब के शासनकाल में सबसे ज्यादा हिंदू प्रशासन का हिस्सा थे। ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि औरंगज़ेब के पिता शाहजहां के शासनकाल में सेना के विभिन्न पदों, दरबार के दूसरे अहम पदों और विभिन्न भौगोलिक प्रशासनिक इकाइयों में हिंदुओं की तादाद 24 फीसदी थी जो औरंगज़ेब के समय में 33 फीसदी तक हो गई थी। एम अथर अली के शब्दों में कहें तो यह तथ्य इस धारणा के विरोध में सबसे तगड़ा सबूत है कि बादशाह हिंदू मनसबदारों के साथ पक्षपात करता था।<ref name="Satyagraha">{{Cite news|url=https://satyagrah.scroll.in/article/16718/was-the-aurangzeb-most-evil-ruler-in-indian-history|title=पांच तथ्य जो इस धारणा को चुनौती देते हैं कि औरंगजेब हिंदुओं के लिए सबसे बुरा शासक था|last=दानियाल|first=शोएब|work=सत्याग्रह|access-date=2018-05-21|language=hi-IN|archive-url=https://web.archive.org/web/20180517195552/http://satyagrah.scroll.in/article/16718/was-the-aurangzeb-most-evil-ruler-in-indian-history|archive-date=17 मई 2018|url-status=dead}}</ref>
 
औरंगज़ेब की सेना में वरिष्ठ पदों पर बड़ी संख्या में कई [[राजपूत]] नियुक्त थे। मराठा और सिखों के खिलाफ औरंगज़ेब के हमले को धार्मिक चश्मे से देखा जाता है लेकिन यह निष्कर्ष निकालते वक्त इस बात की उपेक्षा कर दी जाती है कि तब युद्ध क्षेत्र में मुगल<bdi>मुग़ल</bdi> सेना की कमान अक्सर राजपूत सेनापति के हाथ में होती थी। इतिहासकार यदुनाथ सरकार लिखते हैं कि एक समय खुद शिवाजी भी औरंगज़ेब की सेना में मनसबदार थे। कहा जाता है कि वे दक्षिण भारत में मुगल<bdi>मुग़ल</bdi> सल्तनत के प्रमुख बनाए जाने वाले थे लेकिन उनकी सैन्य कुशलता को भांपने में नाकाम रहे औरंगज़ेब ने इस नियुक्ति को मंजूरी नहीं दी।
 
== व्यक्तित्व ==
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औरंगज़ेब पवित्र जीवन व्यतीत करता था। अपने व्यक्तिगत जीवन में वह एक आदर्श व्यक्ति था। वह उन सब दुर्गुणों से सर्वत्र मुक्त था, जो [[एशिया]] के राजाओं में सामन्यतः थे। वह यति-जीवन जीता था। खाने-पीने, वेश-भूषा और जीवन की अन्य सभी-सुविधाओं में वह संयम बरतता था। प्रशासन के भारी काम में व्यस्त रहते हुए भी वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए [[क़ुरआन|क़ुरान]] की नकल करके और टोपियाँ सीकर कुछ पैसा कमाने का समय निकाल लेता था।
 
=== मातृभाषा अौरऔर मूल ===
औरंगज़ेब ही नहीं सभी [[मध्यकालीन भारत]] के तमाम मुस्लिममुसलमान बादशाहों के बारे में एक बात यह भी कही जाती है कि उनमें से कोई भारतीय नहीं था। वैसे एक स्तर पर यह बचकाना और बेमतलब का तर्क है क्योंकि 17वीं शताब्दी के भारत में (और दुनिया में कहीं भी) राष्ट्र जैसी अवधारणा का तो कहीं अस्तित्व ही नहीं था।<ref name="Satyagraha" />
 
हालांकि इसके बाद भी यह बात कम से कम औरंगज़ेब के मामले में लागू नहीं होती। यह मुगल<bdi>मुग़ल</bdi> बादशाह पक्का उच्चवर्गीय हिंदुस्तानी था। इसका सीधा तर्क यही है कि उसका जन्म गुजरात के दाहोद में हुआ था और उसका पालन पोषण उच्चवर्गीय हिंदुस्तानी परिवारों के बच्चों की तरह ही हुआ। पूरे मुगलकाल<bdi>मुग़ल</bdi>काल में [[बृज|ब्रज]] भाषा और उसके साहित्य को हमेशा संरक्षण मिला था और यह परंपरा औरंगज़ेब के शासन में भी जारी रही। कोलंबिया यूनिवर्सिटी से जुड़ी इतिहासकार एलिसन बुश बताती हैं कि औरंगजेबऔरंगज़ेब के दरबार में ब्रज को प्रोत्साहन देने वाला माहौल था। बादशाह के बेटे आजम शाह की ब्रज कविता में खासी दिलचस्पी थी। ब्रज साहित्य के कुछ बड़े नामों जैसे [[देव (कवि)|महाकवि देव]] को उसने संरक्षण दिया था। इसी भाषा के एक और बड़े कवि वृंद तो औरंगजेबऔरंगज़ेब के प्रशासन में भी नियुक्त थे।
 
मुगलकाल<bdi>मुग़ल</bdi>काल में दरबार की आधिकारिक लेखन भाषा फारसी थी लेकिन औरंगज़ेब का शासन आने से पहले ही बादशाह से लेकर दरबारियों तक के बीच प्रचलित भाषा हिंदी-उर्दू हो चुकी थी। इसे औरंगज़ेब के उस पत्र से भी समझा जा सकता है जो उसने अपने 47 वर्षीय बेटे आजम शाह को लिखा था। बादशाह ने अपने बेटे को एक किला भेंट किया था और इस मौके पर नगाड़े बजवाने का आदेश दिया। आजम शाह को लिखे पत्र में औरंगज़ेब ने लिखा है कि जब वह बच्चा था तो उसे नगाड़ों की आवाज खूब पसंद थी और वह अक्सर कहता था, ‘बाबाजी ढन-ढन!’ इस उदाहरण से यह बात कही जा सकती है कि औरंगज़ेब का बेटा तत्कालीन प्रचलित हिंदी में ही अपने पिता से बातचीत करता था।<ref name="Satyagraha" />
 
== धार्मिक नीति ==
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औरंगज़ेब के समय में [[बृज|ब्रज]] में आने वाले तीर्थ−यात्रियों पर भारी कर लगाया गया जज़िया कर फिर से लगाया गया और हिन्दुओं को [[मुसलमान]] बनाया गया। उस समय के कवियों की रचनाओं में औरंगज़ेब के अत्याचारों का उल्लेख है।
 
== जिज़्या ==
=== [[जज़िया|जजिया कर]] ===
औरंगजेबऔरंगज़ेब द्वारा लगाया गया जजियाजिज़्या कर उस समय के हिसाब से था। अकबर ने जजियाजिज़्या कर को समाप्त कर दिया था, लेकिन औरंगज़ेब के समय यह दोबारा लागू किया गया। जजियाजिज़्या सामान्य करों से अलग था जो गैर मुस्लिमोंग़ैर-मुसलमानों को चुकाना पड़ता था। इसके तीन स्तर थे और इसका निर्धारण संबंधित व्यक्ति की आमदनी से होता था। इस कर के कुछ अपवाद भी थे। गरीबों, बेरोजगारों और शारीरिक रूप से अशक्त लोग इसके दायरे में नहीं आते थे। इनके अलावा हिंदुओं की वर्ण व्यवस्था में सबसे ऊपर आने वाले ब्राह्मण और सरकारी अधिकारी भी इससे बाहर थे। मुसलमानों के ऊपर लगने वाला ऐसा ही धार्मिक कर जकात था जो हर अमीर मुसलमान के लिए देना ज़रूरी था ।<ref name="Satyagraha" />
 
आधुनिक मूल्यों के मानदंडों पर जजियाजिज़्या निश्चितरूप से एक पक्षपाती कर व्यवस्था थी। आधुनिक राष्ट्र, धर्म और जाति के आधार पर इस तरह का भेद नहीं कर सकते। इसीलिए जब हम 17वीं शताब्दी की व्यवस्था को आधुनिक राष्ट्रों के पैमाने पर इसे देखते हैं तो यह बहुत अराजक व्यवस्था लग सकती है, लेकिन औरंगज़ेब के समय ऐसा नहीं था। उस दौर में इसके दूसरे उदाहरण भी मिलते हैं। जैसे मराठों ने दक्षिण के एक बड़े हिस्से से मुगलों<bdi>मुग़</bdi>लों को बेदखल कर दिया था। उनकी कर व्यवस्था भी तकरीबन इसी स्तर की पक्षपाती थी। वे मुसलमानों से जकात वसूलते थे और हिंदू आबादी इस तरह की किसी भी कर व्यवस्था से बाहर थी।<ref name="Satyagraha" />
 
=== मंदिर निर्माण और विध्वंस ===
 
औरंगज़ेब ने जितने मंदिर तुड़वाए, उससे कहीं ज्यादा बनवाए थे। विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार रिचर्ड ईटन के मुताबिक मुगलकाल<bdi>मुग़ल</bdi>काल में मंदिरों को ढहाना दुर्लभ घटना हुआ करती थी और जब भी ऐसा हुआ तो उसके कारण राजनीतिक रहे। ईटन के मुताबिक वही मंदिर तोड़े गए जिनमें विद्रोहियों को शरण मिलती थी या जिनकी मदद से बादशाह के खिलाफ साजिश रची जाती थी। उस समय मंदिर तोड़ने का कोई धार्मिक उद्देश्य नहीं था।<ref name="Satyagraha"/>
 
इस मामले में कुख्यात कहा जाने वाला औरंगज़ेब भी सल्तनत के इसी नियम पर चला। उसके शासनकाल में मंदिर ढहाने के उदाहरण बहुत ही दुर्लभ हैं (ईटन इनकी संख्या 15 बताते हैं) और जो हैं उनकी जड़ में राजनीतिक कारण ही रहे हैं। उदाहरण के लिए औरंगज़ेब ने [[दक्षिण भारत]] में कभी-भी मंदिरों को निशाना नहीं बनाया जबकि उसके शासनकाल में ज्यादातर सेना यहीं तैनात थी। उत्तर भारत में उसने जरूर कुछ मंदिरों पर हमले किए जैसे [[मथुरा]] का केशव राय मंदिर लेकिन इसका कारण धार्मिक नहीं था। मथुरा के जाटों ने सल्तनत के खिलाफ विद्रोह किया था इसलिए यह हमला किया गया।
 
ठीक इसके उलट कारणों से औरंगजेबऔरंगज़ेब ने मंदिरों को संरक्षण भी दिया। यह उसकी उन हिंदुओं को भेंट थी जो बादशाह के वफादार थे। किंग्स कॉलेज, लंदन की इतिहासकार कैथरीन बटलर तो यहां तक कहती हैं कि औरंगज़ेब ने जितने मंदिर तोड़े, उससे ज्यादा बनवाए थे। कैथरीन फ्रैंक, एम अथर अली और जलालुद्दीन जैसे विद्वान इस तरफ भी इशारा करते हैं कि औरंगज़ेब ने कई हिंदू मंदिरों को अनुदान दिया था जिनमें [[वाराणसी|बनारस]] का [[जंगम बाड़ी मठ]], [[चित्रकूट धाम|चित्रकूट]] का बालाजी मंदिर, [[इलाहाबाद]] का [[सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर]] और [[गुवाहाटी]] का [[उमानंद मंदिर]] सबसे जाने-पहचाने नाम हैं।<ref name="Satyagraha"/>
 
जिस कालखंड यानी मुगलकाल<bdi>मुग़ल</bdi>काल में मंदिरों को तोड़े जाने की बात इतनी ज्यादा प्रचलन में है, उसमें हिंदुओं द्वारा कहीं इस बात का विशेष जिक्र नहीं मिलता। तर्क दिया जा सकता है कि उस दौर में ऐसा करना खतरे से खाली नहीं रहा होगा, लेकिन 18वीं शताब्दी में जब सल्तनत खत्म हो गई तब भी इस बात का कहीं जिक्र नहीं मिलता। अतीत में मुगल<bdi>मुग़ल</bdi> शासकों द्वारा हिंदू मंदिर तोड़े जाने का मुद्दा भारत में 1980-90 के दशक में गर्म हुआ ।
 
=== संगीत ===
औरंगज़ेब को कट्टरपंथी साबित करने की कोशिश में एक बड़ा तर्क यह भी दिया जाता है कि उसने संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन यह बात भी सही नहीं है। कैथरीन बताती हैं कि सल्तनत में तो क्या संगीत पर उसके दरबार में भी प्रतिबंध नहीं था। बादशाह ने जिस दिन राजगद्दी संभाली थी, हर साल उस दिन उत्सव में खूब नाच-गाना होता था।<ref name="Satyagraha"/> कुछ [[ध्रुपद|ध्रुपदों]] की रचना में औरंगज़ेब नाम शामिल है जो बताता है कि उसके शासनकाल में संगीत को संरक्षण हासिल था। कुछ ऐतिहासिक तथ्य इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि वह खुद संगीत का अच्छा जानकार था। मिरात-ए-आलम में बख्तावर खान ने लिखा है कि बादशाह को संगीत विशारदों जैसा ज्ञान था। मुगल<bdi>मुग़ल</bdi> विद्वान फकीरुल्लाह ने राग दर्पण नाम के दस्तावेज में औरंगज़ेब के पसंदीदा गायकों और वादकों के नाम दर्ज किए हैं। औरंगज़ेब को अपने बेटों में आजम शाह बहुत प्रिय था और इतिहास बताता है कि शाह अपने पिता के जीवनकाल में ही निपुण संगीतकार बन चुका था।
 
औरंगज़ेब के शासनकाल में संगीत के फलने-फूलने की बात करते हुए कैथरीन लिखती हैं, ‘500 साल के पूरे मुगलकाल<bdi>मुग़ल</bdi>काल की तुलना में औरंगज़ेब के समय फारसी में संगीत पर सबसे ज्यादा टीका लिखी गईं।’ हालांकि यह बात सही है कि अपने जीवन के अंतिम समय में औरंगज़ेब ज्यादा धार्मिक हो गया था और उसने गीत-संगीत से दूरी बना ली थी। लेकिन ऊपर हमने जिन बातों का जिक्र किया है उसे देखते हुए यह माना जा सकता है कि उसने कभी अपनी निजी इच्छा को सल्तनत की आधिकारिक नीति नहीं बनाया।<ref name="Satyagraha"/>
 
== मौत ==