"सिद्धमंगल स्तोत्र": अवतरणों में अंतर

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'''श्रीपाद वल्लभ''' या '''श्रीपाद श्रीवल्लभ''' को भगवान श्री दत्तात्रेय का प्रथम अवतार माना जाता है. इनका जन्म भारत के [[आन्ध्र प्रदेश]] राज्य के [[पूर्व गोदावरी जिला|पूर्व गोदावरी ज़िले]] में [[पिठापुरम]] नामक छोटेसे कसबे में हुआ.<ref name=चरित्र/><ref>{{cite web|url=https://www.sripadasrivallabhamahasamsthanam.com/about_us.php?page=about_us|title=About SripadaSrivallabha Mahasamstanam Pithapuram|language=english|accessdate=2021-03-07}}</ref> जब श्रीपाद महाराज छोटे से थे और अपने नानाजी वल्लभाचार्युलू के साथ खेल रहे थे, तब नानाजी ने उन के छोटे छोटे चरणों को सहलाया और प्यार से चूमा. उस समय वल्लभाचार्युलू को छोटे श्रीपद ने दत्तरूप ने अपना दर्शन दिया. इसके बाद वल्लभाचार्युलू को सिद्धमंगल स्तोत्र की अनुभूति हुई और उन्होंने इसे लिख दिया.<ref name=दत्तमहाराज>{{cite web|url=http://www.dattamaharaj.com/श्रीपाद%20श्रीवल्लभ|title=श्रीपाद श्रीवल्लभ|language=मराठी|accessdate=2021-03-07}}</ref><ref name=चरित्र>{{cite book|last=Joshi Niturkar|first=Haribhau|title=Sripada Srivallabha Charithaamrutham|year=2012|publisher=sripadasrivallabha mahasamsthanam|page=148|url=https://www.sripadasrivallabhamahasamsthanam.com/public.php?value=SRIPADA_SRIVALLABHA_CHARITHAMRUTHAM_in_English&cost=155}}</ref> सिद्धमंगल स्तोत्र का उल्लेख '''श्रीपाद श्रीवल्लभ चरित्रमृतम''' नामक ग्रंथ के सत्रहवें अध्याय के अंत में आता है.
 
<div style="text-align: center;">
==स्तोत्र==
'''॥ श्रीपादराजम् शरणम् प्रपद्ये ॥''' <br>
श्री मदनंत श्रीविभुषीत अप्पल लक्ष्मी नरसिंह राजा । <br>
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥१॥</div>
'''अनुवाद-'''
 
<div style="text-align: center;">
श्री विद्याधारी राधा सुरेखा श्री राखीधर श्रीपादा । <br>
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥२॥</div>
'''अनुवाद-'''
 
<div style="text-align: center;">
माता सुमती वात्सल्यामृत परिपोषित जय श्रीपादा ।<br>
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥३॥</div>
'''अनुवाद-'''
 
<div style="text-align: center;">
सत्यऋषीश्र्वरदुहितानंदन बापनाचार्यनुत श्रीचरणा ।<br>
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥४॥</div>
'''अनुवाद-'''
 
<div style="text-align: center;">
सवितृ काठकचयन पुण्यफल भारद्वाजऋषी गोत्र संभवा ।<br>
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥५॥</div>
'''अनुवाद-'''
 
<div style="text-align: center;">
दौ चौपाती देव लक्ष्मीगण संख्या बोधित श्रीचरणा ।<br>
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥६॥</div>
'''अनुवाद-'''
 
<div style="text-align: center;">
पुण्यरुपिणी राजमांबासुत गर्भपुण्यफलसंजाता ।<br>
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥७॥</div>
'''अनुवाद-'''
 
<div style="text-align: center;">
सुमतीनंदन नरहरीनंदन दत्तदेव प्रभू श्रीपादा ।<br>
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥८॥</div>
'''अनुवाद-'''
 
<div style="text-align: center;">
पीठिकापुर नित्यविहारा मधुमतीदत्ता मंगलरुपा ।<br>
जय विजयीभव, दिग्विजयीभव, श्रीमदखंड श्री विजयीभव ॥९॥</div>
'''अनुवाद-'''
 
<div style="text-align: center;">
'''॥ श्रीपादराजम् शरणम् प्रपद्ये ॥'''
</div>
 
==इन्हें भी देखें==