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बढ़ते किसान-योद्धाओं के ये समुदाय अच्छी तरह से स्थापित भारतीय जातियों के नहीं थे बल्कि काफी नए थे।<ref name="MetcalfMetcalf2006-p24">{{cite book|last1=Metcalf|first1=Barbara Daly|last2=Metcalf|first2=Thomas R.|title=A concise history of modern India|url=https://books.google.com/books?id=iuESgYNYPl0C&pg=PA24|accessdate=24 October 2011|year=2006|publisher=Cambridge University Press|isbn=978-0-521-86362-9|page=24|archive-url=https://web.archive.org/web/20140102001058/http://books.google.com/books?id=iuESgYNYPl0C&pg=PA24|archive-date=2 जनवरी 2014|url-status=live}}</ref> यह लोग मैदानों के पुरानी किसान जातियों, विविध सरदारों और खानाबदोश समूहों को अवशोषित करने की क्षमता के साथ थे। मुगल साम्राज्य, यहां तक ​​कि अपनी सत्ता के चरम में भी ग्रामीण वासियों पर सीधा नियंत्रण नहीं रखता था। यह ये ज़मींदार थे जिन्होंने इन विद्रोहों से सबसे अधिक लाभ उठाया और अपने नियंत्रण में भूमि को बढ़ाया। कुछ ने मामूली राजकुमारों की पदवी को भी प्राप्त किया जैसे कि [[भरतपुर राज्य|भरतपुर रियासत]] के जाट शासक बदन सिंह। जाट गंगा के मैदान में क्रमशः सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में दो बड़े प्रवास में पहुंचें। वे सामान्य हिंदू अर्थ में जाति नहीं थे, उदाहरण के लिए जैसे पूर्वी गंगा के मैदान के [[भूमिहार]] थे; बल्कि वे किसान-योद्धाओं का एक समूह थे।<ref name=cbayly-1988-p22>{{cite book|last=Bayly|first=C. A.|authorlink=Christopher Bayly|title=Rulers, Townsmen and Bazaars: North Indian Society in the Age of British Expansion, 1770–1870|url=https://books.google.com/books?id=xfo3AAAAIAAJ&pg=PA22|accessdate=15 October 2011|year=1988|publisher=CUP Archive|isbn=978-0-521-31054-3|page=22|archive-url=https://web.archive.org/web/20140102001109/http://books.google.com/books?id=xfo3AAAAIAAJ&pg=PA22|archive-date=2 जनवरी 2014|url-status=live}}</ref>
==साम्राज्य==
 
[[जाट सिक्ख|सिख जाट]] महाराजा [[महाराजा रणजीत सिंह|रणजीत सिंह]] का साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर चीन तक फैला हुआ था।
 
[[चित्र:Sikh Empire tri-lingual.jpg|thumb|right|250px|महाराज रणजीत सिंह का साम्राज्य]]
12 अप्रैल, 1801 को रणजीत सिंह की पंजाब के महाराज के तौर पर ताजपोशी की गई. महज 20 साल की उम्र में उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की थी. लाहौर विजय के बाद उन्होंने अपने साम्राज्य को विस्तार देना शुरू किया. 1802 में उन्होंने अमृतसर को अपने साम्राज्य में मिला लिया. 1807 में उन्होंने अफगानी शासक कुतबुद्दीन को हराकर कसूर पर कब्जा किया. इसके बाद 1818 में मुल्तान और 1819 में कश्मीर इस साम्राज्य का हिस्सा बन गया.
 
==संस्कृति और समाज==
इतिहासकार [[खुशवन्त सिंह]], के अनुसार, जाटों ने कभी भी [[इस्लाम|मुसलमान जाटों]] को स्वीकार नहीं किया। जबकि [[जाट सिक्ख|सिक्ख जाटों]] को वे जाट मानते हैं।<ref>{{cite book |title=A History of the Sikhs: 1469–1838 |trans_title= सिखों का इतिहास: १४६९–१८३८ |edition=2, चित्रित |first=खुशवन्त |last=सिंह |authorlink=खुशवन्त सिंह |publisher=[[ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस]] |year=2004 |page=15 |url=http://books.google.co.in/books?id=MD9uAAAAMAAJ |ISBN=0-19-567308-5 |oclc=438966317 |language=अंग्रेज़ी}}</ref>
"https://hi.wikipedia.org/wiki/जाट" से प्राप्त