"मुरैना ज़िला": अवतरणों में अंतर
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सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी [[राम प्रसाद 'बिस्मिल']] के दादा जी नारायण लाल का पैतृक [[गाँव]] बरबई तत्कालीन [[ग्वालियर]] राज्य में [[चम्बल नदी]] के बीहड़ों में स्थित तोमरधार क्षेत्र (वर्तमान मध्य प्रदेश) के [[मुरैना]] जिले में आज भी है। बरबई ग्राम-वासी बड़े ही बागी प्रकृति के व्यक्ति थे जो आये दिन अँग्रेजों व अँग्रेजी आधिपत्य वाले ग्राम-वासियों को तंग करते थे। पारिवारिक कलह के कारण नारायण लाल ने अपनी पत्नी विचित्रा देवी व दोनों पुत्रों - मुरलीधर एवं कल्याणमल सहित अपना पैतृक गाँव छोड़ दिया। उनके गाँव छोडने के बाद बरबई में केवल उनके दो भाई - अमान सिंह व समान सिंह ही रह गये जिनके वंशज कोक सिंह आज भी उसी गाँव में रहते हैं। केवल इतना परिवर्तन अवश्य हुआ है कि बरबई गाँव के एक पार्क में राम प्रसाद बिस्मिल की एक भव्य [[प्रतिमा]] मध्य प्रदेश सरकार ने स्थापित कर दी है।
गोवा स्वतन्त्रता आंदोलन के पुरोधा जाहरसिंह शर्मा मुरैना जिले के ही निवासी थे।वो जनसंघ तथा भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य होकर जिले के सर्वमान्य राजनेता थे।
जाहरसिंह जी शर्मा का जन्म सन1925में मुरैना के समीप ग्राम गंज रामपुर में एक कृषक परिवार में बोहरे कल्याणसिंह के यहां हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुरैना नगर में हुई। छात्र जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गये थे। उन्हें शारीरिक व्यायाम करने का शौक था तथा स्वभाव से निडर थे। इसलिए उनकी मित्रमंडली उन्हें नाम लेने की बजाय कुंवर साहब नाम से ही बुलाती थी। 1948 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगे प्रतिबंध को हटाने के आंदोलन के दौरान श्रीनगर की जेल में बंद रहे।1952 में कश्मीर आंदोलन के दौरान गिरफ्तार होकर तिहाड़ जेल दिल्ली में बंद रहे। 1955 में गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन में स्वर्गीय राजाभाऊ महाकाल के नेतृत्व में भाग लिया। आंदोलन के दौरान पुर्तगाली सैनिकों की गोली उनकी जंघा में लगी। 1957 में हिंदी रक्षा समिति आंदोलन के तहत पंजाब की संगरूर जेल में बंद रहे। 1960 में मुरैना में पुलिस डाकू गठबंधन के खिलाफ सर्वदलीय आंदोलन के दौरान कर्फ्यू लगाने के विरुद्ध हनुमान चौराहे पर अपनी छाती खोल कर खड़े हो गए तथा पुलिस को ललकारा हिम्मत है तो गोली मेरे ऊपर चलाओ! पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया मुरैना जेल में बंद रहे। 1962 में जनसंघ के आंदोलन के दौरान भोपाल जेल में बंद रहे। 1965 में कच्छ समझौते के विरुद्ध आंदोलन के अंतर्गत गिरफ्तारी दी (उक्त आंदोलन का मध्यभारत प्रांत के जत्थे का नेतृत्व स्वर्गीय माधवराव सिंधिया जी ने किया था ।1967 में मुरैना विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए।जून1975 से 1977 आपातकाल के समय काले कानून मीसा के अंतर्गत केंद्रीय कारागार ग्वालियर में 19 महीने बंद रहे। 1977 में विधानसभा क्षेत्र सुमावली से विधायक चुने गए तथा स्वर्गीय वीरेंद्रकुमार सकलेचा तथा सुन्दरलाल पटवा के मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव रहे। 1985 में मुरैना विधानसभा क्षेत्र से तीसरी बार विधायक निर्वाचित हुए। 6 मार्च 2003 को हृदयाघात होने से देहांत हो गया। अब उनकी यादें शेष रह गई है। नाला नंबर दो मुरैना तपसी बाबा की गुफा मंदिर के पास तिराहे पर उनकी प्रतिमा लगी हुई है। तथा उक्त मार्ग का नाम कुं.जाहरसिंह शर्मा मार्ग रखा गया है।
जाहरसिंह शर्मा राजनीति में सिद्धांत, शुचिता और गरिमा के प्रबल प्रतीक थे। जनसेवा के लिए उनकी प्रतिबद्धता नयी पीढ़ी के लिए उदाहरण है।
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