"प्रशीतित्र": अवतरणों में अंतर

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==परिचय==
घरेलू उपयोग के लिये थोड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थो को ठंड़ा रखने के निमित्त 1917 ई. से ही प्रशीतित्रों का व्यावसायिक रीति से निर्माण आरंभ हुआ और १९२५1925 ई. से तो वे सर्वसाधारण के लिये भी सुलभ हो गए। आरंभ में तो गैसचालित यंत्र ही बनाए गए, लेकिन अब कुछ वर्षो से विद्युतशक्ति चालित प्रशीतित्र (refrigerators) सर्वप्रिय हो गये हैं।
 
आजकल सब प्रकार के प्रशीतित्रों की अलमारियाँ देखने में एक सी ही लगती हैं। इनके भीतर पोर्सिलेन की परत और बाहर की तरफ गाढ़ा [[प्रलाक्ष|प्रलाक्षारस]] लेप लगा होता है। भिन्न भिन्न माडलों की कीमत के अनुसार प्रशीतित्र की दीवारों में लगा ऊष्मारोधक (heat insulaor) 2 से 4 इंच तक मोटा होता है। ऊष्मारोधक जितना ही अधिक मोटा होगा उतना ही अधिक प्रभावकारी रहेगा, क्योंकि अधिकतर वायुमंडल की गरमी, दीवारों में से होकर ही भोजनपात्रों में, प्रविष्ट होती है।
 
प्रत्येक प्रशीतित्र में रखे खाद्यपदार्थो को ठंडा रखने का काम किसी प्रशीतक माध्यम की भौतिक दशा में परिवर्तन (फेज चेंज) के द्वारा होता है। अत: एक अच्छे प्रशीतक-माध्यम में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है :