"आर्थिक भौमिकी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Oil platform in the North Sea.jpg|right|thumb|300px|उत्तरी सागर में निर्मित तेल निकालने का प्लेटफॉर्म]]
[[चित्र:Arandis Mine quer.jpg|right|thumb|300px|नामीबिया की एक यूरेनियम खान जो 'खुली' हुई है।]]
[[चित्र:Mudlogging.JPG|right|thumb|300px|'''Mud log in''' प्रक्रिया, तेल के कुंए खोद्ते समय प्रायः यह प्रक्रिया बहुत उपयोगी होती है।]]
'''आर्थिक भौमिकी''', [[भौमिकी]] की वह शाखा है जो [[पृथ्वी]] की [[खनिज|खनिज संपत्ति]] के संबंध में बृहत्‌ ज्ञान कराती है। पृथ्वी से उत्पन्न समस्त धातुओं, पत्थर, [[कोयला]], भूतैल ([[शिलारस|पेट्रोलियम]]) तथा अन्य अधातु खनिजों का अध्ययन तथा उनका आर्थिक विवेचन आर्थिक भौमिकी द्वारा ही होता है। प्रत्येक देश की समृद्धि वहाँ की खनिज संपत्ति पर बहुत कुछ निर्भर रहती है और इस दृष्टि से आर्थिकी भौतिकी का अध्ययन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
 
यद्यपि भारतवर्ष[[भारत]]वर्ष प्राचीन समय से ही अपनी खनिज संपत्ति के लिए प्रसिद्ध रहा है, तथापि कुछ कारणों से यह देश अत्यंतअत्यन्त समृद्ध नहीं कहा जा सकता। भारत में आर्थिक खनिज पाए जाते हैं जिनमें से लगभग १६ खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इनमें विशेष कर लौह अयस्क, मैंगनीज़, अभ्रक, बॉक्साइट, इल्मेनाइट, पत्थर के कोयले जिप्सम, चूना पत्थर (लाइम स्टोन), सिलीमेनाइट, कायनाइट, कुरबिंद (कोरंडम), मैग्नेसाइट, मत्तिकाओं आदि के विशाल भांडार हैं, किंतु साथ ही साथ सीसा, तांबा, जस्ता, रांगा, गंधक तथा मूतैल आदि अत्यंत न्यून मात्रा में हैं। भूतैल का उत्पादन तो इतना अल्प है कि देश की आंतरिक खपत का केवल सात प्रतिशत ही उससे पूरा हो पाता है। इस्पात उत्पादन के लिए सारे आवश्यक खनिज पर्याप्त किए जाते हैं उनमें इन धातुओं के अभाव के कारण कुछ हल्की धातुएं, जैसे ऐल्युमिनियम इत्यादि तथा उनकी मिश्र धातुएँ उपयोग में लाई जा सकती है।
 
== भारत में खनन उद्योग का विकास ==