"कश्मीरी भाषा": अवतरणों में अंतर

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कश्मीर की भाषा कश्मीरी (कोशुर) है ये कश्मीर में वर्तमान समय में बोली जाने वाली भाषा है। कश्मीरी भाषा के लिए विभिन्न लिपियों का उपयोग किया गया है, जिसमें मुख्य लिपियां हैं- शारदा, देवनागरी, रोमन और परशो-अरबी है। कश्मीर वादी के उत्तर और पश्चिम में बोली जाने वाली भाषाएं - दर्ददी, श्रीन्या, कोहवाड़ कश्मीरी भाषा के उलट थीं। यह भाषा इंडो-आर्यन और हिंदुस्तानी-ईरानी भाषा के समान है।
 
भाषाविदों का मानना ​​है कि कश्मीर के पहाड़ों में रहने वाले पूर्व नागावासी जैसे गंधर्व, यक्ष और किन्नर आदि ,बहुत पहले ही मूल आर्यन से अलग हो गए। इसी तरह कश्मीरी भाषा को आर्य भाषा जैसा बनने में बहुत समय लगा। नागा भाषा स्वतः ही विकसित हुई है इस सब के बावजूद, कश्मीरी भाषा ने अपनी विशिष्ट स्वर शैली को बनाए रखा और 8 वीं-9 वीं शताब्दी में अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं की तरह , कई चरणों से गुजरना पड़ा।
 
==इतिहास==
'कश्मीरी' शब्द का उपयोग इस भाषा के रूप में सबसे पहले अमीर खुसरो ने १३वीं शताब्दी में किया था। परन्तु कश्मीर में १७वीं शताब्दी तक इसे देशभाषा या भाषा के नाम से ही जाना जाता था। अन्य प्रान्तों या स्थानों के लोग इसे कश्मीरी कहते थे जिसे बाद में कश्मीरियों ने भी अपना लिया। इस भाषा को '''काशुर''' भी कहते हैं।
 
तेरहवीं शताब्दी के शितिकण्ठ की महानयप्रकाश में इस भाषा की बानगी मिलती है जिसे उस समय सर्वगोचर देशभाषा कहा जाता था। वह उस समय [[प्राकृत]] की तुलना में [[अपभ्रंश]] के अधिक निकट थी। चौदहवीं शताब्दी में [[ललद्यद]] की वाणी में कश्मीरी भाषा का लालित्य देखने को मिलता है। [[शैव]] [[सिद्ध|सिद्धों]] ने इस भाषा का उपयोग अपने [[तन्त्र साहित्य]] में किया जिसके बाद यह धीरे-धीरे साहित्य की भी भाषा बनती चली गयी।
शारदा लिपि का उपयोग दसवीं शताब्दी के आसपास ,कश्मीरी भाषा लिखने के लिए किया गया था। पौराणिक कश्मीरी लिपि को केवल शारदा में लिखा गया है<ref>http://www.univarta.com/news/regional/story/176976.html</ref>। शारदा भाषा लिखने का तरीका स्वदेशी है, जो मूल ब्राह्मी से विकसित हुआ था। विद्वानों, शासकों और हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध आदि जैसे सभी धर्मों के लोग शारदा लिपि में लिखते थे।लालदा, रुपा भवानी, नंद ऋषि और अन्य भक्ति कविता शारदा लिपि में ही लिखी गई थीं और अभी भी पुस्तकालय में इन्हे पढ़ा जा सकता हैं। इस लिपि का इस्तेमाल कश्मीरी पंडित द्वारा जन्म प्रमाणपत्र बनाने के लिए भी किया जाता है।
 
कश्मीरी भाषा लिखने के लिए [[शारदा लिपि]] का उपयोग दसवीं शताब्दी के आसपास ,कश्मीरीकिया भाषागया लिखनेथा। चौदहवीं शताब्दी में [[फारसी]] के लिएकश्मीर कियाकी गयाराजभाषा बनने के पहले कश्मीरी [[शारदा लिपि]] में लिखी जाती थी। परन्तु उसके बाद फारसी लिपि में भी कश्मीरी लिखी जाने लगी। था। पौराणिक कश्मीरी लिपि को केवल शारदा में लिखा गया है<ref>http://www.univarta.com/news/regional/story/176976.html</ref>। शारदा भाषा लिखने का तरीका स्वदेशी है, जो मूल [[ब्राह्मी लिपि|ब्राह्मी]] से विकसित हुआ था। विद्वानोंविद्वान, शासकोंशासक और हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध आदि जैसे सभी धर्मों के लोग शारदा लिपि में लिखते थे।लालदाथे। लालदा, रुपा भवानी, नंद ऋषि और अन्य भक्ति कविता शारदा लिपि में ही लिखी गई थीं और अभी भी पुस्तकालय में इन्हे पढ़ा जा सकता हैं। इस लिपि का इस्तेमाल कश्मीरी पंडितपंडितों द्वारा जन्म प्रमाणपत्र बनाने के लिए भी किया जाता है।
 
==वर्त्तमान स्वरुप ==
वर्त्तमान में शारदा लिपि हिंदुओं तक ही सीमित है लेकिन कश्मीरी भाषा लिखने के लिए, मुसलमान अरबी अक्षरों का उपयोग करते हैं। कश्मीरी भाषा में शारदा के अलावा, देवनागरी लिपि, रोमन और पर्शियन-अरबिक का भी इस्तेमाल किया गया है। कश्मीरी भाषा में कोशुर न्यूज़, ख़्ासर भवानी टाइम्स, विभूता, मिलर आदि पत्र और पत्रिकाएं भी शामिल हैं।
 
अब कश्मीरी भाषा का सॉफ्टवेयर भी आ गया है। रोमन लिपि का कश्मीरी भाषा के लिए भी इस्तेमाल किया गया है लेकिन यह लोकप्रिय नहीं है जम्मू और कश्मीर सरकार ने भी , अब पर्शियन-अरबिक लिपि , जो अब कश्मीरी लिपि के नाम से जानी जाती है ,को ही आधिकारिक लिपि माना है। व्यापक रूप से इस भाषा को प्रकाशन में उपयोग किया जाता है<ref>{{Cite web |url=http://www.jagran.com/haryana/kurukshetra-7550915.html |title=संग्रहीत प्रति |access-date=28 अप्रैल 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20190809165506/https://www.jagran.com/haryana/kurukshetra-7550915.html |archive-date=9 अगस्त 2019 |url-status=live }}</ref>।
कुछ लोग अरबी-फारसी स्क्रिप्टलिपि में कश्मीरी लिखते हैं, जो [[उर्दू]] से बहुत अलग नहीं है।कश्मीरीहै। कश्मीरी में, अ, आ, उ, ऊ आदि जैसे व्यंजनों के कई रूप होते हैं और व्यंजनों में दंतुलुलिये च, ज , मराठी की तरह होते हैं, लेकिन उन्हें सामान्य लेखन में नहीं रखा जाता है।
 
== नामकरण ==
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== उद्भव ==
ग्रियर्सन ने जिन तर्कों के आधार पर कश्मीरी के "दारद" होने की परिकल्पना की थी, उन्हें फिर से परखना आवश्यक है; क्योंकि इससे भी कश्मीरी भाषा की गई गुत्थियाँ सुलझ नहीं पातीं। घोष महाप्राण के अभाव में जो दारद प्रभाव देखा गया है वह तो सिंधी, पश्तू, पंजाबी, डोगरी के अतिरिक्त पूर्वी बँगला और राजस्थानी में भी दिखाई पड़ता है; पर क्रियापदों के संश्लेषण में कर्ता के अतिरिक्त कर्म के पुरुष, लिंग और वचन का जो स्पर्श पाया जाता है उसपर दारद भाषाएँ कोई प्रकाश नहीं डालतीं। संभवत:संभवतः कश्मीरी भाषा "दारद" से प्रभावित तो है, पर उद्भूत नहीं।
 
== लिपि ==