"फतेहपुर जिला": अवतरणों में अंतर

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[[फतेहपुर जिला]] [[उत्तर प्रदेश]] [[राज्य]] का एक [[जिला]] है। जो कि [[पवित्र]] [[गँगा]] एँव [[यमुना]] [[नदी]] के किनारों पर बसा हुआ है। [[फतेहपुर]] को [[पुराणों]] मे भी दर्शाया गया है। भिःठोरा और असनि के [[घाट]] भी [[पुराणों]] मे मिलते है। भिःठोरा [[भ्रिगु]] [[ऋषि]] की [[तपोस्थली]] थी। [[फतेहपुर जिला]] [[इलाहाबाद मण्डल]] का एक हिस्सा है
== ऐतिहासिक स्थल ==
'''बावनी ईमलीइमली''' <br />यह [[स्मारक]] [[स्वतंत्रता सेनानियों]] सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। २८28 अप्रैल १८५८1858 को [[ब्रिटिश सेना]] द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक ईमलीइमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये ईमलीइमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगो का विश्वास है के उस [[पेड़]] का विकास उस [[नरसंहार]] के बाद बंद हो गया है। यह जगह [[बिन्दकी]] उपखंड में [[खजुआ]] कस्बे के निकट है।<br />[[बिन्दकी ]] [[तहसील]] मुख्यालय से तीन [[किलोमीटर]] पश्चिम मुगल रोड स्थित [[शहीद]] [[स्मारक]] [[बावनी इमली]] [[स्वतंत्रता]] की जंग में अपना विशेष महत्व रखती है। शहीद स्थल में बूढ़े इमली के पेड़ में 28 अप्रैल 1857 को [[रसूलपुर]] गांव के निवासी [[ जोधा सिंह अटैया]] को उनके इक्यावन क्रांतिकारियों के साथ [[फांसी]] पर लटका दिया गया था इन्हीं बावन शहीदों की [[स्मृति]] में इस [[वृक्ष]] को [[बावनी इमली]] कहा जाने लगा।
चार फरवरी 1858 को [[जोधा सिंह अटैया]] पर [[ब्रिगेडियर करथ्यू]] ने असफल [[आक्रमण]] किया। साहसी [[जोधा सिंह अटैया]] को सरकारी कार्यालय लूटने एवं जलाये जाने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डकैत घोषित कर दिया। जोधा सिंह ने 27अक्टूबर 1857 को [[महमूदपुर गांव]] में एक दरोगा व एक अंग्रेज सिपाही को घेरकरमार डाला था। सात दिसंबर 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला करएक अंग्रेज परस्त को भी मार डाला। इसी क्रांतिकारी गुट ने 9 दिसंबर को [[जहानाबाद]] में गदर काटी और छापा मारकर ढंग से तहसीलदार को बंदी बना लिया।[[जोधा सिंह]] ने [[दरियाव सिंह]] और [[शिवदयाल सिंह]] के साथ [[गोरिल्ला युद्ध]] कीशुरुआत की थी। [[जोधा सिंह]] को 28 अप्रैल 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ लौट रहे थे तभी मुखबिर की सूचना पर [[कर्नल क्रिस्टाइल]] की सेना ने उन्हें सभी साथियों सहित बंदी बना लिया और सबको [[फांसी]] दे दी गयी। बर्बरता की चरम सीमा यह रही कि शवों को पेड़ से उतारा भी नहीं गया। कई दिनों तक यह शव इसी पेड़ पर झूलते रहे। चार जून की रात अपने सशस्त्र साथियों के साथ [[महराज सिंह]] [[बावनी इमली]] आये और शवों को उतारकर [[शिवराजपुर]] में इन नरकंकालों की अंत्येष्टि की। <br />
'''भिःठोरा'''<br />
 
'''भिटौरा '''<br />
इस [[मुख्यालय]] पवित्र गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। यहाँ सुप्रसिद्ध संत भिग्रु लंबे समय तक पूजा का स्थान रहा है। यहा पर गंगा नदी प्रवाह उत्तर दिशा की ओर है <br />
 
'''हथगाम'''<br /> यह महान स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री [[गणेश शंकर विद्यार्थी]] ऐवम उर्दू के शायर श्री इकबाल वर्मा का जन्म स्थान है। इस् स्थान पर राजा जयचंद की हथशाला थी। और सिखों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी की तपोस्थली होने का गौरव प्राप्त है।<br />
'''हथगाम'''<br />
'''हथगाम'''<br /> यह महान स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री [[गणेश शंकर विद्यार्थी]] ऐवम उर्दू के शायर श्री इकबाल वर्मा का जन्म स्थान है। इस् स्थान पर राजा जयचंद की हथशाला थी। और सिखों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी की तपोस्थली होने का गौरव प्राप्त है।<br />
 
'''रेन्ह्'''<br />
यह [[महाभारत]] कालीन गाँव है और यमुना नदि के किनारे पर बसा हुआ है। दो दशकों पहले एक बहुत पुरानी [[भगवान]] [[विष्णु]] की कीमती मिश्र धातु की मूर्ति को इस इस गांव में पाया गया था। अब ये मूर्ति कीर्तिखेडा गांव में एक [[मंदिर]] मे स्थित है और ये गांव बिन्द्की ललौली सड़क पर है। कहा जाता है कि यहां पर क्रिष्ण के बडे भाई बलराम की ससुराल है।<br /><br />{{sisterlinks|फतेहपुर जिला}}
 
'''शिवराजपुर'''<br />यह गांव बिन्दकी के निकट गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। इस गांव में भगवान कृष्ण का एक बहुत पुराना मंदिर है। जो [[मीरा बाई]] का मंदिर के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि ये [[भगवान कृष्ण]] की मूर्ति को [[मीरा बाई]] जो की [[भगवान कृष्ण]] की एक प्रख्यात भक्त और [[मेवाड़]] के शाही परिवार के एक सदस्य थी के द्वारा स्थापित किया गया था।
 
'''तेन्दुली'''<br /> यह गांव चौड्गरा-बिन्दकी सडक पर है। ऐसा मानना है कि यहाँ [[सांप]] के शिकार / [[कुत्ता]] काटे बीमरो का ईलाज बाबा झामदास के [[मन्दिर]] मे होता है।<br />
'''तेन्दुली'''<br />
'''तेन्दुली'''<br /> यह गांव चौड्गरा-बिन्दकी सडक पर है। ऐसा मानना है कि यहाँ [[सांप]] के शिकार / [[कुत्ता]] काटे बीमरो का ईलाज बाबा झामदास के [[मन्दिर]] मे होता है।<br />
 
'''बिन्द्की'''<br /> यह बहुत ही पुराना शहर है जो कि मुख्यालय से लगभग १५ मील दूर है। बिन्दकी का नाम यहा के राजा वेनुकी के नाम पर पडा। यह बहुत ही धर्मनिरपेक्ष शहर है। यहा कि भूमि गन्गा और यमुना नदी के बीच मे होने के कारण बहुत ही उपजाऊ है।
यह् उत्तर प्रदेश के राज्य में एक् एक सबसे पुराना तहसील है। शहीद जोधा सिंह अटैया और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों और प्रसिद्ध [[हिंदी]] कवि राष्ट्र-कवि सोहन लाल द्विवेदी की मात्रभूमि है।<br />
 
'''खजुहा'''<br /> आदि काल मे खजुहा को खजुआ गढ के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का [[मुगल काल]] मे बहुत ही महत्त्व था। [[औरन्गजेब]] के समय पर यह [[इलाहाबाद]] मण्डल की मुख्य छावनी थी। खजुहा को [[भगवान]] [[शिव]] की नगरी के तौर पर भी जाना जाता है। इस छोटे से [[शहर]] में 118 अद्भुत [[शिव]] [[मंदिर]] है| खजुहा कस्बा ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानों को समेटे हुए है। कस्बे के मुगल रोड में विशालकाय फाटक और सरांय स्थित है। जो कस्बे की पहचान बना हुआ है। वहीं कस्बे के स्वर्णिम अतीत के वैभव की दास्तां बयां कर रहा है। मुगल रोड के उत्तर में रामजानकी मंदिर, तीन विशालकाय तालाब, बनारस की नगरी के समान प्रत्येक गली और कुँए अपनी भव्यता की कहानी कह रही है।
'''खजुहा'''
'''खजुहा'''<br /> आदि काल मे खजुहा को खजुआ गढ के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का [[मुगल काल]] मे बहुत ही महत्त्व था। [[औरन्गजेब]] के समय पर यह [[इलाहाबाद]] मण्डल की मुख्य छावनी थी। खजुहा को [[भगवान]] [[शिव]] की नगरी के तौर पर भी जाना जाता है। इस छोटे से [[शहर]] में 118 अद्भुत [[शिव]] [[मंदिर]] है| खजुहा कस्बा ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानों को समेटे हुए है। कस्बे के मुगल रोड में विशालकाय फाटक और सरांय स्थित है। जो कस्बे की पहचान बना हुआ है। वहीं कस्बे के स्वर्णिम अतीत के वैभव की दास्तां बयां कर रहा है। मुगल रोड के उत्तर में रामजानकी मंदिर, तीन विशालकाय तालाब, बनारस की नगरी के समान प्रत्येक गली और कुँए अपनी भव्यता की कहानी कह रही है।
 
इस छोटे से कस्बे में करीब एक सौ अठारह [[शिवालय]] हैं। इसी क्रम में दशहरा मेले में होने वाली रामलीला के आयोजन में [[रावण]] [[पूजा]] भी अलौकिक और अनोखी मानी जाती है। यहां की [[रामलीला]] को देखने के लिए प्रदेश के कोने-कोने से श्रृद्धालु एकत्रित होते हैं। खजुहा कस्बे की [[रामलीला]] जिले में ही नहीं पूरे प्रदेश में ख्याति प्राप्त है।
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[[खजुहा]] की [[रामलीला]] का विशेष महत्व है। जहां [[रावण]] को जलाने के स्थान पर इस की पूजा की जाने की परंपरा है। तांबे के शीश वाले [[रावण]] के पुतले को हजारों दीपों की रोशनी प्रज्वलित करके सजाया जाता है। इसके बाद ठाकुर जी के पुजारी द्वारा [[श्रीराम]] के पहले [[रावण]] की पूजा की जाती है। जहां [[मेघनाथ]] का 25 फिट ऊंचा लकड़ी के पुतले की सवारी कस्बे के मुख्य मार्गों में निकाली जाती है। वहीं 40 फुट लंबा [[कुंभकरण]] व अन्य के पुतले तैयार किए जाते हैं। <br />
 
 
'''हजारी लाल का फाटक'''<br />
1857 से शुरू हुई [[आजादी]] की [[जंग]] के अंतिम मुकाम 1942 में अंग्रेजों [[भारत छोड़ो आंदोलन]] का केन्द्र बिन्दु [[शहर]] के चौक स्थित [[हजारी लाल का फाटक]] था। [[बलिया]] के [[कर्नल भगवान सिंह]] ने जिले के आठ सौ से अधिक देशभक्तों की फौज की कमान संभाली थी। [[झंडा गीत]] के [[रचयिता]] [[श्याम लाल गुप्त पार्षद]] ने आजादी की इस चिंगारी को तेज करने का प्रयास किया। [[शिवराजपुर]] का जंगल क्रांतिकारियों की शरण स्थली था। बताते हैं कि यहीं पर गुप्त रणनीति तय होती थी और फिर अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने के लिये क्रांतिकारियों के दल निकल पड़ते थे।
 
9 अगस्त 1942 को [[भारत छोड़ो आंदोलन]] की शुरुआत हुई थी। प्रथम [[स्वतंत्रता संग्राम]] में जिले की महती भूमिका होने पर 1942 की लड़ाई में पूर्वाचल के जनपदों सहित [[बांदा]] व [[हमीरपुर]] के क्रांतिकारियों ने जिले को ही रणभूमि के रूप में स्वीकारा तभी तो [[बलिया]] के [[कर्नल भगवान सिंह,]] [[चीतू पांडेय]] जैसे क्रांतिकारी यहां के देशभक्तों का साथ देकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को तेज किया। जिले के [[क्रांतिकारी]] [[गुरुप्रसाद पांडेय]], [[बंशगोपाल]], [[शिवदयाल उपाध्याय]], [[दादा दीप नारायण]], [[शिवराज बली]], [[देवीदयाल]], [[रघुनंदन पांडेय]], [[यदुनंदन प्रसाद]], [[वासुदेव दीक्षित]] [[भारत छोड़ो आंदोलन]] का नेतृत्व कर जिले में एक माहौल पैदा कर दिया तभी तो एक-एक करके लगभग आठ सौ से अधिक की फौज क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों की सत्ता को हिला दिया। [[चौक]] स्थित [[हजारीलाल का फाटक]] क्रांतिकारियों के लिये गुप्तगू का मुख्य केन्द्र था। बताते हैं कि यहीं पर [[कानपुर]] व पूर्वाचल के क्रांतिकारी नेता आकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिये क्या करना है इसकी रणनीति बताते थे।
 
अंग्रेजी शासकों को [[हजारी लाल फाटक]] की जानकारी हो गयी थी। कई बार यहां छापा मारकर क्रांतिकारियों को दबोचने के प्रयास किये गये। आखिर क्रांतिकारियों को गुप्त स्थान खोजना ही पड़ा। [[शिवराजपुर]] के जंगल में क्रांतिकारियों का मजमा लगता था। बताते हैं कि अस्सी हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में विस्तारित जंगल को ही क्रांतिकारियों ने अपना ठिकाना बनाया। [[भारत छोड़ो आंदोलन]] की शुरुआत [[गोपालगंज]] के फसिहाबाद स्थल से की गयी। इसके अलावा [[खागा]] [[जीटी रोड]] को भी केन्द्र बिन्दु बनाया गया। [[जहानाबाद]], [[हथगाम]], [[खागा]] सहित दो दर्जन से अधिक स्थानों पर क्रांतिकारियों ने [[धरना]]-[[प्रदर्शन]] कर अंग्रेजों को [[भारत]] छोड़ने के लिये ललकारा। इस दरम्यान लगभग चार सौ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। नेतृत्व करने वाले आधे से अधिक नेता जब जेल चले गये तो [[अंगनू पांडेय]], [[बद्री]] जैसे क्रांतिकारियों ने मोर्चा संभाला।
 
==परिवहन==