"जयचन्द विद्यालंकार": अवतरणों में अंतर

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जयचन्द्र विद्यालंकार भारत में इतिहास की ऐसी प्रतिभा माने जाते हैं कि लोगों ने इतिहास की उनकी मूल धारणाओं तक पहुँचने के लिये विधिवत हिन्दी का अध्ययन किया। उन्हें अपनी धारणाएं हिन्दी में ही सामने रखने की जिद थी।<ref>[https://books.google.co.in/books?id=HQbIYRU25IcC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false गुजरा कहाँ कहां से (पृष्ट १४२)] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20160820200811/https://books.google.co.in/books?id=HQbIYRU25IcC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false |date=20 अगस्त 2016 }} (गूगल पुस्तक ; लेखक- कन्हैयालाल नन्दन)</ref>
 
नेशनल कॉलेज में अध्यापन के दौरान ही जयचंद्रजी ने पंजाब प्रांत में हिंदी-नागरी के प्रचार-प्रसार का काम जोरों से किया। वे [[हिंदी साहित्य सम्मेलन]] से जुड़े रहे। सम्मेलन द्वारा तीस के दशक में आयोजित की गई इतिहास परिषदों के वे कई बार सभापति रहे। आज़ादी के बाद सन 1950 में [[कोटा]] में हुई हिंदी साहित्य सम्मेलन के वार्षिक अधिवेशन के वे सभापति भी रहे।
 
== परिचय ==