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<!-- कृप्या इस लाइन के नीचे सम्पादन करे। -->सतनामी राजा गुरु बालकदास जी का शहादत दिवस "28 मार्च" को सतनामी समाज मनाता है
 
" सतनामी राजा " गुरू गोसाई बालकदास"
---------------------------------------परमपूज्य गुरू घासीदास बाबा जी के द्वतीय सुपूत्र गुरू बालकदास जी का जन्म, जन्माष्मी के दिन हुआ था । इसलिये सतनामी लोग पहले जैतखाम में जन्माष्टमी के दिन झंडा चढ़ाते थे जिसे पालो चढ़ाना कहा जाता था ।
 
गुरू बालकदास जी, गुरू घासीदास जी के साथ सामाजिक बुराइयों को दुर कर समाज को दिशा देने में लगे थे जिसके लिये महंत,राजमहंत, दीवान, भंडारी, साटीदार आदि बनाकर सतमार्ग पर चलने के लिये नियम बनाये और उस नियम पर चलने के लिये प्रेरित करते रहे ।
 
गुरू बालकदास जी, अपने पिता, गुरू घासीदास जी के अनुयायीयों को सतनाम धर्म पालन करने के लिये, अमृत वाणियों का प्रचार कर कट्टरता से पालन करने के लिये आचार संहिता बनाकर समाज सुधार में लगे थे परिणाम स्वरूप समाज में गुरू बालकदासजी, गुरू बंशावली की गरिमा को बनाये रखते हुये गुरूजी के अनुयायियों को एकजुट करने में सफल हुये ।
 
गुरू बालकदास जी रामत के रूप में गाड़ी, घोड़ा, हाथी के साथ अपने महंतो, दीवानो को लेकर निकलते थे । समाज सुधार के साथ सामाजिक न्याय भी करते थे और अभियुक्त को दंड भी दिया करते थे ।
 
गुरू बालकदास जी कुँआ बोड़सरा को अपना कार्य स्थल चुने, गुरूजी का बहुतायत समय रामत घुमने में ब्यतित हुये ।
 
गुरूजी का विवाह ढारा नवलपुर (बेमेतरा) के निवासी मोतीलाल की सुपुत्री नीरा माता के साथ हुआ । नीरामाता, भूजबल महंत के बहिनी थी । उसी वर्ष गुरूजी ने चितेर सिलवट के बेटी राधा संग भी ब्याह किये । गुरूजी और राधा माता से साहेबदास जी का जन्म हुआ ।
 
भंडारपुरी में गुरूजी ने चौखण्डा महल बनवाया जिसमें तलघर, राजदरबार, मुसािफर खाना, पूजा स्थल, उपचार गृह, दीक्षा गृह बनवाये । महल में स्वर्ण कलश और अंगना में जोड़ा जैतखाम का स्थापना किये, एक जैतखाम को चांद और दुसरे को सुरूज नाम दिये। शीला सोत तो आज भी विद्यमान है जहाँ गुरू घासीदास जी ने अपने प्रथम पुत्र गुरू अमरदास जी को सृष्टि रचना का ज्ञान चऊका पोतकर सुनाये थे और जोड़ा जैतखाम का स्थान भी सुरक्षित है ।
 
उस समय गुरू जी के साथ रहने वाले संत जनो द्वारा यह साखी बहुतायत प्रयोग में लाया जाता था :
 
पाठ पिढ़ुली दो जोड़ी खंभा, अधर जोत जलाइये।
शीला सोत म चऊका पोते, धन सतनाम कहाइये।।
 
गुरूजी रामत घुमते समय संतो को उपदेश के साथ साथ सतनाम की दीक्षा भी देते थे, जनेऊ पहिनाये, कंठी बांधे इस तरह समाज को सतनाम धर्म के सच्चे अनुयायी बनाते गये ।
 
सतनामी एवम् सतनाम धर्म :-
 
सत से तात्पर्य मुख्य कार्य और नामी से तात्पर्य पहचान । जिस तरह लोहे के कार्य करने वाले को लुहार, कपड़ा धोने के कार्य करने वाले को धोबी, रखवाली करने वाला को रखवाला, गाना गाने वाले को गायक, नृत्य करने वाले को नृतक, नशा करने वाले को नशेड़ी, शराब पिने वाले को शराबी, पोथी पुराण के ज्ञानी को पंडित, राज करने वाले को राजा, सेवा करने वाले को सेवक, तपस्या करने वाले को तपस्वी, ठीक उसी तरह "सतकर्म" करने वाले को "सतनामी" कहते हैं।
 
सतनामी नही तो जाति है और नही कोई धर्म, वह तो सतनाम के मानने वालो की पहचान है जिसे आज सतनामी जाति के नाम से जाना जाता है । सतनामी वह है जिसका कर्म सत्य पर आधारित हो और जो सतनाम धर्म को मानता हो ।
 
सतनाम धर्म में छोटा-बड़ा, ऊँच-नीच, छुआ-छुत का कोई स्थान नही है । सतनाम धर्म मानवता वाद पर आधारित है । बाबा गुरू घासीदास जी ने सतनाम धर्म का ब्याख्या इस रूप में किये हैं :
 
"मानव-मानव एक समान"
 
मनखे मनखे एक ये, नइये कछु के भेद ।
जउन धरम ह मनखे ल एक मानीस, उही धरम ह नेक ।।
 
धर्म :-
सच्चा धर्म वही है जिसमें सबका कल्याण हो, जो किसी को किसी भी तरह से छोटा-बड़ा, ऊँच-नीच न समझे । जिस धर्म में मानव को मानव नही समझा जाता, उसके साथ अपनत्व का व्यवहार नही किया जाता वह धर्म, धर्म नही बल्कि धर्म के नाम पर अपने स्वार्थ पूर्ती के लिये रचा गया साजिस है ।
 
सतनाम् धर्म में ऐसा किसी भी प्रकार की खामियाँ नही दिखती जो हमारे मन में प्रश्न पैदा करे । सतनाम् धर्म का संक्षिप्त में मुख्य विशेषतायें निम्न है ।
 
१. सतनाम धर्म प्रत्येक मानव को मानव का स्थान देता है ।
२. सतनाम धर्म में न कोई छोटा और न कोई बड़ा होता है, इसमें सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है ।
 
३. जो ब्यक्ति सतनाम् धर्म को ग्रहण कर लेता है, उसके साथ उसी दिन से समानता का ब्यवहार जैसे बेटी देना या बेटी लेना प्रारम्भ हो जाता है ।
 
४. सतनाम् धर्म किसी भी जाति या धर्म का अवहेलना नही करता ।
 
५. सतनाम् धर्म हमेशा सच्चाई के पथ पर चलने की शिक्षा देता है ।
 
६. सतनाम् धर्म का प्रतीक चिन्ह जैतखाम है ।
 
७. सतनाम् धर्म में ७ अंक को शुभ माना जाता है ।
 
८. सतनाम् धर्म के मानने वाले दिन सोमवार को शुभ मानते है, इसी दिन परम पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी का अवतार हुआ था ।
 
९. सतनाम् धर्म में गुरू गद्दी, सर्व प्रथम पूज्यनीय है ।
 
१०. सतनाम् धर्म में निम्न बातों पर विशेष बल दिया जाता है :
 
A. सतनाम् पर विश्वास रखना ।
 
B. जीव हत्या नही करना ।
 
C. मांसाहार नही करना ।
 
D. चोरी, जुआ से दुर रहना ।
 
E. नशा सेवन नही करना ।
 
F. जाति-पाति के प्रपंच में नही पड़ना ।
 
G. ब्यभीचार नही करना ।
 
११. सतनाम् धर्म के मानने वाले एक दुसरे से मिलने पर "सतनाम" "जय सतनाम" "साहेब सतनाम" कहकर अभिवादन करते हैं ।
 
१२. सतनाम् धर्म में सत्यपुरूष पिता सतनाम् को सृष्टि का रचनाकार मानते हैं ।
 
१३. सतनाम् धर्म निराकार को मानता है, इसमें मूर्ती पूजा नही किया जाता ।
 
१४. सतनाम् धर्म में प्रत्येक ब्यक्ति "स्त्री-पुरूष" जिसका विवाह हो गया हो, गुरू मंत्र (कान फुकाना" लेते हैं।
 
१५. सतनाम् धर्म में पुरूष कंठी-जनेऊ और महिलायें कंठी धारण करती हैं।
 
१६. सतनाम् धर्म में मृत ब्यक्ति को दफनाया जाता है ।
 
१७. सतनाम् धर्म में पुरूष वर्ग का दशगात्र दश दिन में और महिला वर्ग का नौवे दिन में किया जाता है ।
 
१८. सतनाम् धर्म में मृतक शरीर को दफनाने के लिये ले जाने से पहले पुरूष वर्ग को पूर्ण दुल्हा एवं महिला वर्ग को पूर्ण दुल्हन के रूप में श्रंृगार करके ले जाया जाता है ।
 
१९. परिवार के कुल गुरू जिससे कान फुकाया "नाम पान" लिया रहता है साथ ही मृतक के भांजा को दान पुण्य दिया जाता है ।
 
२०. माताओ को जब पुत्र या पुत्री की प्राप्ति होती है तो उसे छः दिन में पूर्ण पवित्र माना जाता है ।
 
२१. सतनाम् धर्म में महिलाओ को पुरूष के जैसा हि समानता का अधिकार प्राप्त है ।
 
२२. सतनाम् धर्म में लड़के वाले पहले लड़की देखने जाते हैं ।
 
२३. सतनाम् धर्म में दहेज लेना या दहेज देना पूर्ण रूप से वर्जित है ।
 
२४. लड़के वाले लड़की पक्ष के परिवार वालो को नये वस्त्र देता है साथ ही दुल्हन को उसके सारे सृंगार का समान दिया जाता है ।
 
२५. सतनाम धर्म में सात फेरे होते हैं जिसमें दुल्हन, दुल्हे के आगे आगे चलती है ।
 
२६. सतनाम् धर्म में शादी होने पर सफेद कपड़ा पहनाकर तेल चढ़ाया जाता है ।
 
२७. दुल्हे का पहनावा "जब बारात जाता है" सफेद रंग का होता है । पहले मुख्य रूप से सफेद धोती, सफेद बंगाली और सफेद पगड़ी का चलन था परन्तु आज कल लोग अपने इच्छानुसार वस्त्र का चुनाव कर रहे हैं परन्तु एक बात अवश्य होनी चाहिये कि जब फेरा "भांवर" हो तो सतनाम् धर्म के अनुसार सफेद वस्त्र जरुर पहनना चाहिये ताकि धर्म का पालन हो और शादी सतनाम् धर्म के अनुरूप हो ।
 
२८. दुल्हन के साड़ी व ब्लाउज हल्का पिले रंग का होता है ।
 
२९. सतनाम् धर्म में स्वगोत्र के साथ विवाह करना सक्त मना है ।
 
"नियम और संस्कार को संक्षिप्त में बताया गया है, परन्तु इतने से ही ज्ञानी जन विस्तृत में समझ सकते हैं"
 
परम् पूज्य बाबा गुरू घासीदास जी के द्वितीय पुत्र राजा गुरू बालकदास जी के सतनाम आंदोलन का असर इतना अधिक हुआ कि अंग्रेजो ने सन् १८२५ में पहली बार शिक्षा का द्वार हिन्दु धर्म में शुद्र कहे जाने वालो के लिये खोले । गुरू बालकदास जी के एकता और समरसता के आंदोलन से अंग्रेज प्रभावित होकर उन्हे राजा घोषित कर हांथी भेंट किये साथ ही अंग रक्षक रखने कि अनुमति भी दिये ।
िशक्षा के क्षेत्र में हुये इस परिवर्तन कानून जिसका पुरोधा हमारे गुरू जी रहे हैं । साथीयो धन्य हैं जो हम ऐसे महान गुरू के अनुयायी है....!
आज भी अंग्रेजो द्वारा, गुरू बालकदास जी को दिये उपहार स्वरूप अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र......भंडारपुरी में जहाँ राजा गुरू निवास करते थे, वहाँ सुरक्षित रखा हुआ है, गुरू वंशज, गुरू बालदास जी के संरक्षण में.......!
यह वही वस्त्र और शस्त्र है, जिसे अंग्रेजो ने सतनामी राजा गुरू बालकदास जी को उपहार में प्रदान किये थे , जिसे गुरू वंशज ....प्रत्येक वर्ष में एक बार.....धारण करके संतो के सामने उपस्थित होते हैं ताकि संत समाज को राजा गुरू बालकदास जी द्वारा किये अदम्य और अनुकरणीय कार्य को याद दिलाया जा सके !
जिससे समाज में नई जोश और नई चेतना का संचार होते रहे......!
 
28 मार्च 1860 को सतनामी समाज के राजा गुरू बालकदास जी का घूर्त, पाखण्डी, अकुलीन ब्यक्तियों द्वारा औंराबांधा में कपट पूर्वक सतनाम आंदोलन को दबाने के लिये गुरू बालकदास जी को समाज के खातिर बलिदान कर दिये। और समाज का विकास जो तिव्र गति से हो रहा था वह अचानक रुक सा गया, लेकिन गुरू बालकदास जी के अनुयायी उग्र रूप से असमाजिक तत्वो के लोगो के साथ संघर्ष करने लगे, जहां भी सतनामी समाज के उपर कुछ भी अन्याय अत्याचार होता तो एकजुटता के साथ मिलकर वे लोग मुकाबला करते थे । िफर कुछ समय पश्चात राजा गुरू बालकदास जी के छोटे भाई आगरदास दास जी ने समाज को एक सुत्र में बांधने का कार्य तिव्र गति से प्रारम्भ कर दिये, गुरू बालकदास जी के मौत से समाज में रोष ब्याप्त था जब गुरू आगरदास जी ने गुरू का सत्ता संभाले तो समाज के लोग उनका साथ देने के लिये तन मन धन से आगे आने लगे । गुरूओ ने रामत प्रथा को आधार मानते हुये अपना अभियान को गाँव गाँव तक पँहुचाने लगे जिससे समाज आगे बढ़ते ही रहा । परन्तु उसी समय कोर्ट कचेहरी के चक्कर में सतनामी समाज के लोगो को अभियुक्त बनाकर परेशान करने का भी साजिश रचने लगे, इससे यह हुआ कि समाज के धनी लोगो का पैसा कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने में बर्बाद होते गये और समाज कमजोर होने लगा । आज भी आप लोगो ने देखा व सुना होगा कि छत्तीसगढ़ के जेलो में सतनामीयो की संख्या ज्यादा है । इन्ही सबको देखते हुये गुरू परिवार के लोगो ने राजनिती का सहारा लेकर समाज को आगे बढ़ाने का सोचा और राजनिती में प्रवेश कर गये । जगत गुरू अगमदास जी, गुरू माता ममतामयी मिनीमाता ने वह सब कुछ जो समाज खो चुका था उसे पुनः पटरी पर लाने का कार्य किये अपनी कुशलता के दम पर मिनीमाता ने बहुत से अनुकरणीय कार्य समाज के लिये किये जिनको समाज कभी भी भूल नही सकता ।