"पृथ्वीराज चौहान": अवतरणों में अंतर

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पृथ्वीराज चौहान की कहानियां पढ़ कर पीढ़ियां बड़ी हुई है और उन्हें इतिहासकारों के अनुसार क्षत्रिय राजपूत ही माना जाता है।
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| alt = पृथ्वीराज चौहान
| caption = अजमेर में पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति
| succession = [[अजमेर]] ,एवं [[दिल्ली]] एवं उत्तर भारत के राजा
| reign = 1178–1192.CE{{circa|1178}}–1192
| dynasty = [[चौहान वंश]]
| predecessor = [[महाराज सोमेश्वर]]
| successor = [[महाराज गोविंदाराज चतुर्थ]]
| religion = [[सनातन हिन्दू धर्म]]
}}
'''पृथ्वीराज तृतीय''' (शासनकाल: 1166–11921178–1192) जिन्हें आम तौर पर '''पृथ्वीराज चौहान''' कहा जाता है, [[चौहान वंश]] के राजा थे। उन्होंने वर्तमान उत्तर-पश्चिमी भारत में पारंपरिक चौहान क्षेत्र [[सपादलक्ष]] सहित हरियाणा, पंजाब, लाहौर पर शासन किया। उन्होंने वर्तमान राजस्थान, हरियाणा, और दिल्ली और पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से पर भी नियंत्रण किया। उनकी राजधानी अजयमेरु (आधुनिक [[अजमेर]]) में स्थित थी, परन्तुहालांकि इनकेमध्ययुगीन नानालोक जोकिंवदंतियों दिल्लीने केउन्हें राजाभारत उनकीके कोईराजनीतिक सन्तानकेंद्र नहींदिल्ली थी,के औरराजा वहके पृथ्वीराजरूप केमें कौशलवर्णित सेकिया भलीहै भांतिजो परिचितउन्हें थे।पूर्व-इस्लामी इसलिएभारतीय उन्होंनेशक्ति पृथ्वीराजके चौहानप्रतिनिधि कोके दिल्लीरूप कामें शासनचित्रित सौपकरते दिया।हैं।
 
पृथ्वीराज चौहान की कहानियां पढ़ कर पीढ़ियां बड़ी हुई है और उन्हें इतिहासकारों के अनुसार क्षत्रिय राजपूत ही माना जाता है।
शुरुआत में पृथ्वीराज ने कई पड़ोसी हिन्दू राज्योराज्यों परके विजयखिलाफ प्राप्तसैन्य कीसफलता हासिल की। विशेष रूप से वह [[चन्देल]] राजा [[परमर्दिदेव]] के खिलाफ सफल रहे थे। उन्होंने मुस्लिम आक्रांता मोहम्मद [[ग़ोरी राजवंश|ग़ोरी]] के शासक [[मोहम्मद ग़ोरी]] के प्रारंभिक आक्रमणों को भी सिर्फ रोक बल्कि उसे 16 बार पराजित किया ।रोका। हालाँकि, 1191 1192 में तराइन[[तराईन केका पहलेद्वितीय युद्ध|तराइन की दूसरी लड़ाई में]] पृथ्वीराजग़ोरी ने गोरीपृथ्वीराज को बुरीहराया तरहऔर सेकुछ पराजितही कियासमय औरबाद परंतुउसे तराइनमार केेडाला। दूसरे युद्धतराइन में उनकी हार को भारत की इस्लामी आतंकवादियोंविजय की घुसपैठ संभव हुुई यहमें एक ऐतिहासिक घटना के रूप में देखा जाता है।औरहै और कई अर्ध-पौराणिक लेखनों में इसका वर्णन किया गया है। इनमें सबसे लोकप्रिय ''[[पृथ्वीराज रासो]]'' है, जो उन्हें "राजपूत" के रूप में प्रस्तुत करता है।<ref>[https://books.google.co.in/books?id=U6DpAAAAMAAJ&dq=prithviraj+raso+rajput&focus=searchwithinvolume&q=Rajput+prithviraja James Tod (Rajasthan)]</ref><ref>[https://books.google.co.in/books?id=uWcOAQAAMAAJ&q=rajput+prithviraj+chauhan&dq=rajput+prithviraj+chauhan&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwitvtOs75_uAhXUXSsKHcRTDfg4FBDoATAFegQIAhAC Encyclopedia Indica : Pelican Creations International (Noida, India)]</ref>
 
== जानकारी के स्रोत ==
पृथ्वीराज के शासनकाल के दौरान के शिलालेख कई संख्या में कम हैं और स्वयं राजवंश राजा द्वारा जारी नहीं किए गए हैं।{{sfn|Cynthia Talbot|2015|p=38}} उनके बारे में अधिकांश जानकारी मध्ययुगीन कवियों और लेखकोंपौराणिक वृत्तांतों से आती है। तराइन की लड़ाई परके मुस्लिम खातों के अलावा हिन्दू और जैन लेखकों द्वारा कई मध्ययुगीन महाकाव्य में उनका उल्लेख किया गया है। इनमें ''[[पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम्|पृथ्वीराज विजय]]'', ''[[हम्मीर महावाक्य]]'' और ''[[पृथ्वीराज रासो]]'' शामिल हैं। इन ग्रंथों में पूर्णस्तुतिपूर्ण सम्बन्धी विवरण हैं और इसलिए यह पूरी तरह से विश्वसनीय है।नहीं ''[[पृथ्वीराजहैं।{{sfn|R. रासो]]''B. औरSingh|1964|p=162}} ''[https://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%AF पृथ्वीराज विजय]'' पृथ्वीराज के शासनकाल से एकमात्र जीवित साहित्यिक पाठ है। ''पृथ्वीराज रासो'' जिसमेजिसने पृथ्वीराज चौहानको केएक प्रारंभिकमहान जीवन और कौशलराजा के बारेरूप में बतायालोकप्रिय गयाकिया है। और यह उनकेको बचपनराजा के मित्रदरबारी कवि [[चंद बरदाई]] द्वारा लिखा गयाकहा जाता है। हालांकि, यह भारतअतिरंजित कालेखनों [[पहला हिन्दी महाकाव्य]]से लेखभरा है जिनमें से कई इतिहास के उद्देश्यों सेके कईलिए महत्वपूर्णबेकार जानकारीहैं।{{sfn|R. भी है।B. Singh|1964|p=162}}
 
पृथ्वीराज का उल्लेख करने वाले अन्य वृत्तांत और ग्रंथों में ''[[प्रबन्ध चिंतामणि]]'', ''[[प्रबन्ध कोष]]'' और ''[[पृथ्वीराज प्रबन्ध]]'' शामिल हैं। उनकी मृत्यु के सदियों बाद इनकी रचना की गई थी।थी और जैसाइसमें किअतिशयोक्ति इनके नाम से प्रदर्शित हो रहा हैऔर किकाल यहदोष ग्रंथवाले प्रबंधितउपाख्यान हैं।{{sfn|R. इसB. कारण से इसे इतिहासकारों ने अस्वीकार कर दिया है।Singh|1964|p=162}} पृथ्वीराज का उल्लेख जैनों की एक [[पट्टावली]] में भी किया गया है जो एक संस्कृत ग्रन्थ है। इसमें जैन भिक्षुओं की जीवनी है। जबकि इसे 1336 में पूरा कर लिया था लेकिन जिस हिस्से में पृथ्वीराज का उल्लेख है वह 1250 के आसपास लिखा गया था। चंदेला कवि जगनिका का आल्हा-खंड (या आल्हा रासो) भी चंदेलों के खिलाफ पृथ्वीराज के युद्ध का अतिरंजित वर्णन प्रदान करता है।{{sfn|R. B. Singh|1964|p=167}}
 
== प्रारंभिक जीवन ==