"संत मत": अवतरणों में अंतर
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उत्तर भारतीय संतों की पहली पीढ़ी जिसमें [[कबीर]] और [[रविदास]] शामिल हैं 15वीं शताब्दी के मध्य में बनारस में पैदा हुए. उनसे पूर्व 13वीं और 14वीं शताब्दी में दो मुख्य व्यक्तित्व [[नामदेव ]]और [[रामानंद]] हुए. संत मत परंपरा के अनुसार रामानंद वैष्णव साधु थे जिन्होंने कबीर, रविदास और अन्य संतों को नाम दान दिया. रामानंदी भिक्षुओं की परंपरा, उसके बाद के अन्य संत और बाद के सिखों द्वारा रामानंद की कथा को अलग-अलग तरह से बताता है. इतनी जानकारी मिलती है कि रामानंद ने सभी जातियों से शिष्य स्वीकार किए, यह एक ऐसा तथ्य है जिसका रूढ़िवादी हिंदुओं ने उस समय विरोध किया था. संत मत के अनुयायी मानते हैं कि रामानंद के शिष्यों ने संतों की पहली पीढ़ी तैयार की.<ref name=हीज़>हीज़, पीटर, ''इंडियन रिलीजियंस: अ हिस्टॉरिकल रीडर ऑफ स्पिरीचुअल एक्सप्रेशन एंड एक्सपीरिएंस'', (2002) पृ.359. NYU Press, ISBN 0-8147-3650-5</ref>
इन संतों ने एक संकृति का विकास किया जो समाज में हाशिए पर पड़े मनुष्यों के निकट थी जिसमें महिलाएँ, [[दलित]], [[अछूत]] और अतिशू्द्र शामिल थे. कुछ अधिक प्रसिद्ध संतों में [[नामदेव]] (d.1350), [[कबीर]] (d.1518), [[नानक]] (d.1539), [[
संतों की पंरपरा गैर-संप्रदायवादी रही यद्यपि माना जाता है कि कई संत कवियों ने अपने संप्रदाय स्थापित किए. इनमें से कइयों के नाम के साथ संत जुड़ा है लेकिन उनके शिष्यों ने आगे चल कर [[कबीर पंथ]], दादू पंथ, दरिया पंथ, अद्वैत मत, आध्यात्मिकता का विज्ञान(www.sos.org) और राधास्वामी जैसे पंथ चलाए.<ref name=वाउडेविले>वाउडेविले, चार्लट. ''संत मत: संतिज़्म इज़ द यूनिवर्सल पाथ टू सैंक्टिटी'' in ''संत मत:स्टडीज़ इन डिवोशनल ट्रेडीशन ऑफ इंडिया'' in शोमर के. और मैक्ल्योड डब्ल्यू.एच. (Eds.) ISBN 0-9612208-0-5 </ref>
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