"दीन-ए-इलाही": अवतरणों में अंतर

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ध्यान देने की बात है कि सभी धर्मों के कट्टरपंथी अनुयायियों ने अकबर के उदारतापूर्ण दृष्टिकोण का विरोध किया। इस पर अकबर ने कहा- 'किसी भी साम्राज्य के अंतर्गत यह अनुचित है कि जनता अनेक धर्मों में विभाजित हो। इससे आपस में मतभेद उत्पन्न होता है। जितने धर्म उतने ही दल हैं। उनमें आपस में शत्रुता होती है अतएव सभी धर्मों में समन्वय अपेक्षित है। परंतु इसे ऐसे ढंग से करना चाहिए कि एक होते हुए भी उनकी विशेषता बनी रहे। इससे सभी धर्मों की अच्छाइयाँ बनी रहेंगी और दूसरे धर्मों की विशेषताएँ भी आ जाएँगी। इससे ईश्वर क प्रति आदर बढ़ेगा, लोगों में शांति होगी और साम्राज्य की सुरक्षा भी बढ़ेगी।'
 
== जज़िया बंद == 1564.
योरपीय यात्रियों का कथन है कि अकबर की आँखें इस प्रकार दपती रहतीं मानो सागर पर सूर्य झिलमिला रहा हो। उसकी आवाज ऊँची थी, उसमें एक अनुगूँज होती थी। कोई भी उसे देखता तो जान जाता कि यही बादशाह है।
जहाँगीर का कथन है कि लोग उसमें साक्षात ईश्वर का तेज पाते थे। वह अट्टहास करता था और उस समय उसका चेहरा हँसी के मारे थोड़ा विकृत हो जाता। उसे क्रोध बहुत ही कम आता। वह अत्यंत धीर था। योरपीय यात्री हैरान थे कि उसके मन की बात चेहरे के भाव से प्रकट ही न होती, पर क्रोध में उसकी आकृति असह्य हो जाती थी। उसके मूँछ के बाल खड़े हो जाते।