"शाकम्भरी": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) छो 2409:4051:B:E81C:77F6:E2BC:2C62:8063 (Talk) के संपादनों को हटाकर Neil Sagri के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया टैग: वापस लिया |
Neil Sagri (वार्ता | योगदान) No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन उन्नत मोबाइल संपादन |
||
पंक्ति 42:
==शक्तिपीठ शाकुम्भरी देवी सहारनपुर==
माँ श्री शाकंभरी भगवती का अति पावन प्राचीन सिद्ध शक्तिपीठ [[शिवालिक]] पर्वतमाला के जंगलों में एक बरसाती नदी के किनारे है। जिसका वर्णन स्कंद पुराण,मार्कंडेय पुराण,भागवत आदि पुराणों मे मिलता है। माँ का यही शक्तिपीठ देवी का नित्य स्थान है। कहा जाता है कि माता यहाँ स्वयंभू स्वरूप मे प्रकट हुई थी। जनश्रुतियों के अनुसार जगदंबा के इस धाम के प्रथम दर्शन एक चरवाहे ने किये थे। जिसकी समाधि आज भी मंदिर परिसर मे बनी हुई है। माँ के दर्शन से पुर्व यहाँ देवी के अनन्य भक्त [[बाबा भूरादेव]] के दर्शन करने का विधान है।
[[File:Dakshayani.jpg|thumb|सती का शीश शाकम्भरी देवी स्थान पर गिरा था]]
शाकम्भरी देवी माँ के वैसे तो अनेक धाम है। लेकिन सहारनपुर की जंगली पहाडियों मे विराजमान सिद्ध भवन की छटा ही कुछ निराली है। यह स्थान समुद्रतल से लगभग 448 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है पहाड़ी की तलहटी मे माँ का मंदिर है। पंद्रह-सौलह सीढियाँ चढने के पश्चात माँ के अद्भुत स्वरूप के दर्शन होते हैं। संगमरमर के चबुतरे पर जिस पर चांदी मढी हुई है माता अपने चारों स्वरूपों और बाल गणेश के साथ विराजमान है। माता के चारों रूप सुंदर पोशाकों सोने व चांदी के आभुषणो से अलंकृत है। माँ के दायीं और भीमा एवं [[भ्रामरी देवी]] तथा बायीं और शताक्षी देवी प्रतिष्ठित है। देश मे ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ दुर्गा के चार रूपो के दर्शन एक साथ होते है। माँ के दर्शन से पुर्व भुरा देव बाबा के दर्शन करने होते है। जिन्होंने देवासुर संग्राम में शामिल होकर अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। माता जगदंबा ने प्रसन्न होकर भुरादेव को यह वरदान दिया था कि जो भी प्राणी मेरे दर्शनार्थ आएगा वह प्रथम भुरादेव के ही दर्शन करेगा।अर्थात बगैर भुरादेव के दर्शन माता को अपनी पुजा स्वीकार नहीं होती। माँ श्री शाकम्भरी देवी जी साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा है। शाकम्भरी देवी जी भगवान विष्णु के ही आग्रह करने पर शिवालिक की दिव्य पहाडियों पर स्वयंभू स्वरूप मे प्रकट हुई थी। माता शाकम्भरी के स्वरूप का विस्तृत वर्णन दुर्गा सप्तशती के मुर्ति रहस्य अध्याय मे मिलता है। कहा जाता है कि महाशक्ति ने आयोनिजा स्वरूप मे प्रकट हो शताक्षी अवतार धारण किया। देवी शताक्षी रचना का प्रतीक है। शताक्षी माँ ने ही शाकों द्वारा सबकी बुभुक्षा को शांत किया और श्री शाकम्भरी देवी कहलाई जोकि पालन का प्रतीक है। शाकम्भरी देवी ने ही दुर्गमासुर दानव का संहार करके जगत को शांति प्रदान की और दुर्गा कहलाई जोकि संहार का प्रतीक है। अतः जगदंबा शाकम्भरी देवी जी ही अप्रत्यक्ष रूप से परमशक्ति परमेश्वरी महामाया है। माँ का शक्तिपीठ अति प्राचीन है। माता के बुलाने पर भक्तजन चुंबकीय शक्ति की तरह दरबार की और खींचें चले आते है। माता के भवन की परिक्रमा मे काल भैरव,ज्वाला देवी,काली माता,शिवजी,गणेश भगवान, हनुमान जी नैना चरवाहा आदि के लघु मंदिर बने हुए है। जगत को तारने वाली और शरणागत का परित्राण करने वाली महाशक्ति जगत माता चंडिका साक्षात माँ शाकम्भरी ही है। माँ अंबा भगवती भवानी भुवनेश्वरी भंडारे भरने वाली है।माँ सर्वव्यापी और सर्वविदित है पुरातन काल मे माँ शाकम्भरी देवी ही हिमालय की पर्वत शृंखलाओं मे प्रकट हुई थी अतः माँ का सर्वाधिक प्राचीनतम तीर्थ यही है और सतयुग मे देवी सती का शीश भी यहाँ गिरा जो इसकी प्राचीनता की पुष्टि करता है।
|