"सांभर पीठ": अवतरणों में अंतर

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==शाकम्भरी माता की कथा==
राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर साम्भर कस्बे में स्थित मां शाकंभरी मंदिर करीब 2500 साल पुराना माना जाता है हालांकि मंदिर की स्थापना आठवीं शताब्दी मे हुई थी
शाकम्भरी देवी की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्‍वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक मचाया, तब पृथ्वी पर लगातार सौ वर्ष तक वर्षा न हुई। तब अन्न-जल के अभाव में समस्त प्रजा मरने लगी। समस्त जीव भूख से व्याकुल होकर मरने लगे। उस समय समस्त देवों और मुनियों ने मिलकर हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रृंखला की प्रथम शिखा पर माँ भगवती की उपासना की। जिससे आयोनिजा भवानी जी ने एक नए रूप में अवतार लिया और उनकी कृपा से वर्षा हुई। इस अवतार में महामाया ने जलवृष्टि से पृथ्वी को हरी शाक-सब्जी और फलों से परिपूर्ण कर दिया, जिससे पृथ्वी के समस्त जीवों को जीवनदान प्राप्त हुआ। शाक उत्पन्न करने के कारण शाकम्भरी नाम पड़ा। इसके बाद सारा संसार हराभरा हो गया। राजस्थान मे वैसे तो शाकम्भरी माता चौहान वंश की कुलदेवी है लेकिन, माता को सभी जाति और समाज के लोग पूजते हैं। शाकम्भरी दुर्गा का अवतार है। शाकम्भरी मां के देशभर में तीन शक्तिपीठ है। माना जाता है कि इनमें सहारनपुर शक्तिपीठ के बाद सबसे प्राचीन शक्तिपीठ यहीं है। मंदिर में भादवा सुदी अष्टमी को मेला आयोजित होता है। दोनों ही नवरात्रों में माता के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं। मां शाकम्भरी का वर्णन महाभारत और शिव महापुराण में भी मिलता है। [[File:शाकम्भरीदेवी.jpg|thumb|सहारनपुर मुख्य मंदिर मे विराजमान शाकम्भरी देवी]]
 
==संदर्भ==