"यशवंतराव होलकर": अवतरणों में अंतर

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उन्होंने अन्य शासकों से एकबार फिर एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने अकेले दम पर अंग्रेजों को छठी का दूध याद दिलाने की ठानी। 8 जून 1804 ई. को उन्होंने अंग्रेजों की सेना को धूल चटाई। फिर 8 जुलाई 1804 ई. में कोटा से उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया।
[[File:Yeshwantrao holkar.jpg|thumb|श्रीमंत चक्रवर्ती महाराजा यशवंतराव होळकर.<ref>{{Cite book|url=https://www.amazon.in/Maharaja-Yashwant-Rao-Holkar-Swatantra/dp/1642498696|title=Maharaja Yashwant Rao Holkar: Bhartiya Swatantra Ke Mahanayak|last=Holkar|first=Ghanshyam|date=2018-05-31|publisher=Notion Press, Inc.|isbn=9781642498691|edition=1st|language=hi|access-date=17 अगस्त 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20180626163941/https://www.amazon.in/Maharaja-Yashwant-Rao-Holkar-Swatantra/dp/1642498696|archive-date=26 जून 2018|url-status=dead}}</ref>]]
11 सितंबर 1804 ई. को अंग्रेज जनरल वेलेस्ले ने लॉर्ड ल्युक को लिखा कि यदि यशवंतराव पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो वे अन्य शासकों के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देंगे। इसी मद्देनजर नवंबर, 1804 ई. में अंग्रेजों ने दिग पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भरतपुर के महाराज रंजित सिंह के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों को उनकी नानी याद दिलाई। यही नहीं इतिहास के मुताबिक उन्होंने 300 अंग्रेजों की नाक ही काट डाली थी।