"समानता": अवतरणों में अंतर

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दो या दो से अधिक लोगों या समूहों के बीच संबंध की एक स्थिति ऐसी होती है जिसे समानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।  लेकिन, एक विचार के रूप में समानता इतनी सहज और सरल नहीं है, क्योंकि उस संबंध को परिभाषित करने, उसके लक्ष्यों को निर्धारित करने और उसके एक पहलू को दूसरे पर प्राथमिकता देने के एक से अधिक तरीके हमेशा उपलब्ध रहते हैं। अलग-अलग तरीके अख्तियार करने पर समानता के विचार की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ उभरती हैं। प्राचीन यूनानी सभ्यता से लेकर बीसवीं सदी तक इस विचार की रूपरेखा में कई बार ज़बरदस्त परिवर्तन हो चुके हैं। बहुत से चिंतकों ने इसके विकास और इसमें हुई तब्दीलियों में योगदान किया है जिनमें अरस्तू, हॉब्स, रूसो, मार्क्स और टॉकवील प्रमुख हैं।
 
== परिचयSamanta ki sankalpna ==
समानता किसी हद तक आधुनिक अवधारणा है। आज मानव-समाज आदमी-आदमी के बीच जिस तरह समानता की आवश्यकता महसूस करता है उस तरह उसने हमेशा महसूस नहीं किया है। पश्चिमी दुनिया में राजाओं को राजक करने का दैवी अधिकार प्राप्त माना जाता था और ऐसा ही अपने-अपने क्षेत्रों की हद तक सामंत श्रीमंतों के संबंध में भी समझा जाता था। उधर पादरी-पुरोहित यह मानते थे कि जैसे सर्वज्ञ वे हैं वैसा कोई और हो ही नहीं सकता। यूनानी काल में समानता स्थापित करने की सीमित और बहुत कमजोर कोशिश ही की गई। आखिरकार सत्रहवीं सदी में यूरोप में अधिकारों और स्वतंत्रता की माँग उठने लगी और अठारहवीं तथा उन्नीसवीं सदियों में समानता की माँग की गई। आरंभ में यह माँग व्यापारियों तथा व्यवसायियों में से नव-धनाढ्यों ने या बुर्जुआ ने की, जिनका कहना था कि जब सामंत श्रीमंतों और राजाओं के साथ-साथ उनके पास भी संपत्ति और आर्थिक रुतवा है तब उनका कानूनी दर्जा उनकी बराबरी का क्यों नहीं है। उदाहरण के लिए टाउनी के शब्दों में इंग्लैंड में वस्तु-स्थिति निम्नलिखित ढंग की थीः