"नादिर शाह": अवतरणों में अंतर

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नादिर का अन्त उसकी बीमारियों से घिरा रहा। वह दिनानुदिन बीमार, अत्याचारी और कट्टर हो चला था। अपने आख़िरी दिनों में उसने जनता पर भारी कर लगाए और यहाँ तक कि अपने करीबी रिश्तेदारों से भी धन की माँग करने लगा था। उसका सैन्य खर्च काफ़ी बढ़ गया था। उसके भतीजे [[अली क़ुली]] ने उसके आदेशों को मानने से मना कर दिया। १९ जून १७४७ में [[मशहद]] के निकट उसके अपने ही अंगरक्षकों ने उसकी हत्या कर डाली।
 
नादिर शाह की उपलब्धियाँ अधिक दिनों तक टिक नहीं सकीं। उसके मरने के बाद अली क़ुली ने स्वयं को शाह घोषित कर दिया। उसने अपना नाम [[आदिलअहमद शाह अब्दाली]] रख लिया। नादिर के मरने के बाद सेना तितर बितर हो गई और साम्राज्य को क्षत्रपों ने स्वतंत्र रूप से शासन करना शुरू कर दिया। यूरोपीय प्रभाव भी बढ़ता ही गया।
 
नादिर को यूरोप में एक विजेता के रूप में ख्याति मिली थी। सन् १७६८ में [[डेनमार्क]] के [[क्रिश्चियन सप्तम]] ने [[सर विलियम जोन्स]] को नादिर के इतिहासकार मंत्री [[मिर्ज़ा महदी अस्तराब्दाली]] द्वारा लिखी उसकी जीवनी को [[फ़ारसी]] से [[फ्रेंच]] में अनुवाद करने का आदेश दिया। १७३९ में उसकी भारत विजय के बाद [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को मुग़लों की कमज़ोरी का पता चला और उन्होंने भारत में साम्राज्य विस्तार को एक मौका समझ कर दमखम लगाकर कोशिश की। अगर नादिर शाह भारत पर आक्रमण नहीं करता तो ब्रिटिश शायद इस तरह से भारत में अधिकार करने के बारे में शायद सोच भी नहीं पाते या इतने बड़े पैमाने पर भारतीय शासन को चुनौती नहीं देते।