"मेघनाद साहा": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र: Meghanaad_saahaa.jpg | right| thumb| प्रसिद्ध वैज्ञानिक '''मेघनाद साहा''']]'''मेघनाद साहा''' ( [[६ अक्तूबर]] [[१८९३]] - [[१६ फरवरी]], [[१९५६]] ) सुप्रसिद्ध [[भारत|भारतीय]] खगोलविज्ञानी (एस्ट्रोफिजिसिस्ट्) थे। वे [[साहा समीकरण]] के प्रतिपादन के लिये प्रसिद्ध हैं। यह समीकरण [[तारा|तारों]] में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है। उनकी अध्यक्षता में गठित विद्वानों की एक समिति ने भारत के राष्ट्रीय शक पंचांग का भी संशोधन किया, जो [[२२ मार्च]] [[१९५७]] (१ चैत्र १८७९ शक) से लागू किया गया। <ref>{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/2008/calender.htm|title=भारतीय कैलेंडर की विकास यात्रा|accessmonthday=[[२१ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएम|publisher=अभिव्यक्ति|language=}}</ref> इन्होंने साहा इन्सटीच्यूट ऑफ न्यूक्लीयर फिजीक्स तथा इन्डियन एसोसीएसन फार द कल्टीभेशन ऑफ साइन्स नामक दो महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना की।
 
साहा का जन्म [[ढाका]] से ४५ कि मी दूर शिओरताली गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम जगन्नाथ साहा तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।<ref>{{cite web |url= http://server46.hostsearchindia.com/~cgnewsup/cnu/news_detail.php?id=4329&type=3&pg=21&nav=next|title=आजादी की मशाल भी जलाई मेघनाद साहा ने|accessmonthday=[[२१ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format=पीएचपी|publisher=छत्तीसगढ़ न्यूज़|language=}}</ref> गरीबी के कारण साहा को आगे बढ़ने के लिये बहुत संघर्ष करना पड़ा। उनकी आरम्भिक शिक्षा ढाका कॉलेजिएट स्कूल में हुई। इण्ट्रेंस में पूर्वी बंगाल मे प्रथम रहे। इसके बाद वे ढाका कालेज में पढ़े। वहीं पर [[विएना]] से़ डाक्टरेट करके आए प्रो नगेन्द्र नाथ सेन से उन्होंने [[जर्मन भाषा]] सीखी। [[कोलकाता]] के प्रेसिडेन्सी कॉलेज से भी शिक्षा ग्रहण की। [[१६ जून]] [[१९१८]] को उनका विवाह राधा रानी राय से हुआ। [[१९२०]] में उनके ४ लेख सौरवर्ण मंडल का आयनीकरण, [[सूर्य]] में विद्यमान तत्त्वों पर, गैसों की रूप विकिरण समस्याओं पर तथा तारों के हार्वर्ड वर्गीकरण पर फिलासाफिकल मैगजीन में प्रकाशित हुए। इन लेखों से पूरी दुनिया का ध्यान साहा की ओर गया। सन [[१९२३]] से सन [[१९३८]] तक वे [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में प्राध्यापक भी रहे। इसके उपरान्त वे जीवन पर्यन्त [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] में [[विज्ञान]] फैकल्टी के प्राध्यापक एवं डीन रहे। सन [[१९२७]] में वे [[रॉयल सोसायटी]] के सदस्य (फेलो) बने। सन [[१९३४]] की भारतीय विज्ञान कांग्रेस के वे अध्यक्ष थे। साहा इस दृष्टि से बहुत भाग्यशाली थे कि उनको प्रतिभाशाली अध्यापक एवं सहपाठी मिले। उनके विद्यार्थी जीवन के समय [[जगदीश चन्द्र बसु]] एवं [[प्रफुल्ल चन्द्र रॉय]] अपनी प्रसिद्धि के चरम पर थे। [[सत्येन्द्र नाथ बोस]], ज्ञान घोष एवं जे एन मुखर्जी उनके सहपाठी थे। [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में प्रसिद्ध गणितज्ञ अमिय चन्द्र बनर्जी उनकी बहुत नजदीकी रहे। उनका देहान्त [[दिल्ली]] मे [[योजना भवन]] जाते समय हृदयाघात से हुआ।
 
[[चित्र: Meghanaad_saahaa.jpg | right| thumb| प्रसिद्ध वैज्ञानिक '''मेघनाद साहा''']]
उन्होंने देश की आजादी में भी योगदान दिया था। अंग्रेज सरकार ने वर्ष [[१९०५]] में बंगाल के आंदोलन को तोड़ने के लिए जब इस राज्य का विभाजन कर दिया तो समूचे मेघनाद भी इससे अछूते नहीं रहे। उस समय पूर्वी बंगाल के गर्वनर सर बामफिल्डे फुल्लर थे। अशांति के इस दौर में जब फुल्लर मेघनाद के ढाका कालिजियट स्कूल में मुआयने के लिए आए तो मेघनाद ने अपने साथियों के साथ फुल्लर का बहिष्कार किया। नतीजतन मेघनाद को स्कूल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। प्रेसीडेंसी कालेज में पढ़ते हुए ही मेघनाद क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। उस समय आजादी के दीवाने नौजवानों के लिए अनुशीलन समिति से जुड़ना देश सेवा का पहला पाठ माना जाता था। मेघनाद भी इस समिति से जुड़ गए। बाद में मेघनाद का संपर्क नेताजी [[सुभाष चंद्र बोस]] और देश के पहले राष्ट्रपति [[राजेंद्र प्रसाद]] से भी रहा। <ref>{{cite web |url= http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_5240355.html|title=आजादी के परवाने थे खगोलशास्त्री मेघनाद|accessmonthday=[[२१ अप्रैल]]|accessyear=[[२००९]]|format=एचटीएमएल|publisher=जागरण|language=}}</ref>