"वैशेषिक दर्शन": अवतरणों में अंतर

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'''वैशेषिक''' [[भारतीय]] दर्शनों में से एक [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]] है। इसके मूल प्रवर्तक ऋषि [[कणाद]] हैं (ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी[ईशाईयों के धर्म का जन्म ही कुछ सौ वर्षो पूर्व हुआ हैं])। यह दर्शन [[न्याय दर्शन]] से बहुत साम्य रखता है किन्तु वास्तव में यह एक स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन है।
 
इस प्रकार के आत्मदर्शन के विचारों का सबसे पहले महर्षि कणाद ने सूत्र रूप में लिखा। कणाद एक ऋषि थे। ये "उच्छवृत्ति" थे और धान्य के कणों का संग्रह कर उसी को खाकर तपस्या करते थे। इसी लिए इन्हें "कणाद" या "कणभुक्" कहते थे। किसी का कहना है कि कण अर्थात् परमाणु तत्व का सूक्ष्म विचार इन्होंने किया है, इसलिए इन्हें "कणाद" कहते हैं। किसी का मत है कि दिन भर ये [[समाधि]] में रहते थे और रात्रि को कणों का संग्रह करते थे। यह वृत्ति "[[उल्लू]]" पक्षी की है। किसकिसी का कहना है कि इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उलूक पक्षी के रूप में इन्हें शास्त्र का उपदेश दिया। इन्हीं कारणों से यह दर्शन "औलूक्य", "काणाद", "वैशेषिक" या "पाशुपत" दर्शन के नामों से प्रसिद्ध है।
 
पठन-पाठन में विशेष प्रचलित न होने के कारण वैशेषिक सूत्रों में अनेक पाठभेद हैं तथा 'त्रुटियाँ' भी पर्याप्त हैं। [[मीमांसासूत्र|मीमांसासूत्रों]] की तरह इसके कुछ सूत्रों में पुनरुक्तियाँ हैं - जैसे "सामान्यविशेषाभावेच" (4 बार) "सामान्यतोदृष्टाच्चा विशेष:" (2 बार), "तत्त्वं भावेन" (4 बार), "द्रव्यत्वनित्यत्वे वायुना व्यख्याते" (3 बार), "संदिग्धस्तूपचार:" (2 बार)।
 
== नामकरण ==
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* वैशेषिकसूत्र के दो भाष्यग्रन्थ हैं - '''रावणभाष्य''' तथा '''भारद्वाजवृत्ति'''। वर्तमान में दोनो अप्राप्य हैं।
 
* '''[[पदार्थधर्मसंग्रह]]''' ([[प्रशस्तपाद]], 4 वी सदी के पूर्व) वैशेषिक का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यद्यपि इसे वैशेषिकसूत्र का भाष्य कहा जाता है, किन्तु यह एक स्वतंत्र ग्रन्थ है।
 
* पदार्थधर्मसंग्रह की टीका "'व्योमवती'" (व्योमशिवाचार्य, 8 वीं सदी),
 
* पदार्थधर्मसंग्रह की अन्य टीकाएँ हैं- '''न्यायकंदलीन्यायन्दली''' (श्रीधराचार्य, 10 वीं सदी), '''किरणावली''' (उदयनाचार्य 10 वीं सदी), '''लीलावती''' (श्रीवत्स, ११वीं शदी)।
 
* पदार्थधर्मसंग्रह पर आधारित चन्द्र के '''दशपदार्थशास्त्र''' का अब केवल [[चीनी भाषा|चीनी]] [[अनुवाद]] प्राप्य है।
 
* ग्यारहवीं११वीं शदी के आसपास रचित शिवादित्य की '''सप्तपदार्थी''' में न्याय तथा वैशेषिक का सम्मिश्रण है।
 
* '''अन्य''' : कटंदीकटन्दी, वृत्ति-उपस्कर (शंकर मिश्र 15 वीं सदी), वृत्ति, भाष्य (चंद्रकांत 20 वीं सदी), विवृत्ति (जयनारायण 20 वीं सदी), कणाद-रहस्य, तार्किक-रक्षा आदि अनेक मौलिक तथा टीका ग्रंथ हैं।<ref>[https://bharatvarsha.org/वैशेषिक-दर्शन-के-प्रमुख-आ/ वैशेषिक दर्शन के प्रमुख आचार्य एवं उनके ग्रन्थ]</ref>
 
== न्याय एवं वैशेषिक ==