"ज्ञानमीमांसा": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:1752 James Ayscough A short account of the Eye and nature of vision p30.jpg|right|thumb|300px|'''आँख के अन्दर प्रतिबिम्ब का बनना''' : जेम्स ऐस्को (James Ayscough) के ग्रन्थ '' A short account of the eye, and nature of vision" (London, 1752) में चित्र द्वारा समझाया गया है।]]
'''ज्ञानमीमांसा''', ''(Epistemology)'' [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]] की एक शाखा है। ज्ञानमीमांसा ने आधुनिक काल में विचारकों का ध्यान आकृष्ट किया। दर्शनशास्त्र का ध्येय सत् के स्वरूप को समझना है। सदियों से विचारक यह खोज करते रहे हैं, परंतु किसी निश्चित निष्कर्ष से अब भी उतने ही दूर प्रतीत होते हैं, जितना पहले थे। आधुनिक काल में [[देकार्त]] (1596-1650 ई) को ध्यान आया कि प्रयत्न की असफलता का कारण यह है कि दार्शनिक कुछ अग्रिम कल्पनाओं को लेकर चलते रहे हैं। दर्शनशास्त्र को गणित की निश्चितता तभी प्राप्त हो सकती है, जब यह किसी धारणा को, जो स्वत:सिद्ध नहीं, प्रमाणित किए बिना न मानें। उसने व्यापक संदेह से आरंभ किया। उसकी अपनी चेतना उसे ऐसी वस्तु दिखाई दी, जिसके अस्तित्व में संदेह ही नहीं हो सकता : संदेह तो अपने आप चेतना का एक आकार या स्वरूप है। इस नींव पर उसने, अपने विचार में, परमात्मा और सृष्टि के अस्तित्व को सिद्ध किया। देकार्त की विवेचन-विधि नई थी, परंतु पूर्वजों की तरह उसका अनुराग भी तत्वज्ञान में ही थाु।