"ज्ञानमीमांसा": अवतरणों में अंतर

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== ज्ञानमीमांसा में प्रमुख प्रश्न ==
ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय का संबंधसम्बन्ध है। देकार्त ने अपने अनुभव के विश्लेषण से आरंभआरम्भ किया, परंतुपरन्तु मनुष्य सामाजिक प्राणी है, उसका अनुभव शून्य में नहीं विकसित होता। दर्शनशास्त्र का इतिहास वादविवाद की कथा है। [[प्लेटो]] ने अपना मत संवादों में व्यक्त किया। संवाद में एक से अधिक चेतनाओं का अस्तित्व स्वीकार किया जाता है। ज्ञानमीमांसा में विवेचन का विषय वैयक्तिक चेतना नहीं, अपितु सामाजिक चेतना बन जाती है। ज्ञान का अपना अस्तित्व तो असंदिग्ध है परंतुपरन्तु इसमें निम्नलिखित स्वीकृतियाँ भी निहित होती हैं-
[[Image:Classical definition of Kno.svg|right|thumb|300px|आयलर आरेख (Euler diagram) के माध्यम से ज्ञान की परम्परागत परिभाषा का निरुपण]]
*(क) ज्ञान से भिन्न ज्ञाता है, जिसे ज्ञान होता है।
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*(ग) ज्ञान का विषय ज्ञान से भिन्न है।
 
प्रत्येक धारणा सत्य होने का दावा करती है। परंतुपरन्तु मीमांसा इस दावे को उचित जाँच के बिना स्वीकार नहीं कर सकता। हम अभी इन धारणाओं की परीक्षा करेंगे, परंतुपरन्तु पहले ज्ञान के स्वरूप पर कुछ कहना आवश्यक है।
 
ज्ञानमीमांसा में प्रमुख प्रश्न ये हैं-
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जब हम किसी धारणा को सुनते हैं या उसका चिंतन करते हैं तो उस सबंध में हमारी वृत्ति इस प्रकार की होती है -
 
*: हम उसे सत्य स्वीकार करते हैं या उसे असत्य समझकर अस्वीकार करते हैं।
*: सत्य और असत्य में निश्चय न कर सकें, तो स्वीकृति अस्वीकृति दोनों को विराम में रखते हैं। यह संदेह की वृत्ति है।
*: उपन्यास पढ़ते हुए हम अपने आपको कल्पना के जगत् में पाते हैं और जो कुछ कहा जाता है उसे हम उस समय के लिये तथ्य मान लेते हैं। यह "काल्पनिक स्वीकृति" है।
 
स्वीकृति के कई स्तर होते हैं। अधम स्तर पर सामयिक स्वीकृति है, इसे सम्मति कहते हैं। यह स्वीकृति प्रमाणित नहीं होती, इसे त्यागना पड़े तो हमें कोई विरक्ति नहीं होती। सम्मति के साथ तेज और सजीवता प्रबल होती है। धार्मिक विश्वासों पर जमें रहने के लिये मनुष्य हर प्रकार का कष्ट सहन कर लेता है। विश्वास और सम्मति दोनों वैयक्तिक कृतियाँ हैं, ज्ञान में यह परिसीमन नहीं होता। मैं यह नहीं कहता कि मेरी संमति में दो और दो चार होते हैं, न यह कहता हूँ कि मेरे विश्वास के अनुसार, यदि क और ख दोनों ग के बराबर हैं तो एक दूसरे के भी बराबर हैं। ये तो ऐसे तथ्य हैं, जिन्हें प्रत्येक बुद्धिवंत प्राणी को अवश्य मानना होता है संमतियो में भेद होता है ज्ञान सबके लिये एक है। ज्ञान में संमति की आत्मपरकता का स्थान वस्तुपरकता ले लेती है।
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;ज्ञान और ज्ञाता
[[चित्र:Black Swan (Cygnus atratus) RWD.jpg|right|thumb|300px|'''काले हंस''' का यह चित्र ज्ञानमीमांसा के एक ऐतिहासिक समस्या का प्रतीक है, जिसे प्रेरण-समस्या (induction problem) कहते हैं। यदि हमने आज तक जितने भी हंस देखें हैं, वे सफेद थे, तो क्या हम कह सकते हैं कि सभी हंस सफेद होते हैं?]]
[[अनुभववाद]] (empiricism) के अनुसार, ज्ञानसामग्री के दो ही भाग हैं -- प्रभाव और उनके बिंब। द्रव्य के लिये इनमें कोई ज्ञान नहीं। ह्यूम ने कहा कि जिस तरह भौतिक पदार्थ गुणसमूह के अतिरिक्त कुछ नहीं, उसी तरह अनुभवी अनुभवों के समूह के अतिरिक्त कुछ नहीं। इन दोनों समूहों में एक भेद है -- कुल के सभी गुण एक साथ विद्यमान होते हैं, चेतन की चेतनावस्थाएँ एक दूसरे के बाद प्रकट होती हैं। चेतना श्रेणी या पंक्ति है और किसी पंक्ति को अपने आप पंक्ति होने का बोध नहीं हो सकता। हृदय की व्याख्या में स्मरण शक्ति के लिये कोई स्थान नहीं; जैसे विलियम जेम्स ने कहा, अनुभववाद को स्मृति माँगनी पड़ती है। ह्यूम को ज्ञाता ज्ञानसामग्री में नहीं मिला; वह वहाँ मिल ही नहीं सकता था। अनुभववाद के लिये प्रश्न था -- अनुभव क्या बताता है? पीछे कांट ने पूछा -- अनुभव बनता कैसे है? अनुभव अनुभवी की क्रिया के बिना बन ही नहीं सकता।
 
;पुरुषबहुत्व
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;प्रतिबोध मीमांसा
अनुभववाद के अनुसार सारा ज्ञान अंत में प्रभावों और उनके चित्रों से बनता है। प्रभाव में गुणबोध और वस्तुवाद का भेद कर सकते हैं; चित्र में प्रतिबिंबप्रतिबिम्ब और प्रत्यय का भेद होता है। प्रत्येक ज्ञानेंद्रिय किसी विशेष गुण का चरिचयपरिचय देती है -- आँख रूप का, कान शब्द का, नाक गंध का। इन गुणों के समन्वय से वस्तुज्ञान प्राप्त होता है। इसे प्रतिबोध या प्रत्यक्ष भी कहते हैं। ऐसे बोध में ज्ञान का विषय ज्ञाता के बाहर होता है; प्रतिबिंब और प्रत्यय अंदर होते हैं। यह बाहर और अंदर का भेद कल्पना मात्र है या तथ्य है, ज्ञानमीमांसा में यह प्रमुख प्रश्न रहा है। प्रतिबोध या प्रत्यक्ष ज्ञान ने जितना ध्यान आकर्षित किया है, उतना ज्ञानमीमांसा में किसी अन्य प्रश्न ने नहीं किया।
 
[[सांख्य दर्शन]] के अनुसार प्रत्यक्ष के दो प्रमुख चिह्न हैं --
 
(1) प्रत्यक्ष इंद्रिय और विषय के संपर्क का परिणाम होता है।