"ज्ञानमीमांसा": अवतरणों में अंतर

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'''ज्ञानमीमांसा''', ''(Epistemology)'' [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]] की एक शाखा है। ज्ञानमीमांसा ने आधुनिक काल में विचारकों का ध्यान आकृष्ट किया। दर्शनशास्त्र का ध्येय सत्य के स्वरूप को समझना है। सदियों से विचारक यह खोज करते रहे हैं, परन्तु किसी निश्चित निष्कर्ष से अब भी उतने ही दूर प्रतीत होते हैं, जितना पहले थे।
 
आधुनिक काल के आरम्भिक दिनों में [[अनुभववाद|अनुभववादियों]] (empericists) और [[तर्कबुद्धिवाद|तर्कबुद्धिवादियों]] (rationalists) के बीच का विवाद ने ज्ञानमीमांसा को दर्शनशास्त्र का मुख्य विषय बना दिया। [[जॉन लॉक]], [[डेविड ह्यूम]] और [[जॉनजॉर्ज बर्कली]] प्रमुख अनुभववादी दार्शनिक थे। [[रेने दिकार्तदेकार्त]], [[स्पिनोज़ा]] और [[गाटफ्रीड लैबनिट्ज़|गाटफ्रीड लैबनीज]] प्रमुख तर्कबुद्धिवादी थे।
 
आधुनिक काल में [[देकार्त]] (1596-1650 ई) को ध्यान आया कि प्रयत्न की असफलता का कारण यह है कि दार्शनिक कुछ अग्रिम कल्पनाओं को लेकर चलते रहे हैं। दर्शनशास्त्र को गणित की निश्चितता तभी प्राप्त हो सकती है, जब यह किसी धारणा को, जो स्वतःसिद्ध नहीं, प्रमाणित किए बिना न मानें। उसने व्यापक सन्देह से आरम्भ किया। उसकी अपनी चेतना उसे ऐसी वस्तु दिखाई दी, जिसके अस्तित्व में संदेह ही नहीं हो सकता : संदेह तो अपने आप चेतना का एक आकार या स्वरूप है। इस नींव पर उसने, अपने विचार में, परमात्मा और सृष्टि के अस्तित्व को सिद्ध किया। देकार्त की विवेचन-विधि नई थी, परन्तु पूर्वजों की तरह उसका अनुराग भी तत्वज्ञान में ही था।