[[चित्र:Still From Hola Mohalla.jpg|right|thumb|350pxन नं|होला मोहल्ला]]
[[सिख|सिक्खों]] के पवित्र धर्मस्थान [[आनन्दपुर साहिब|श्री आनन्दपुर साहिब]] मे [[होली]] के अगले दिन से लगने वाले मेले को '''होला मोहल्ला''' कहते है।हैं। सिखों़सिखों धके लिये यहहोला धर्मस्थानमोहल्ला बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहाँ पर होली पौरुष के प्रतीक पर्व के रूप में मनाई जाती है।<ref>[https://www.punjabkesari.in/dharm/news/hola-mohalla-1357011 गुरुजी ने सिखों में वीरता का रस भरने के लिए शुरू किया था 'होला मोहल्ला']</ref> इसीलिए दशम [[गुरु गोबिन्द सिंह|गुरू गोविंद सिंह जी]] ने होली के लिए पुल्लिंग शब्द होला मोहल्ला का प्रयोग किया। गुरु जी इसके माध्यम से समाज के दुर्बल और शोषित वर्ग की प्रगति चाहते थे। होला महल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छ:छः दिन तक चलता है। इस अवसर पर घोड़ों पर सवार [[निहंग]], हाथ में [[निशान साहिब|निशान साहब]] उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। [[पंज पियारे]] जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं और जुलूस में निहंगों के अखाड़े नंगी तलवारों के करतब दिखते हुए बोले सो निहाल के नारे बुलंद करते हैं। आनन्दपुर साहिब की सजावट की जाती है और विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है। कहते है गुरु गोबिन्द सिंह (सिक्खों के दसवें गुरु) ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी। यह जुलूस हिमाचल प्रदेश की सीमा पर बहती एक छोटी नदी चरण गंगा के तट पर समाप्त होता है।
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
*[https://web.archive.org/web/20071027182845/http://www.jitu.info/merapanna/?p=503 होली के रूप अनेक : भाग दो]▼
==बाहरी कड़ियाँ==
▲*[https://web.archive.org/web/20071027182845/http://www.jitu.info/merapanna/?p=503 होली के रूप अनेक : भाग दो]
*[http://panchjanya.com//Encyc/2016/12/19/वीरता-के-पुजारी,-होला-महल्ला-के-खिलाड़ी.aspx वीरता के पुजारी, होला-महल्ला के खिलाड़ी]{{Dead link|date=जून 2020 |bot=InternetArchiveBot }} (पाञ्चजन्य)