"गुर्जर-प्रतिहार राजवंश": अवतरणों में अंतर

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==इतिहास==
===उत्पत्ति===
{{Main| गुर्जर प्रतिहार राजवंश की उत्पत्ति}}
गुर्जर प्रतिहारों के साथ-साथ [[मंडोर के प्रतिहारों]] ने स्व-पदनाम "प्रतिहार" का उपयोग किया। उन्होंने महान नायक [[लक्ष्मण]] से वंश का दावा किया, जिन्हें [[संस्कृत]] महाकाव्य '' [[रामायण]] 'में राजा [[राम]] के भाई के रूप में वर्णित किया गया है। मंडोर प्रतिहार शासक बाकुका के 837 सीई जोधपुर शिलालेख में कहा गया है कि रामभद्र (राम) के छोटे भाई ने अपने बड़े भाई को 'प्रतिहारी' (द्वारपाल) के रूप में सेवा दी, जिसकी वजह से इस कबीले को प्रतिहार के नाम से जाना जाने लगा. सागर-ताल (ग्वालियर) प्रतिहार राजा का शिलालेख [[मिहिर भोज]] कहता है उस सौमित्रि ("[[सुमित्रा]] का पुत्र", यानी लक्ष्मण) ने अपने बड़े भाई के लिए एक द्वारपाल के रूप में काम किया क्योंकि उसने [[मेघनाद]] के साथ युद्ध में दुश्मनों को हराया था।{{sfn|Rama Shankar Tripathi|1959|p=223}}{{sfn|Baij Nath Puri|1957|p=7}}
[[अग्निवंश]] के अनुसार [[पृथ्वीराज रासो]] की पांडुलिपियों में दी गई कथा', प्रतिहार राजपूत और तीन अन्य [[राजपूत]] राजवंशों की उत्पत्ति [[माउंट आबू]] में एक बलि अग्नि-कुंड (अग्निकुंड) से हुई थी।<ref>Vikrama Volume. Scindia Oriental Institute. 1948. p. 597. OCLC 673844</ref><ref>Seth, Krishna Narain (1978). The Growth of the Paramara Power in Malwa. Progress. OCLC 8931757.</ref>
नीलकंठ शास्त्री ने सिद्ध किया कि प्रतिहारों के पूर्वजों ने [[राष्ट्रकूट]] एस की सेवा की, और "प्रतिहार" शब्द राष्ट्रकूट दरबार में उनके कार्यालय के शीर्षक से निकला है।<ref>{{cite book |author=Kallidaikurichi Aiyah Nilakanta Sastri |title=History of India |url=https://books.google.com/books?id=oychAAAAMAAJ |year=1953 |publisher=S. Viswanathan |page=194 }}</ref>
तथापि वार्मलता चावड़ा का वसंतगढ़ शिलालेख दिनांक 682 (625 ईस्वी), गुर्जर प्रतिहार वंश का सबसे प्राचीन उल्लेख है .वसंतगढ़ गाँव (पिंडवाड़ा तहसील, सिरोही) के इस शिलालेख में राजजिला और उनके पिता वज्रभट्ट सत्यश्रया([[हरिचंद्र प्रतिहार]]) का वर्णन है, वे वर्मलता [[चावडा राजवंश|चावड़ा]] के जागीरदार थे और अर्बुदा देशा ([[माउंट आबू]] क्षेत्र) से शासित थे <ref> Epigraphia Indica ,XVI ,pp. 183</ref> <ref> B.N. Puri,The History of the Gurjara-Pratiharas, p. 20 </ref>
गुर्जर प्रतिहार शक्ति का मूल केंद्र विवाद का विषय है। आर। सी। मजुमदार, हरिवंश-पुराण, 783 ई। में एक श्लोक के आधार पर, उन्होंने जो व्याख्या की वह कठिनाई से मुक्त नहीं थी, यह माना कि वत्सराज ने उज्जैन पर शासन किया था।<ref>{{cite book|last1=Majumdar|first1=R.C.|title=The Age of Imperial Kanauj|date=1955|publisher=Bharatiya Vidya Bhavan|location=Bombay|pages=21–22|edition=First}}</ref> दशरथ शर्मा, इसकी व्याख्या करते हुए मूल रूप से भीनमाल जालोर क्षेत्र की मूल राजधानी स्थित है।<ref>{{cite book|last1=Sharma|first1=Dasharatha|title=Rajasthan through the Ages|date=1966|publisher=Rajasthan State Archives|location=Bikaner|pages=124–30}}</ref> M. W. Meister<ref>{{cite book|last1=Meister|first1=M.W|title=Encyclopaedia of Indian Temple Architecture, Vol. 2, pt.2, North India: Period of Early Maturity, c. AD 700-900|date=1991|publisher=American Institute of Indian Studies|location=Delhi|isbn=0195629213|page=153|edition=first}}</ref> और शांता रानी शर्मा<ref>{{cite book|last1=Sharma|first1=Shanta Rani|title=Origin and Rise of the Imperial Pratihāras of Rajasthan: Transitions, Trajectories and Historical Chang|date=2017|publisher=University of Rajasthan|location=Jaipur|isbn=978-93-85593-18-5|pages=77–78|edition=First}}</ref> इस तथ्य के मद्देनजर अपने निष्कर्ष के साथ कि जैन कथा के लेखक कुवलयमाला का कहना है कि यह 778 ​​ईस्वी में वत्सराज के समय में जालोर में रचा गया था, जो हरिवंश पुराण की रचना से पहले पांच साल पहले का है |
नागभट्ट नामक नवयुवक ने इस नये साम्राज्य की नींव रखी। संभवत है ये भडौच के गुर्जर प्रतिहार शासको का ही राजकुंवर था, जयभट्ट का पुत्र। भारत पर आक्रमण केवल पश्चिमोत्तर भूमि से किया जा सकता है। युद्धो की पूरी लम्बी श्रंखला थी जो सैकडो वर्षो तक गुर्जर प्रतिहारो और अरब आक्रान्ताओ के बीच चली। <ref>B.N. Puri,  History of the Gurjara Pratiharas,  Bombay, 1957</ref> <ref> P C  Bagchi,  India  and Central Asia,  Calcutta, 1965 </ref>
 
===प्रारंभिक शासक===
[[नागभट्ट प्रथम]] (७३०-७५६ ई॰) को इस राजवंश का पहला राजा माना गया है। [[आठवीं शताब्दी]] में भारत में [[अरबों का सिन्ध पर आक्रमण|अरबों का आक्रमण]] शुरू हो चुका था। <ref> K. M. Munshi, The Glory That Was Gurjara Desha (A.D. 550-1300), Bombay, 1955 </ref> सिन्ध और मुल्तान पर उनका अधिकार हो चुका था। फिर [[सिंध]] के राज्यपाल जुनैद के नेतृत्व में सेना आगे [[मालवा]], जुर्ज और [[अवंती]] पर हमले के लिये बढ़ी, जहां जुर्ज पर उसका कब्जा हो गया। परन्तु आगे अवंती पर नागभट्ट ने उन्हैं खदैड़ दिया। अजेय अरबों कि सेना को हराने से नागभट्ट का यश चारो ओर फैल गया। <ref>V. A. Smith, The Gurjaras of Rajputana and Kanauj, Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain and  Ireland, (Jan., 1909), pp.53-75</ref> <ref> V A Smith,  The Oford History of  India, IV Edition,  Delhi, 1990 </ref> अरबों को खदेड़ने के बाद नागभट्ट वहीं न रुकते हुए आगे बढ़ते गये। और उन्होंने अपना नियंत्रण पूर्व और दक्षिण में मंडोर, [[ग्वालियर]], मालवा और गुजरात में [[भरूच जिला|भरूच]] के बंदरगाह तक फैला दिया। उन्होंने [[मालवा]] में [[अवंती]] ([[उज्जैन]]) में अपनी राजधानी की स्थापना की, और अरबों के विस्तार को रोके रखा, जो सिंध में स्वयं को स्थापित कर चुके थे। अरबों से हुए इस युद्ध (७३८ ई॰) में नागभट्ट ने गुर्जर-प्रतिहारों का एक संघीय का नेतृत्व किया।<ref>एपिक इण्डिया खण्ड १२, पेज १९७ से</ref><ref>इलियट और डाउसन, हिस्ट्री ऑफ इण्डिया पृ० १ से १२६</ref> <ref> Dirk H A Kolff, Naukar Rajput Aur Sepoy, CUP, Cambridge, 1990 </ref>यह माना जाता है कि वह राष्ट्रकूट शासक [[दन्तिदुर्ग]] के साथ अरबों को हराने में शामिल हुए थे ।
 
एक विशेष "हिरण्यगर्भ-महादान" अनुष्ठान समारोह का उल्लेख है जिसने स्वर्ण ‘ब्रह्मांडीय अंड’ का भी उल्लेख है), कई राजाओंगुर्जर (राजपूतों)राजाओं की उपस्थिति में और उनकी ओर से। ऐसा लगता है कि संयुक्त रूप से उज्जयिनी में किया गया था, अरबो को पराजित करने और वापस भगाने के बाद। नागभट्ट ने संभवतः इसमें भाग लिया था। एक राष्ट्रकूट रिकॉर्ड, संजय प्लेट्स, हमलावर अरबों के खिलाफ दंतिदुर्ग की भूमिका की प्रशंसा करता है, हमें बताता है कि गुर्जरेश (‘गुर्जरा का राजा'(गुर्जरा गुजरात का प्राचीन नाम था), इस समारोह में प्रतिहार या प्रहरी (भी द्वारपाल या संरक्षक) का कार्य सौंपा गया था। दशरथ शर्मा सुझाव देते हैं कि
{{Quote|"it was perhaps at the sacred site of Ujayani that the clans from Rajasthan, impressed by Nagabhata’s valour and qualities of leadership, decided to tender their allegiance to him”}}<ref>Dashrattha Sharma, Rajasthan Through the Ages, published by Rajasthan State Archives, 1966, pp. 120</ref>
नागभट्ट प्रथम ने जल्द ही एक विशाल क्षेत्र पर अपना नियंत्रण बढ़ा दिया, जिसमें , , भीलमला, जालोर, आबू के आसपास के रास्ते
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नागभट्ट प्रथम विद्वानों, कलाकारों और ऋषियों का संरक्षक था। जैन विद्वान यक्षदेव उनमें से थे जिन्हें नागभट्ट ने अपना संरक्षण दिया था।
 
गुर्जर प्रतिहार मालवा और लता के कब्जे को अनिश्चित काल तक कायम नहीं रख सके,
हालाँकि, अपने पूर्व सहयोगी , राजा दंतिदुर्ग राष्ट्रकूट ने इन दो क्षेत्रों को सफलतापूर्वक प्रतिहारों कब्जे में लिया ।<ref>a history of Rajasthan rim hooja - pg 272-273</ref>
 
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७८६ के आसपास, राष्ट्रकूट शासक [[ध्रुव धारवर्ष]] (७८०-७९३) [[नर्मदा नदी]] को पार कर मालवा पहुंचा और वहां से कन्नौज पर कब्जा करने की कोशिश करने लगा। लगभग ८०० ई० में वत्सराज को ध्रुव धारवर्षा ने पराजित किया और उसे मरुदेश (राजस्थान) में शरण लेने को मजबुर कर दिया। और उसके द्वार गौंड़राज से जीते क्षेत्रों पर भी अपना कब्जा कर लिया।<ref>राधनपुर अभिलेख, श्लोक ८</ref> वत्सराज को पुन: अपने पुराने क्षेत्र जालोन से शासन करना पडा, ध्रुव के प्रत्यावर्तन के साथ ही पाल नरेश [[धर्मपाल]] ने कन्नौज पर कब्जा कर, वहा अपने अधीन चक्रायुध को राजा बना दिया।<ref name=":0" />
[[File:VarahaVishnuAvatarPratiharaKings850-900CE.jpg|thumb|150px| गुर्जर प्रतिहार के सिक्कों मे [[वराह]] (विष्णु अवतार), ८५०–९०० ई० [[ब्रिटिश संग्रहालय]]।]]
वत्सराज के बाद उसका पुत्र [[नागभट्ट द्वितीय]] (805-833) राजा बना, उसे शुरू में राष्ट्रकूट शासक [[गोविन्द तृतीय]] (793-814) ने पराजित किया था, लेकिन बाद में वह अपनी शक्ति को पुन: बढ़ा कर राष्ट्रकूटों से मालवा छीन लिया। तदानुसार उसने आन्ध्र, सिन्ध, [[विदर्भ]] और [[कलिंग]] के राजाओं को हरा कर अपने अधीन कर लिया। चक्रायुध को हरा कर [[कन्नौज]] पर विजय प्राप्त कर लिया। आगे बढ़कर उसने [[धर्मपाल]] को पराजित कर बलपुर्वक आनर्त, मालव, किरात, तुरुष्क, [[वत्स]] और [[मत्स्य राज|मत्स्य]] के पर्वतीय दुर्गो को जीत लिया।<ref>एपिक इण्डिया खण्ड १८, पेज १०८-११२, श्लोक ८ से ११</ref> [[चौहान वंश|शाकम्भरी के गुर्जर चाहमानों]] ने कन्नोज के गुर्जर प्रतीहारों कि अधीनता स्वीकार कर ली।<ref>बही० जिल्द २, पृ० १२१-२६</ref> उसने गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य को गंगा के मैदान में आगे ​​पाटलिपुत्र (बिहार) तक फैला दिया। आगे उसने पश्चिम में पुनः अरबो को रोक दिया। उसने गुजरात में [[सोमनाथ मन्दिर|सोमनाथ के महान शिव मंदिर]] को पुनः बनवाया, जिसे सिंध से आये अरब हमलावरों ने नष्ट कर दिया था। कन्नौज, गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का केंद्र बन गया, अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष (८३६-९१०) के दौरान अधिकतर उत्तरी भारत पर इनका अधिकार रहा।
 
८३३ ई० में नागभट्ट के जलसमाधी लेने के बाद<ref>चन्द्रपभसूरि कृत प्रभावकचरित्र, पृ० १७७, ७२५वाँ श्लोक</ref>, उसका पुत्र [[रामभद्र]] या राम गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य का अगला राजा बना। रामभद्र ने सर्वोत्तम घोड़ो से सुसज्जित अपने सामन्तो के घुड़सवार सैना के बल पर अपने सारे विरोधियो को रोके रखा। हलांकि उसे [[पाल साम्राज्य]] के [[देवपाल]] से कड़ी चुनौतिया मिल रही थी। और वह गुर्जर प्रतीहारों से [[कलिंजर]] क्षेत्र लेने मे सफल रहा।
 
===गुर्जर-प्रतिहार वंश का चरमोत्कर्ष===
[[रामभद्र]] के बाद उसका पुत्र [[मिहिरभोज]]मिहिर भोज गुर्जर या भोज प्रथम ने गुर्जर प्रतिहार की सत्ता संभाली।संभाली।गुर्जर सम्राट मिहिरभोज का शासनकाल प्रतिहार साम्राज्य के लिये स्वर्णकाल माना गया है। अरब लेखकों ने मिहिरभोज के काल को सम्पन्न काल <ref>{{cite book |editor1-first=एस.आर. |editor1-last=बक्शी |editor2-first=एस. |editor2-last=गजरानी |editor3-first=हरी |editor3-last=सिंग |title=प्रारंभिक आर्यों से स्वराज |url=https://books.google.com/books?id=Ldo1QtQigosC&pg=PA319 |pages=319–320 |location=नई दिल्ली |publisher=सरुप एंड संस |year=2005 |isbn=81-7625-537-8 |access-date=11 दिसंबर 2015 |archive-url=https://web.archive.org/web/20160603221722/https://books.google.com/books?id=Ldo1QtQigosC&pg=PA319 |archive-date=3 जून 2016 |url-status=live }}</ref><ref>{{cite book|title=राजस्थान की नई छवि|publisher=सार्वजनिक संबंध निदेशालय, सरकार राजस्थान|year=1966|page=2}}</ref> बताते हैं। मिहिरभोज के शासनकाल मे कन्नौज के राज्य का अधिक विस्तार हुआ। उसका राज्य उत्तर-पश्चिम में [[सतलुज नदी|सतुलज]], उत्तर में [[तराई क्षेत्र|हिमालय की तराई]], पूर्व में [[पाल साम्राज्य]] कि पश्चिमी सीमा, दक्षिण-पूर्व में [[बुन्देलखण्ड]] और [[वत्स]] की सीमा, दक्षिण-पश्चिम में [[सौराष्ट्र]], तथा पश्चिम में राजस्थान के अधिकांश भाग में फैला हुआ था। इसी समय [[पालवंश]] का शासक [[देवपाल]] भी बड़ा यशस्वी था। अतः दोनो के बीच में कई घमासान युद्ध हुए। अन्त में इस पाल-प्रतिहार संघर्स में भोज कि विजय हुई।
 
दक्षिण की ओर गुर्जर सम्राट मिहिरभोज के समय [[अमोघवर्ष नृपतुंग|अमोघवर्ष]] और [[कृष्ण द्वितीय]] राष्ट्रकूट शासन कर रहे थे। अतः इस दौर में गुर्जर प्रतिहार-राष्ट्रकूट के बीच शान्ति ही रही, हालांकि वारतो संग्रहालय के एक खण्डित लेख से ज्ञात होता है कि अवन्ति पर अधिकार के लिये भोज और राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वितीय (878-911 ई०) के बीच [[नर्मदा नदी]] के पास युद्ध हुआ था। जिसमें राष्ट्रकुटों को वापस लौटना पड़ा था।<ref>एपिक इण्डिया खण्ड़ १९, पृ० १७६ पं० ११-१२</ref> अवन्ति पर गुर्जर प्रतिहारों का शासन भोज के कार्यकाल से [[महेन्द्रपाल प्रथम|महेन्द्रपाल द्वितीय]] के शासनकाल तक चलता रहा। [[मिहिर भोज]] के बाद उसका पुत्र [[महेन्द्रपाल प्रथम]] ई॰) नया राजा बना, इस दौर में साम्राज्य विस्तार तो रुक गया लेकिन उसके सभी क्षेत्र अधिकार में ही रहे। इस दौर में कला और साहित्य का बहुत विस्तार हुआ। महेन्द्रपाल ने [[राजशेखर]] को अपना राजकवि नियुक्त किया था। इसी दौरान "[[कर्पूरमंजरी]]" तथा संस्कृत नाटक "बालरामायण" का अभिनीत किया गया। गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य अब अपने उच्च शिखर को प्राप्त हो चुका था।
 
===पतन===
महेन्द्रपाल की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी का युद्ध हुआ, और राष्ट्रकुटों कि मदद से महिपाल का सौतेला भाई भोज द्वितीय (910-912) कन्नौज पर अधिकार कर लिया हलांकि यह अल्पकाल के लिये था, राष्ट्रकुटों के जाते ही [[महियाल|महिपाल प्रथम]] (९१२-९४४ ई॰) ने भोज द्वितीय के शासन को उखाड़ फेंका। गुर्जर-प्रतिहारों की अस्थायी कमजोरी का फायदा उठा, साम्राज्य के कई सामंतवादियों विशेषकर [[परमार वंश|मालवा के परमार गुर्जर ]], [[चन्देल|बुंदेलखंड के चन्देल गुर्जर ]], [[कलचुरी|महाकोशल का कलचुरि]], [[तोमर वंश|हरियाणा के तोमर गुर्जर ]] और [[चौहान वंश|चौहान गुर्जर ]] स्वतंत्र होने लगे। [[राष्ट्रकूट वंश]] के दक्षिणी भारतीय सम्राट [[इन्द्र ३|इंद्र तृतीय]] (९९९-९२८ ई॰) ने ९१२ ई० में कन्नौज पर कब्जा कर लिया। यद्यपि गुर्जर प्रतिहारों ने शहर को पुनः प्राप्त कर लिया था, लेकिन उनकी स्थिति 10वीं सदी में कमजोर ही रही, पश्चिम से तुर्को के हमलों, दक्षिण से राष्ट्रकूट वंश के हमलें और पूर्व में [[पाल साम्राज्य]] की प्रगति इनके मुख्य कारण थे। गुर्जर-प्रतिहार राजस्थान का नियंत्रण अपने सामंतों के हाथ खो दिया और चंदेलो ने ९५० ई॰ के आसपास मध्य भारत के ग्वालियर के सामरिक किले पर कब्जा कर लिया। १०वीं शताब्दी के अंत तक, गुर्जर-प्रतिहार कन्नौज पर केन्द्रित एक छोटे से राज्य में सिमट कर रह गया। कन्नौज के अंतिम गुर्जर-प्रतिहार शासक यशपाल के १०३६ ई. में निधन के साथ ही इस साम्राज्य का अन्त हो गया।
 
== शासन प्रबन्ध ==