"मिहिर भोज": अवतरणों में अंतर
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915 ईस्वीं में भारत आए बगदाद के इतिहासकार अल-मसूदी ने अपनी किताब मरूजुल जुहाब मेें भी मिहिर भोज की 36 लाख सेनिको की पराक्रमी सेना के बारे में लिखा है। इनकी राजशाही का निशान “वराह” था और मुस्लिम आक्रमणकारियों के मन में इतनी भय थी कि वे वराह यानि [[सूअर]] से नफरत करते थे। मिहिर भोज की सेना में सभी वर्ग एवं जातियों के लोगो ने राष्ट्र की रक्षा के लिए हथियार उठाये और इस्लामिक आक्रान्ताओं से लड़ाईयाँ लड़ी। मुस्लिम आक्रमणकारी मिहिर भोज के केवल नाम लेने मात्र से थर-थर कांपा करते थे |
गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के मित्र काबुल का ललिया शाही राजा कश्मीर का उत्पल वंशी राजा अवन्ति वर्मन तथा नैपाल का राजा राघवदेव और आसाम के राजा थे। सम्राट मिहिरभोज के उस समय शत्रु, पालवंशी राजा [[देवपाल]], दक्षिण का राष्ट्र कटू महाराज आमोधवर्ष और अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुत्वक्कल, मुन्तशिर, मौतमिदादी थे। अरब के खलीफा ने इमरान बिन मूसा को सिन्ध के उस इलाके पर शासक नियुक्त किया था। जिस पर अरबों का अधिकार रह गया था। गुर्जर सम्राट मिहिर भोज ने बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र नारायणलाल को युद्ध में परास्त करके उत्तरी बंगाल को अपने
गुर्जर सम्राट मिहिर भोज नही चाहते थे कि अरब इन दो स्थानों पर भी सुरक्षित रहें और आगे संकट का कारण बने, इसलिए उसने कई बड़े सैनिक अभियान भेज कर इमरान बिन मूसा के अनमहफूज नामक जगह को जीत कर अपने गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की पश्चिमी सीमाएं [[सिन्धु नदी|सिन्ध नदी]] से सैंकड़ों मील पश्चिम तक पहुंचा दी, और इसी प्रकार भारत को अगली शताब्दियों तक अरबों के बर्बर, धर्मान्ध तथा अत्याचारी आक्रमणों से सुरक्षित कर दिया था। इस तरह गुर्जर सम्राट मिहिरभोज के राज्य की सीमाएं [[काबुल]] से [[राँची]] व [[असम]] तक, [[हिमालय]] से [[नर्मदा नदी]] व [[आन्ध्र प्रदेश|आन्ध्र]] तक, [[काठियावाड़]] से [[बंगाल]] तक, सुदृढ़ तथा सुरक्षित थी।<ref name="ज़ी हिंदुस्तान वेब टीम">{{Cite web|date=May 12, 2020|title=
== स्रोत ==
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