"शिमला समझौता": अवतरणों में अंतर
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[[1971 का भारत-पाक युद्ध]] के बाद भारत के शिमला में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/india/2013/07/130702_shimla_agreement_rf_pk|title=शिमला समझौते पर भारी पड़ी थी बेनज़ीर की खूबसूरती|access-date=2 अक्तूबर 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20181002215203/https://www.bbc.com/hindi/india/2013/07/130702_shimla_agreement_rf_pk|archive-date=2 अक्तूबर 2018|url-status=live}}</ref> इसे शिमला समझौता कहते हैं। इसमें भारत की तरफ से [[इन्दिरा गांधी|इंदिरा गांधी]] और पाकिस्तान की तरफ से [[ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो]] शामिल थे। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसम्बर 1971 में हुई लड़ाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 90,000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को बंगलादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी। यह समझौता करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री [[ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो]] अपनी पुत्री [[बेनज़ीर भुट्टो]] के साथ 28 जून 1972 को शिमला पधारे। ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजारो वर्ष तक युद्ध करने की कसमें खायी थीं।
28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई परंतु (परन्तु) किसी समझौते पर नहीं पहुँच सके। इसके लिए पाकिस्तान की हठधर्मी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थी। तभी अचानक
अपना सब कुछ लेकर पाकिस्तान ने एक थोथा-सा आश्वासन भारत को दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सहित जितने भी विवाद हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा और उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा। लेकिन इस अकेले आश्वासन का भी पाकिस्तान ने सैकड़ों बार उल्लंघन किया है और कश्मीर विवाद को पूरी निर्लज्जता के साथ अनेक बार अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाया है। वास्तव में उसके लिए किसी समझौते का मूल्य उतना भी नहीं है, जितना उस कागज का मूल्य है, जिस पर वह समझौता लिखा गया है।
इस समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच यह भी तय हुआ था कि 17 दिसम्बर 1971 अर्थात पाकिस्तानी सेनाओं के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनायें जिस स्थिति में थीं, उस रेखा को ”वास्तविक नियंत्रण रेखा“ माना जाएगा और कोई भी पक्ष अपनी ओर से इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेगा। लेकिन पाकिस्तान अपने इस वचन पर भी टिका नहीं रहा। सब जानते हैं कि 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सेना ने जानबूझकर घुसपैठ की और इस कारण भारत को कारगिल में युद्ध लड़ना पड़ा।
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