"माधवाचार्य विद्यारण्य": अवतरणों में अंतर
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स्वामी विद्यारण्य का जन्म 11 अप्रैल 1296 को [[तुंगभद्रा नदी]] के तटवर्ती पम्पाक्षेत्र (वर्तमान [[हम्पी]]) के किसी गांव में हुआ था। उनके पिता मायणाचार्य उस समय के [[वेद]] के प्रकांड विद्वान थे। मां श्रीमती देवी भी विदुषी थी। इन्हीं विद्यारण्य के भाई आचार्य [[सायण]] ने चारों वेदों का वह प्रतिष्ठित टीका की थी, जिसे ‘सायणभाष्य’ के नाम से जाना जाता है। विद्यारण्य का बचपन का नाम माधव था। विद्यारण्य का नाम तो 1331 में उन्होंने तब धारण किया, जब उन्होंने संन्यास ग्रहण किया।
विद्यारण्य ने हरिहर प्रथम के समय से राजाओं की करीब तीन पीढ़ियों का राजनीतिक व सांस्कृतिक निर्देशन किया। 1372 में करीब 76 वर्ष की आयु में उन्होंने राजनीति से सेवानिवृत्ति ली और [[शृंगेरी
विद्यारण्य की प्रारंभिक शिक्षा तो उनके पिता के सान्निध्य में ही हुई थी, लेकिन आगे की शिक्षा के लिए वह [[कांची कामकोटि पीठ]] के आचार्य [[विद्यातीर्थ]] के पास गये थे। इन स्वामी विद्यातीर्थ ने विद्यारण्य को मुस्लिम आक्रमण से देश की [[संस्कृति]] और समाज की रक्षा हेतु नियुक्त किया था। विद्यारण्य ने गुरु का आदेश पाकर पूरा जीवन उसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समर्पित कर दिया।
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* पराशर-स्मृति व्याख्यान
* स्मृतिसंग्रह
* [[दृग्-दृश्य-विवेक]]
==इन्हें भी देखें==
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