"अरस्तु का विरेचन सिद्धांत": अवतरणों में अंतर
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अनुनाद सिंह (वार्ता | योगदान) |
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अरस्तू द्वारा प्रतिपादित त्रासदी के प्रभाव का भारतीय काव्यशास्त्र में करुण रस से पर्याप्त साम्य है। त्रासद प्रभाव के आधारभूत मनोवेग है- करुणा और त्रास। ये दोनों भाव मूलतः दुःखद हैं। उधर करुण रस का स्थायी भाव ‘शोक’ है। भारतीय काव्यशास्त्र ‘शोक’ स्थायी भाव के अन्तर्गत करुणा के साथ त्रास के अस्तित्व को स्वीकार करता है। इष्ट नाश या विपत्ति शोक के कारण हैं। इनसे करुणा और त्रास दोनों की उद्भूति होती है। विपत्ति के साक्षात्कार से करुणा की, वैसी ही विपत्ति की पुनरावृत्ति की आशंका से त्रास की अनुभूति होती है। किन्तु भारतीय आचार्यों और अरस्तू के दृष्टिकोण में प्रमुख अन्तर यह है कि अरस्तू का त्रासद प्रभाव एक मिश्र भाव है, जबकि भारतीय काव्यशास्त्र का शोक स्थायी भाव मूलतः अमिश्र है, जैसे - [[सीता]] के दुर्भाग्य से उत्पन्न करुणा में त्रास का स्पर्श नहीं है, जबकि अरस्तू की दृष्टि में त्रासहीन करुण प्रसंग आदर्श स्थिति नहीं है।
ple== इन्हें भी देखें==
*[[उदात्त]] (sublime)
*[[प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत]]
==बाहरी कड़ियाँ==
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