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है कौन विघ्न ऐसा जग में टिक सके वीर नर के मग में?खम ठोक ठेलता है जब नर पर्वत के जाते पांव उखड़...। ऐसे ही दबंग व्यक्तित्व का नाम था श्री अचल सिंह राजावत। स्वाभिमानी प्रतिभा के धनी श्री अचल सिंह राजावत का जन्म बीकासर गांव में 3 जून 1931 को हुआ। इनकी माता जी का नाम श्रीमती नैनू देवी था। इनके पिता स्वर्गीय ठाकुर जोरावर सिंह जी का नोखा मंडी की स्थापना में अमूल्य योगदान रहा । वे डींगल भाषा के विद्वान थे और इसी नाते बीकानेर महाराजा श्री गंगा सिंह जी ने उन्हें इतालवी विद्वान श्री एल. पी. तैस्सीतोरी, जो राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति के शोधकर्ता थे, का शोधकार्य में मार्गदर्शक (गाइड) नियुक्त किया था। ठाकुर जोरावर सिंह जी क्षेत्र के परम सम्माननीय व्यक्ति थे। श्री अचल सिंह राजावत वह शख्सियत थे जिन्होंने शिक्षा के साथ-साथ अपने शिष्यों को अनुशासन, सच्चरित्र और साहस के साथ जीवन में आगे बढ़ने का पाठ पढ़ाया। इसी बदौलत आज उनके कई शिष्य विभिन्न क्षेत्रों में राजस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं। सभी जगह उनको आदर पूर्वक गुरु जी संबोधित करते थे। अध्यापन के साथ-साथ हिंदी, अंग्रेजी व राजस्थानी भाषा खासकर डींगल साहित्य में उन्होंने महारत हासिल की थी। सम सामयिक विषयों पर उनकी काव्य रचनाएँ प्रभावी रही हैं। राजस्थानी काव्य मांय स्वाधीनता चेतना, आज रो राजस्थान, राष्ट्र रै पिछड़ेपन रै कारण अर व्यारों समाधान रै उपाय, सांप्रदायिक सद्भाव और ग्रामीण युवा, दिवाल़ी लोक उच्छब रो अनूठो त्यूंहार, सांप्रदायिक एकता का त्योहार मकर सक्रांति, जांगल़ प्रदेश की लोक देवी करणी माता, सत्य की असत्य पर जीत दीपावली, स्वतंत्रता आंदोलन और राजस्थान, बीकानेर की गौरव कला रम्मत, मरू प्रदेश री कृषि कहावतां, राजस्थानी लोक कहावतां आदि अनेक रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी से हो चुका है। कवि सम्मेलनों व अन्य कार्यक्रमों में वीर रस से ओतप्रोत उनकी रचनाओं में साहस और प्रतिकूल स्थितियों से जूझ कर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। साहित्य मनीषी श्री अचल सिंह राजावत जब नोखा के बाबा छोटूनाथ उच्च माध्यमिक विद्यालय में कार्यरत थे तो भवन के जीर्णोद्धार के लिए दानदाताओं से आर्थिक सहयोग जुटाकर इस काम को अंजाम तक पहुंचाया।
शिक्षाविद श्री अचल सिंह राजावत को संस्कार भारती, बीकानेर; सरस्वती काव्य एवं कला संस्थान; लायंस क्लब, बीकानेर एवं समय-समय पर आयोजित होने वाले शिक्षक सम्मान समारोह में सम्मानित किया जाता रहा है। बीकानेर राजघराने में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में भी श्री राजावत को आदर सम्मान मिलता रहा है। अध्यापक पद पर श्री अचल सिंह राजावत की प्रथम नियुक्ति 9 सितंबर 1948 को स्टेट स्कूल, नोखा में हुई और उप जिला शिक्षा अधिकारी के पद से 30 जून 1989 को सेवानिवृत्त हुए। 41 वर्षों के इस गौरवशाली कार्यकाल में शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न अवसरों पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में वे अपनी ओजस्वी वाणी व विचारों से समाज उत्थान और राष्ट्रप्रेम की भावना को जागृत करते रहे हैं।83 वर्ष की उम्र में देहांत तक भी इनकी वाणी में वही ओज व जोश बरकरार रहा। डिंगल बोली में वीर रस की उनकी कविताएं सुनकर आज भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
सेवाकाल में वर्ष 1953 में एनसीसी के ग्रुप कमांडर तथा 1964 में एनसीसी ऑफिसर के रूप में कामठी से कमीशंड ऑफिसर की ट्रेनिंग सफलतापूर्वक प्राप्त की। अचूक निशानेबाज के रूप में ख्याति प्राप्त श्री अचल सिंह राजावत ने इस प्रशिक्षण में भी शत-प्रतिशत लक्ष्य वेधन के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया। जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम दिल्ली में अखिल भारतवर्षीय खेल प्रतियोगिता मैं राजस्थान टीम का नेतृत्व कर इस क्षेत्र को गौरवान्वित किया। आपने कंटिजेन्ट लीडर के रूप में अमिट प्रभाव छोड़कर प्रमाण पत्र प्राप्त किया। वर्ष 1964 में शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में राजस्थान स्तर के वाद विवाद में आपने प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया। शिक्षक सेवाकाल में इनके अनुशासन को आज भी मिसाल के रूप में याद किया जाता है।इससे युवा शक्ति को प्रेरणा मिलती रहेगी। वाकपटुता के धनी श्री राजावत में ज्ञान का अथाह भंडार थे। उनकी वाणी शैली ने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भैरों सिंह शेखावत को भी प्रभावित किया जब वह नोखा में बागड़ी राजकीय महाविद्यालय की आधारशिला कार्यक्रम में पधारे थे। श्री राजावत को ‘दी ग्रेट एक्सपोनेंट ऑफ राजस्थान’ भी कहा गया है। श्री अचल सिंह राजावत वह हस्ती थे जिन्होंने शैक्षणिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक बुलंदियों को छूने के बाद भी अपनी धरती और लोक परंपराओं तथा आस्था के प्रति अपने फर्ज से कभी विचलित नहीं हुए। जीवन के अंतिम पड़ाव में भी श्री राजावत की अपनी जन्म भूमि की माटी और कर्म भूमि नोखा कि यश वृद्धि के लिए कुछ ना कुछ सृजन करने की इच्छा रहती थी। दिल की बीमारी के कारण भले ही डॉक्टरों ने श्री राजावत को विश्राम करने की सलाह दी थी लेकिन सामाजिक जन जागरण के कार्यक्रमों में सहभागिता के लिए उसी दमखम से उठते उनके कदमों को कोई नहीं थाम सका, तभी तो ऐसी शख्सियतों के बारे में कहा गया है कि “है कौन विघ्न ऐसा जग में टिक सके वीर नर के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर पर्वत के जाते पांव उखड़”।
16 नवंबर 2014 को आप अचानक की सब को हतप्रभ छोड़कर इस संसार से विदा हो गए। आपके 6 पुत्र हैं शुभकरण सिंह उमेद सिंह रघुनाथ सिंह हरी सिंह अजीत सिंह व विक्रम सिंह। शुभकरण सिंह जेल विभाग के उप अधीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं, अजीत सिंह राजस्थान प्रशासनिक सेवा में वरिष्ठ पद पर एवं विक्रम सिंह राज्य कर सेवा में उच्च पद पर आसीन हैं। आपकी पत्नी श्रीमती फूल कुमारी भी शिक्षा विभाग में प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हो चुकी हैं आपकी स्मृति अवशेष छतरी बीकासर गांव में स्थित है।