"जैसलमेर में धर्म": अवतरणों में अंतर

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महारावल मूलराज व उनके उत्तराधिकारी गजसिंह के राज्यकाल में भी जैसलमेर राज्य में जैन धर्म की निरंतर प्रगति होती रही। इनके काल में पादुका स्थापन, स्तम्भों का निर्माण, मंदिर की स्थापना व उत्सवों के आयोजन में प्रचुर धन खर्च किया गया, संघ यात्रा रथयात्रा आदि के भी कई आयोजन किये गये। १८४० ई. अमरसागर नामक स्थल पर आदिनाथ जी की मूर्किंत स्थापित कर भव्य मंदिर निर्किंमत कराया गया था। इस प्रकार जैन धर्म राज्य के प्रारंभिक काल से लेकर आद्यावदि तक यहाँ प्रभावशाली रहा। अपनी सुरक्षित भौगोलिक स्थिति के कारण यहाँ जैन मुनियों, धर्माचायों ने प्रश्रय लिया व अन्य स्थानों से दुर्लभ ग्रंथ लाकर तथा यहाँ रहकर उनकी रचना कर एक विशाल ग्रंथालयों में २६८३ ग्रंथ सुरक्षित किय। जैसलमेर राज्य के जैन धर्म के बारे में सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि यहाँ के शासकों द्वारा इस धर्म के पालन करने वालों को पूर्ण राज्याश्रय दिया, किन्तु स्वयं उस धर्म से दीक्षित नहीं हुए, साथ ही जैन धर्म से प्रभावित होने के पश्चात् भी उन्होंने अन्य किसी धर्म का तिरस्कार या अवनति में हिस्सा नहीं लिया।
 
== इस्लाम धर्ममजहब ==
 
'''जैसलमेर राज्य में प्रारंभ से ही इस्लाम धर्म मानने वाले लोगों का अस्तित्व रहा है, इस क्षेत्र में पाये जाने वाले इस्लाम धर्म के अनुयायी अधिकांशतः स्थानीय जातियों द्वारा बलात् इस्लाम धर्म स्वीकृत करने वालों में से है,है।''' जैसा के सर्व विदित है कि भारत में सर्वप्रथम इस्लाम का प्रार्दुभाव सिंध के विस्तृत भू-भाग पर ही हुआ था। यहाँ रहने वाले अधिकांश मुस्लिम स्थानीय जातियों से परिवर्तित है, अतः उनके रोटी-बेटी के संबंध भले ही अपने मूल परिवारों से समाप्त हो गये हैं, परंतु उनक कुल गोत्र रीति-रिवाज आदि वही हैं तथा यही कारण है कि यहाँ हिन्दू-मुस्लिम जैसे दो संप्रदायों में कभी वैमनस्य पैदा नहीं हुआ।
 
यहाँ पर मूलतः अरब व तुर्क से आये हुए गोत्रीय मुस्लिम भी है। जो कि यहाँ के मुस्लिम संप्रदाय के धर्म प्रमुख का कार्य करते हैं, इनमें मुल्ला, मौलवी फकीर आदि जैसे कार्यों में रहते हैं।