"संन्यास": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Swami Vivekananda 1896.jpg|thumb|300px|[[विवेकानन्द]] (१८९४) एक संन्यासी थे]]
 
''''संन्यास'''' ([[ISO 15919]]: Saṁnyāsa , Saṁnyās ),
[[सनातन धर्म]] में जीवन के चार भाग ([[आश्रम]]) किए गए हैं- [[ब्रह्मचर्य आश्रम]], [[गृहस्थ आश्रम]], [[वानप्रस्थ आश्रम]] और '''[[संन्यास आश्रम]]'''। संन्यास आश्रम का उद्देश्य [[मोक्ष]] की प्राप्ति है। सन्यास का अर्थ सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर निष्काम भाव से प्रभु का निरन्तर स्मरण करते रहना। शास्त्रों में संन्यास को जीवन की सर्वोच्च अवस्था कहा गया है।