"दलित": अवतरणों में अंतर

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== ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्‍य ==
[[भारत]] में दलित आंदोलन की शुरूआत [[ज्योतिराव गोविंदराव फुले]] के नेतृत्व में हुई। ज्योतिबा जाति से [[माली]] थे और समाज के ऐसे तबके से संबध रखते थे जिन्हे उच्च जाति के समान अधिकार नहीं प्राप्त थे। इसके बावजूद ज्योतिबा फूले ने हमेशा ही तथाकथित 'नीची' जाति के लोगों के अधिकारों की पैरवी की। भारतीय समाज में ज्योतिबा का सबसे दलितों की शिक्षा का प्रयास था। ज्योतिबा ही वो पहले शख्स थे जिन्होंन दलितों के अधिकारों के साथ-साथ दलितों की शिक्षा की भी पैरवी की। इसके साथ ही ज्योतिबा ने महिलाओं के शिक्षा के लिए सहारनीय कदम उठाए। भारतीय इतिहास में ज्योतिबा ही वो पहले शख्स थे जिन्होंने दलितों की शिक्षा के लिए न केवल विद्यालय की वकालत की बल्कि सबसे पहले दलित विद्यालय की भी स्थापना की। ज्योतिबा में भारतीय समाज में दलितों को एक ऐसा पथ दिखाया था जिसपर आगे चलकर दलित समाज और अन्य समाज के लोगों ने चलकर दलितों के अधिकारों की कई लड़ाई लडी। यूं तो ज्योतिबा ने [[भारत]] में दलित आंदोलनों का सूत्रपात किया था लेकिन इसे समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम बाबासाहेब [[भीमराव अम्बेडकर]] ने किया। एक बात और जिसका जिक्र किए बिना [[दलित आंदोलन]] की बात बेमानी होगी वो है [[बौद्ध धर्म]]। ईसा पूर्व 600 ईसवी में ही बौद्ध धर्म ने हिंदू समाज के निचले तबकों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। [[भगवान गौतम बुद्ध]] ने इसके साथ ही [[बौद्ध धर्म]] के जरिए एक सामाजिक और राजनीतिक क्रांति लाने की भी पहल की। इसे राजनीतिक क्रांति कहना इसलिए जरूरी है क्योंकि उस समय सत्ता पर धर्म का आधिपत्य था और समाज की दिशा धर्म के द्वारा ही तय की जाती थी। ऐसे में समाज के निचले तलबे को क्रांति की जो दिशा गौतम बुद्ध ने दिखाई वो आज भी प्रासांगिक है। भारत में [[चार्वाक]] के बाद [[गौतम बुद्ध]] ही पहले ऐसे शख्स थे जिन्होंने ब्राह्मणवाद, जातीवाद और अंधविश्वास के ख़िलाफ़ न केवल आवाज उठाई बल्कि एक दर्शन भी दिया। जिससे कि समाज के लोग बौद्धिक दास्यता की जंजीरों से मुक्त हो सकें।
 
यदि समाज के निचले तबकों के आदोलनों का आदिकाल से इतिहास देखा जाए तो चार्वाक को नकारना भी संभव नहीं होगा। यद्यपि चार्वाक पर कई तरह के आरोप लगाए जाते हैं इसके बावजूद चार्वाक वो पहला शख्स था जिसने लोगों को भगवान के भय से मुक्त होने सिखाया। भारतीय दर्शन में चार्वाक ने ही बिना धर्म और ईश्वर के सुख की कल्पना की। इस तर्ज पर देखने पर चार्वाक भी दलितों की आवाज़ उठाता नज़र आता है।....खैर बात को लौटाते हैं उस वक्त जिस वक्त दलितों के अधिकारों को कानूनी जामा पहनाने के लिए भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने लड़ाई शुरू कर दी थी।..वक्त था जब हमारा देश भारत [[ब्रिटिश उपनिवेश]] की श्रेणी में आता था। लोगों के ये दासता का समय रहा हो लेकिन दलितों के लिए कई मायनों में स्वर्णकाल था।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/दलित" से प्राप्त