"परशुराम": अवतरणों में अंतर
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पशुराम के साथ पासी जाति का भी बर्णन मिलती है! कितने तो ये भी मानते हैं की पशुराम के बंशज है पासी , तो कोई ये मानते है की भरशिव नागवंशी पासी को शिव भगवान ने सेना बनाकर भेजा था पशुराम के पास अर्थात पशुराम के सेना पासी जाति के लोग थे, कही तो ये भी कहाँ जाता है की पशुराम के पाँच फरसे पासी ने ही बनाकर दिया था, एक बात तो तय है की पासी का संबंध पशुराम से था ये वेदो पुरानो मे मिलती है! टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन उन्नत मोबाइल संपादन |
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वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने [[भीष्म]], [[द्रोणाचार्य|द्रोण]] व [[कर्ण]] को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होनें कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नः परशुराम: प्रचोदयात्।" वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने [[अत्रि]] की पत्नी [[अनसूया]], [[अगस्त्य]] की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में [[कल्कि|कल्कि अवतार]] होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।
== पौराणिक परिचय ==
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=== जन्म ===
प्राचीन काल में [[कन्नौज]] में गाधि नाम के एक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्चात् वहाँ भृगु ऋषि ने आकर अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर [[पीपल]] का आलिंगन करना और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो उसने अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया। इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योगशक्ति से भृगु को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी। इस पर सत्यवती ने भृगु से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। समय आने पर सत्यवती के गर्भ से [[जमदग्नि ऋषि|जमदग्नि]] का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। [[रेणुका]] से उनके पाँच पुत्र हुए जिनके नाम थे - रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस और परशुराम।<ref>{{Cite web|url=https://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/lord-parshuram-birthplace-and-time-118041600053_1.html|title=भगवान परशुराम का जन्म कब और कहां हुआ था?|last=|first=|date=|website=Hindi webdunia|archive-url=https://web.archive.org/web/20200326183301/https://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/lord-parshuram-birthplace-and-time-118041600053_1.html|archive-date=26 मार्च 2020|dead-url=|access-date=|url-status=dead}}</ref>
=== माता पिता भक्त परशुराम ===
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तब सहस्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि को मार डाला। परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं। इस घोर घटना ने परशुराम को क्रोधित कर दिया और उन्होंने संकल्प लिया-"मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का नाश करके ही दम लूँगा"।उसके बाद उन्होंने अहंकारी और दुष्ट प्रकृति के हैहयवंशी क्षत्रियों से 21 बार युद्ध किया।
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