"कावेरी जल विवाद": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Rescuing 2 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.1 |
टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका |
||
पंक्ति 3:
प्रवाह के आधार पर कर्नाटक नदी से पानी का उचित हिस्सा मांग रहा है। इसमें कहा गया है कि पूर्व-स्वतंत्रता समझौते अमान्य हैं और मद्रास प्रेसीडेंसी के पक्ष में भारी तिरछा कर दिए गए हैं, और "पानी के समान बंटवारे" के आधार पर पुन: समझौता करने की मांग की है। दूसरी ओर, तमिलनाडु का कहना है कि उसने पहले ही लगभग 3,000,000 एकड़ (12,000 किमी 2) भूमि विकसित कर ली है और इसके परिणामस्वरूप उपयोग के मौजूदा पैटर्न पर बहुत अधिक निर्भरता आ गई है। इस पैटर्न में कोई बदलाव, यह कहता है ...
==जल विवाद से संबंधित संवैधानिक प्रावधान==
संविधान के अनुच्छेद 262 में जल संबंधी विवाद का जिक्र किया गया है जिसका शीर्षक कुछ इस प्रकार है -
=== '''अनुच्छेद 262 - अंतर्राज्यिक नदियों या नदी घाटियों के जल संबंधी विवादों का न्यायनिर्णयन''' ===
'''इस अनुच्छेद के तहत 2 प्रावधानों की चर्चा की गई है जो निम्नलिखित है-'''
1. संसद, विधि द्वारा अंतर्राज्यिक नदियों तथा नदी घाटियों के जल के प्रयोग, वितरण या नियंत्रण से संबन्धित किसी विवाद पर शिकायत का न्यायनिर्णयन (Adjudication) कर सकती है।
2. इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद, यह व्यवस्था कर सकती है कि ऐसे किसी विवाद में न ही उच्चतम न्यायालय तथा न ही कोई अन्य न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करें।
इसी अनुच्छेद के तहत संसद ने दो कानून बनाए। (1) नदी बोर्ड अधिनियम (1956) (2) अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956)।
(1) '''नदी बोर्ड अधिनियम (1956)''' - इस अधिनियम का काम है अंतरराज्यीय नदियों तथा नदी घाटियों के नियंत्रण तथा विकास के लिए नदी बोर्ड (River board) की स्थापना करना।
इन नदी बोर्डों की स्थापना संबन्धित राज्यों के निवेदन पर केंद्र सरकार द्वारा उन्हे सलाह देने हेतु की जाएगी।
(2) '''अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956)''' - इस अधिनियम का इस्तेमाल करके केंद्र सरकार दो या अधिक राज्यों के मध्य नदी जल विवाद के न्यायनिर्णयन हेतु एक अस्थायी न्यायालय (यानी कि ट्रिब्यूनल या न्यायाधिकरण) का गठन कर सकती है।
🔹 न्यायाधिकरण (Tribunal) का निर्णय अंतिम तथा विवाद से संबन्धित सभी पक्षों के लिए मान्य होता है।
इसका मतलब ये नहीं है इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय नहीं ले जाया जा सकता है। इस सब मसले में अगर कानूनी दाव-पेंच का मामला आ जाता है तो उच्चतम न्यायालय को यह अधिकार है कि वह राज्यों के मध्य जल विवादों की स्थिति में उनसे जुड़े मामलों की सुनवाई कर सकता है।
इस अधिनियम का इस्तेमाल करके अब तक कई अंतरराज्यीय जल विवाद न्यायाधिकरणों (Interstate Water Disputes Tribunals) का गठन किया जा चुका है। जिसे नीचे चार्ट में देखा जा सकता है:
{| class="wikitable"
|क्र. नाम
|स्थापना वर्ष
|संबंधित राज्य (जिसके मध्य विवाद है)
|-
|1. कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण
|1969
|महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश
|-
|2. गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण
|1969
|महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं ओडीशा
|-
|3. नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण
|1969
|राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र
|-
|4. रावी एवं व्यास जल विवाद न्यायाधिकरण
|1986
|पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान
|-
|5. कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण
|1990
|कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु एवं पुडुचेरी
|-
|6. द्वितीय कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण
|2004
|महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश
|-
|7. वंशधरा जल विवाद न्यायाधिकरण
|2010
|ओडीशा एवं आंध्र प्रदेश
|-
|8. महादायी जल विवाद न्यायाधिकरण
|2010
|गोवा, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक
|}
इसी में से एक है कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण जो कि 1990 में बना था और अपने अन्तरिम आदेश में तमिलनाडु को 205 टीएमसी फीट पानी देने को कहा गया था और कर्नाटक ने इस फैसले पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी।
लगभग 16 साल बाद 2007 में न्यायाधिकरण ने अंतिम फैसला दिया। न्यायाधिकरण (Tribunal) के अनुसार कावेरी बेसिन में 740 टीएमसी फीट (अरब क्यूबिक फीट) पानी है और फैसला दिया कि प्रतिवर्ष 419 टीएमसी फीट पानी तमिलनाडु को मिलना चाहिए और 270 टीएमसी फीट पानी कर्नाटक को। बाद बाकी पानी केरल और पुडुचेरी में बाँट दिया जाएगा।
न्यायाधिकरण ने ये भी स्पष्ट करते हुए कहा कि सामान्य मानसून वर्ष में कर्नाटक को हर साल 192 टीएमसी फीट पानी तमिलनाडु के लिए छोड़ना होगा। कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों ही इस फैसले से संतुष्ट नहीं थे इसीलिए दोनों ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।
सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायाधिकरण द्वारा 2007 में दिये गए फैसले के खिलाफ कर्नाटक और तमिलनाडु द्वारा दायर याचिकाओं पर फरवरी 2018 में सुनवाई की।
इस फैसले में तमिलनाडु को मिलने वाले 192 टीएमसी फीट (अरब क्यूबिक फीट) पानी को घटाकर 177.25 टीएमसी फीट कर दिया गया। इस तरह से कर्नाटक को अब 14.75 टीएमसी फीट पानी ज़्यादा दिया जाने लगा।
= संदर्भ =
<references />
<ref>{{Cite web|url=https://wonderhindi.com/inter-state-relations/|title=Inter-State Relations in hindi ॥ अंतर्राज्यीय जल विवाद, अंतर्राज्यीय परिषद {{!}} pdf|date=2020-07-04|website=wonderhindi|language=en|access-date=2021-04-12}}</ref>
*[https://web.archive.org/web/20170924184538/http://www.drishtiias.com/blog/description-cauvery-water-dispute कावेरी जल विवाद]
*[https://web.archive.org/web/20170924182623/http://www.jagranjosh.com/current-affairs/cauvery-water-dispute-1475672614-2 कावेरी जल विवाद]
|