"प्रकृतिवाद (दर्शन)": अवतरणों में अंतर

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‘प्रकृति’ के अर्थ के संबंध में दार्शनिकों में मतभेद रहा है। [[एडम्स]] के अनुसार यह शब्द अत्यन्त जटिल है जिसकी अस्पष्टता के कारण ही अनेक भूलें होती हैं। ‘प्रकृति’ को तीन प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है। प्रथम अर्थ में प्रकृति का तात्पर्य उस विशेष गुण से है जो मानव जीवन को विकास एवं उन्नति की ओर ले जाने में सहायक होते हैं। सर्वप्रथम रूसो ने ही प्रकृति के इस अर्थ से अवगत कराया। जिसके आधार पर डॉ॰ हाल ने ‘बाल केन्द्रित शिक्षा’ का स्वरूप विकसित किया। अतः प्रथम अर्थ में प्रकृति का तात्पर्य मानव स्वभाव से लिया जाता है। ‘प्रकृति’ का द्वितीय अर्थ ‘बनावट के ठीक विपरीत’ बताया गया। अर्थात् जिस कार्य में मनुष्य ने सहयोग न दिया हो वही प्राकृतिक है। ‘प्रकृति’ के तीसरे अर्थ के अनुसार ‘समस्त विश्व’ ही प्रकृति है तथा शिक्षा के अनुसार इसका तात्पर्य विश्व की क्रिया का अध्ययन तथा उसे जीवन में उतारने से है। कुछ विद्वान ऐसा मानते हैं कि मनुष्य को प्रकृति की विकासवादी शृंखला में बाधक नहीं बनना चाहिए। अपितु उसे अलग ही रहना चाहिये। चूँकि विकास किसी व्यक्ति के बिना नहीं हो सकता है, व्यक्ति बिना प्रयोजन कार्य नहीं कर सकता, इसलिए कुछ विद्वान ऐसा मानते हैं कि इस विकास के नियम का अध्ययन करना चाहिये तथा प्रकृति का अनुयायी हो जाना चाहिये।
 
इस प्रकार स्पष्ट है कि ‘प्रकृति’ के अर्थ के संबंध में मतैक्य नहीं है। प्राचीन सिद्धान्त के अनुसार वह मार्ग जिसमें व्यक्ति जीवन में अधिक मूल्यों की प्राप्ति कर सकता है, वह है- अपने जीवन का प्रकृति के साथ यथा संभव निकट संबंध स्थापित करना। यह विचार डेमोक्रीट्स, एपीक्यूरस तथा ल्युक्रिटियस के विचारों से साम्य रखते हैं। ये सभी विद्वान सामान्यतः ऐसे जीवन की प्राप्ति की कामना रखते थे जो यथा संभव कष्ट एवं पीड़ा से मुक्त हो। अधिकांश प्रकृतिवादियों ने सर्वोच्च श्रेय का विवेचन करते हुए उसे श्रेष्ठ एवं शाश्वत सुख माना है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रकृतिवाद का नीतिशास्त्र सुखवादी है।
 
-Lokendra Joshi
 
==प्रकृतिवाद के रूप==