"जैसलमेर": अवतरणों में अंतर

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== शासक ==
{{main|जैसलमेर के शासक}}
जैसलमेर राज्य की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के आरंभ में ११७८ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल के द्वारा किया गया। भाटी मूलत: इस प्रदेश के निवासी नहीं थे। यह अपनी जाति की उत्पत्ति मथुरा व द्वारिका के यदुवंशी इतिहास पुरुष कृष्ण से मानती है। कृष्ण के उपरांत द्वारिका के जलमग्न होने के कारण कुछ बचे हुए यदु लोग जाबुलिस्तान, गजनी, काबुल व लाहौर के आस-पास के क्षेत्रों में फैल गए थे। कहाँ इन लोगों ने बाहुबल से अच्छी ख्याति अर्जित की थी, परंतु मद्य एशिया से आने वाले तुर्क आक्रमणकारियों के सामने ये ज्यादा नहीं ठहर सके व लाहौर होते हुए पंजाब की ओर अग्रसर होते हुए भटनेर नामक स्थान पर अपना राज्य स्थापित किया। उस समय इस भू-भाग पर स्थानीय जातियों का प्रभाव था।था अत:। ईस भुभाग पर पहली से छठ्ठि शताब्दी तक कच्छ से आई राईका जाति का शासन था । जिन्होंने ब्हसर,कोडुम्बा और लादरवा नगर स्थापित किये थे । लादरवा राईको की राजधानी थी । छठ्ठि शताब्दीी के अंत में सिंध की जातीया (परमार , सोलंकी वगैरह ) के आक्रमण से राईका जाति का शासन ईस भुभाग पर खत्म हो गया । बाद में सातवीं शताब्दी के अंत में राईका ईस भुभाग को त्याग कर मारवाड़ और सिंध में गए । और ये भुभाग छठ्ठि शताब्दी से भाटी ओ के आगमन तक यही सिंध की जातीयो के प्रभाव में रहा । भाटी भटनेर से पुन: अग्रसर होकर सिंध मुल्तान की ओर बढ़े। अन्तोगत्वा मुमणवाह, मारोठ, तपोट, देरावर आदि स्थानों पर अपने मुकाम करते हुए थार के रेगिस्तान स्थित परमारों के क्षेत्र में लोद्रवा नामक शहर के शासक को पराजित यहाँ अपनी राजधानी स्थापित की थी। इस भू-भाग में स्थित स्थानीय जातियों जिनमें राईका ,परमार, बराह, लंगा, भूटा, तथा सोलंकी आदि प्रमुख थे। इनसे सतत संघर्ष के उपरांत भाटी लोग इस भू-भाग को अपने आधीन कर सके थे। वस्तुत: भाटियों के इतिहास का यह संपूर्ण काल सत्ता के लिए संघर्ष का काल नहीं था वरन अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष था, जिसमें ये लोग सफल हो गए।
 
== स्थापत्यकला ==