"सुत्तनिपात": अवतरणों में अंतर
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'''सुत्तनिपात''' [[बौद्ध धर्म]] के [[थेरावाद]] सम्प्रदाय का ग्रन्थ है। यह [[खुद्दक निकाय]] के अन्तर्गत आता है। माना जाता है कि इसके सभी सुत्तों (सूत्रों) की रचना बुद्ध के महापरिनिर्वाण से पहले हो चुकी थी। इसमें मुख्यतः श्लोक हैं किन्तु कहीं-कहीं गद्य भी है।
सुत्तनिपात में तत्कालीन उत्तर भारत की सामाजिक, धार्मिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक आदि अवस्थाओं के सम्बन्ध में प्रचुर सामग्री है। वर्णव्यवस्था का खण्डन, शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन, बुद्ध के गृहत्याग का कारण, नाना मतवादों का विस्तार, तापस जीवन की महत्ता, प्राचीन ब्राह्मणों के कर्तव्य, यज्ञ-हवन आदि की निस्सारता, समाज में व्याप्त मिथ्याविश्वासों का वर्जन, विभिन्न दार्शनिक गुरुओं का निराकरण, आत्मा, परमात्मा के ऊहापोह की निस्सारता आदि विषयों पर इस ग्रन्थ में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। भिक्षुचर्या का सुन्दर निरूपण यहाँ मिलता है। बौद्ध गृहस्थ और भिक्षु के क्या कर्तव्य हैं? एक सद्गृहस्थ को कैसे जीवन यापन करना चाहिए? दुराचारी और दुःशील भिक्षु को संघ से बहिष्कृत करके शुद्ध भिक्षुओं के साथ ध्यान-भावना में जुटना चाहिए, किसी को हेय दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, सबको समान समझना चाहिए, दृष्टियों के फेर में पड़कर वादविवाद में नहीं पड़ना चाहिए, सांसारिक आसक्तियों को त्याग अकिंचन हो परमसुख निर्वाण की प्राप्ति के लिए जुट जाना चाहिए आदि सुत्तनिपात में वर्णित विषय हैं। रतन, मंगल, मेत्त आदि प्रसिद्ध सुत्त भी इसमें आए हुए हैं, जिनका कि पाठ प्रतिदिन भिक्षु करते हैं।
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