"गुरु": अवतरणों में अंतर

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अनुवाद: ऊपर को मूल (जड़) वाला, नीचे को तीनों गुण रुपी शाखा वाला उल्टा लटका हुआ संसार रुपी पीपल का वृक्ष जानो, इसे अविनाशी कहते हैं क्योंकि उत्पत्ति-प्रलय चक्र सदा चलता रहता है जिस कारण से इसे अविनाशी कहा है। इस संसार रुपी वृक्ष के पत्ते आदि छन्द हैं अर्थात् भाग (च्ंतजे) हैं। (य तम् वेद) जो इस संसार रुपी वृक्ष के सर्वभागों को तत्व से जानता है, (सः) वह (वेदवित्) वेद के तात्पर्य को जानने वाला है अर्थात् वह तत्वदर्शी सन्त है। जैसा कि गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में कहा है कि परम अक्षर ब्रह्म स्वयं पृथ्वी पर प्रकट होकर अपने मुख कमल से तत्वज्ञान विस्तार से बोलते हैं।<ref>{{Cite web|url=https://bhagwadgita.jagatgururampalji.org/hi/the-knowledge-of-gita-is-nectar/what-is-the-identification-of-a-complete-saint-and-where-is-the-evidence-in-scriptures/|title=25. तत्वदर्शी सन्त की क्या पहचान है तथा प्रमाणित सद्ग्रन्थों में कहाँ प्रमाण है|website=bhagwadgita.jagatgururampalji.org|language=en|access-date=2021-04-22}}</ref>
 
== वेदों में सच्चे गुरु की पहचान ==
यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि पूर्ण गुरु वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चौथाई श्लोकों को पूरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा। तत्वदर्शी सन्त वह होता है जो वेदों के सांकेतिक शब्दों को पूर्ण विस्तार से वर्णन करता है जिससे पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति होती है वह वेद के जानने वाला कहा जाता है।
 
== कबीर सागर में सच्चे गुरु की पहचान ==
कबीर जी ने सूक्ष्मवेद में कबीर सागर के अध्याय ‘‘जीव धर्म बोध‘‘ में पृष्ठ 1960 पर दिया है” :-
 
गुरू के लक्षण चार बखाना, प्रथम वेद शास्त्र को ज्ञाना।।
 
दुजे हरि भक्ति मन कर्म बानि, तीजे समदृष्टि करि जानी।।
 
चौथे वेद विधि सब कर्मा, ये चार गुरू गुण जानों मर्मा।।
 
अर्थात् ् कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जो सच्चा गुरू होगा, उसके चार मुख्य लक्षण होते हैं :-
 
सब वेद तथा शास्त्रों को वह ठीक से जानता है।
 
दूसरे वह स्वयं भी भक्ति मन-कर्म-वचन से करता है अर्थात् उसकी कथनी
 
और करनी में कोई अन्तर नहीं होता।
 
तीसरा लक्षण यह है कि वह सर्व अनुयाईयों से समान व्यवहार करता है,
 
भेदभाव नहीं रखता।
 
चौथा लक्षण यह है कि वह सर्व भक्ति कर्म वेदों के अनुसार करवाता है तथा अपने द्वारा करवाए भक्ति कर्मों को वेदों से प्रमाणित भी करता है।।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/गुरु" से प्राप्त