गुमनाम सदस्य
हिन्दी साहित्य का इतिहास (पेज-197) - सं- डॉ. नगेन्द्र
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:''लै दर्पण देखे श्रीमुख को, 'गोविंद' प्रभु चरननि सिर नावति॥
* [[छीतस्वामी]] (
*ई.) :''धन्य श्री यमुने निधि देनहारी ।
:''करत गुणगान अज्ञान अध दूरि करि, जाय मिलवत पिय प्राणप्यारी ॥
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