"सत्य नारायण व्रत कथा": अवतरणों में अंतर

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व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस प्रकार की समस्या आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर [[भगवान]] न केवल नाराज होते हैं अपितु दण्ड स्वरूप सम्पत्ति और बन्धु बान्धवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। प्रायः [[पूर्णिमा|पूर्णमासी]] को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से करने का निर्देश दिया गया है।<ref>{{Cite web |url=http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-KAK-satyanarayana-puja-4965170-NOR.html |title=क्यों करते हैं घर में सत्यनारायण भगवान की कथा? |access-date=7 अगस्त 2016 |archive-url=https://web.archive.org/web/20160817211553/http://religion.bhaskar.com/news/JM-JMJ-KAK-satyanarayana-puja-4965170-NOR.html |archive-date=17 अगस्त 2016 |url-status=dead }}</ref>
 
इनकी पूजा में [[केला|केले]] के पत्ते व फल के अतिरिक्त [[पंचामृत]], [[पंचगव्य]], [[सुपारी]], [[पान]], [[तिल]], [[मोली]], [[रोली]], [[कुमकुम]], [[दूर्वा]] की आवश्यकता होती जिनसे भगवान की पूजा होती है। सत्यनारायण की पूजा के लिए [[दूध]], [[मधु]], [[केला]], [[गंगाजल]], [[तुलसी पत्ता]], [[मेवा]] मिलाकर [[पंचामृत]] तैयार कियाबनाया जाता है जो भगवान को काफीअत्यंत पसन्दप्रिय है। इन्हें प्रसाद के तौररूप परमें फल, मिष्टान्न के अलावाअतिरिक्त आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर एक प्रसाद बनता है जिसे सत्तू ( पँजीरी ) कहा जाता है, उसका भी भोग लगता है।
 
== विधि ==