"बारूथ स्पिनोज़ा": अवतरणों में अंतर

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| notable_ideas = [[Pantheism]], [[determinism]], [[neutral monism]], [[intellectual freedom|intellectual]] and [[Freedom of religion|religious freedom]], [[separation of church and state]], criticism of [[Moses|Mosaic]] authorship of some books of the [[Hebrew Bible]], [[Government|political society]] derived from [[Power (sociology)|power]], not [[Social contract|contract]]
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'''बारूथ डी स्पिनोज़ा''' (Baruch De Spinoza) (; २४ नवम्बर १६३२ - २१ फ़रवरी १६७७) [[यहूदी]] मूल के डच दार्शनिक थे। उनका परिवर्तित नाम 'बेनेडिक्ट डी स्पिनोजा' (Benedict de Spinoza) था। उन्होने उल्लेखनीय वैज्ञानिक अभिक्षमता (aptitude) का परिचय दिया किन्तु उनके कार्यों का महत्व उनके मृत्यु के उपरान्त ही सम्झासमझा जा सका।
 
== परिचय ==
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स्पिनोजा का जन्म [[नीदरलैण्ड|हालैंड]] (एम्स्टर्डम) में, [[यहूदी]] परिवार में, सन् १६३२ में हुआ था। वे स्वभाव से एकांतप्रिय, निर्भीक तथा निर्लोभ थे। अपने विश्वासों को त्यागने के लिए उनको लोभ दिखाया गया, उनकी हत्या का षड्यंत्र रचा गया, उन्हें यहूदी संप्रदाय से बहिष्कृत किया गया, फिर भी वे अडिग रहे। सांसारिक जीवन उनको एक असह्य रोग के समान जान पड़ता था। अत: उससे मुक्ति पाने तथा ईश्वरप्राप्ति के लिए वे बेचैन रहते थे।
 
स्पिनोजा का जन्म [[नीदरलैण्ड|हालैंड]] (एम्स्टर्डम) में, [[यहूदी]] परिवार में, सन् १६३२ में हुआ था। वे स्वभाव से एकांतप्रिय, निर्भीक तथा निर्लोभ थे। अपने विश्वासों को त्यागने के लिए उनको लोभ दिखाया गया, उनकी हत्या का षड्यंत्र रचा गया, उन्हें यहूदी संप्रदाय से बहिष्कृत किया गया, फिर भी वे अडिग रहे। सांसारिक जीवन उनको एक असह्य रोग के समान जान पड़ता था। अत:अतH उससे मुक्ति पाने तथा ईश्वरप्राप्ति के लिए वे बेचैन रहते थे।
स्पिनोज़ा का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ उनका 'एथिक्स' ([[नीतिशास्त्र]]) है। किंतु इसके अतिरिक्त भी उन्होंने सात या आठ ग्रंथों का प्रणयन किया है। प्रिंसिपल्स ऑव फिलासफी तथा मेटाफिजिकल कोजिटेशंस का प्रकाशन १६६३ में और ट्रैक्टेटस थियोलोजिको पोलिटिकस (Tractatus Theologico Politicus) का प्रकाशन १६७० में, बिना उनके नाम के हुआ। उनके तीन अधूरे ग्रंथट्रैक्टेटस पोलिटिकस, ट्रैक्टेटस डी इंटेलेक्टस इमेनडेटिओन, ग्रैमैटिसेस लिंगुए हेब्रेसई (Tractatus Politicus de Intellectus Emendatione, Compendium Grammatices Linguae Hebraeae) हैं - जो उनके मुख्य ग्रंथ एथिक्स के साथ, उनकी मृत्यु के उपरांत उसी साल १६७७ में प्रकाशित हुए। बहुत दिनों बाद उनके एक और ग्रंथ ट्रैक्टेटस ब्रेविस डी डिओ (Tractatus Brevis de Deo) का पता चला, जिसका प्रकाशन १८५८ में हुआ। स्पिनोजा के जीवन तथा दर्शन के विषय में अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं जिनकी सूची स्पिनोज़ा इन द लाइट ऑव वेदांत (Spinoza in the light of Vedanta) में दी गई है।
 
स्पिनोज़ा का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ उनका 'एथिक्स' ([[नीतिशास्त्र]]) है। किंतु इसके अतिरिक्त भी उन्होंने सात या आठ ग्रंथों का प्रणयन किया है। प्रिंसिपल्स ऑव फिलासफी तथा मेटाफिजिकल कोजिटेशंस का प्रकाशन १६६३ में और ट्रैक्टेटस थियोलोजिको पोलिटिकस (Tractatus Theologico Politicus) का प्रकाशन १६७० में, बिना उनके नाम के हुआ। उनके तीन अधूरे ग्रंथट्रैक्टेटसग्रंथ ट्रैक्टेटस पोलिटिकस, ट्रैक्टेटस डी इंटेलेक्टस इमेनडेटिओन, ग्रैमैटिसेस लिंगुए हेब्रेसई (Tractatus Politicus de Intellectus Emendatione, Compendium Grammatices Linguae Hebraeae) हैं - जो उनके मुख्य ग्रंथ एथिक्स के साथ, उनकी मृत्यु के उपरांत उसी साल १६७७ में प्रकाशित हुए। बहुत दिनों बाद उनके एक और ग्रंथ ट्रैक्टेटस ब्रेविस डी डिओ (Tractatus Brevis de Deo) का पता चला, जिसका प्रकाशन १८५८ में हुआ। स्पिनोजा के जीवन तथा दर्शन के विषय में अनेक ग्रंथ लिखे गए हैं जिनकी सूची स्पिनोज़ा इन द लाइट ऑव वेदांत (Spinoza in the light of Vedanta) में दी गई है।
इस कल्पना का कि द्रव्य की सृष्टि हो सकती है अत: विचारतत्व और विस्तारतत्व द्रव्य हैं, स्पिनोज़ा ने घोर विरोध किया। द्रव्य, स्वयंप्रकाश और स्वतंत्र है, उसकी सृष्टि नहीं हो सकती। अत: विचारतत्व और विस्तारतत्व, जो सृष्ट हैं, द्रव्य नहीं बल्कि उपाधि हैं। स्पिनोज़ा अनीश्वरवादी इस अर्थ में कहे जा सकते हैं कि उन्होंने यहूदी धर्म तथा ईसाई धर्म में प्रचलित ईश्वर की कल्पना का विरोध किया। स्पिनोज़ा का द्रव्य या ईश्वर निर्गुण, निराकार तथा व्यक्तित्वहीन सर्वव्यापी है। किसी भी प्रकार ईश्वर को विशिष्ट रूप देना उसको सीमित करना है। इस अर्थ में स्पिनोज़ा का ईश्वर अद्वैत वेदांत के ब्रह्म के समान है। जिस प्रकार ब्रह्म की दो उपाधियाँ, नाम और रूप हैं, उसी प्रकार स्पिनोज़ा के द्रव्य की दो उपाधियाँ विचार और विस्तार हैं। ये द्रव्य के गुण नहीं है। ब्रह्म के स्वरूपलक्षण के समान द्रव्य के भी गुण हैं जो उसके स्वरूप से ही सिद्ध हो जाते हैं, जैसे उसकी अद्वितीयता, स्वतंत्रता, पूर्णता आदि। विचार तथा विस्तार को गुण न कहकर उपाधि कहना अधिक उपर्युक्त है, क्योंकि स्पिनोज़ा के अनुसार वे द्रव्य के स्वरूप को समझने के लिए बुद्धि द्वारा आरोपित हैं। इस प्रकार की अनंत उपाधियाँ स्पिनोज़ा को मान्य हैं। ईश्वर की ये उपाधियाँ भी असीम हैं परंतु ईश्वर की निस्सीमता निरपेक्ष है वहाँ इन उपाधियों की असीमता सापेक्ष है।
 
इस कल्पना का कि [[द्रव्य]] की सृष्टि हो सकती है अत: विचारतत्व और विस्तारतत्व द्रव्य हैं, स्पिनोज़ा ने घोर विरोध किया। द्रव्य, स्वयंप्रकाश और स्वतंत्र है, उसकी सृष्टि नहीं हो सकती। अत: विचारतत्व और विस्तारतत्व, जो सृष्ट हैं, द्रव्य नहीं बल्कि उपाधि हैं। स्पिनोज़ा अनीश्वरवादी इस अर्थ में कहे जा सकते हैं कि उन्होंने यहूदी धर्म तथा ईसाई धर्म में प्रचलित ईश्वर की कल्पना का विरोध किया। स्पिनोज़ा का द्रव्य या ईश्वर निर्गुण, निराकार तथा व्यक्तित्वहीन सर्वव्यापी है। किसी भी प्रकार ईश्वर को विशिष्ट रूप देना उसको सीमित करना है। इस अर्थ में स्पिनोज़ा का ईश्वर अद्वैत वेदांत के ब्रह्म के समान है। जिस प्रकार ब्रह्म की दो उपाधियाँ, नाम और रूप हैं, उसी प्रकार स्पिनोज़ा के द्रव्य की दो उपाधियाँ विचार और विस्तार हैं। ये द्रव्य के गुण नहीं है। ब्रह्म के स्वरूपलक्षण के समान द्रव्य के भी गुण हैं जो उसके स्वरूप से ही सिद्ध हो जाते हैं, जैसे उसकी अद्वितीयता, स्वतंत्रता, पूर्णता आदि। विचार तथा विस्तार को गुण न कहकर उपाधि कहना अधिक उपर्युक्त है, क्योंकि स्पिनोज़ा के अनुसार वे द्रव्य के स्वरूप को समझने के लिए बुद्धि द्वारा आरोपित हैं। इस प्रकार की अनंत उपाधियाँ स्पिनोज़ा को मान्य हैं। ईश्वर की ये उपाधियाँ भी असीम हैं परंतु ईश्वर की निस्सीमता निरपेक्ष है वहाँ इन उपाधियों की असीमता सापेक्ष है।
 
ईश्वर जगत् का स्रष्टा है, परंतु इस रूप में नहीं कि वह अपनी इच्छाशक्ति से संपूर्ण विश्व की रचना करता है। वास्तव में ईश्वर में इच्छाशक्ति आरोपित करना उसको सीमित करना है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि ईश्वर स्वतंत्र नहीं है; उसकी स्वतंत्रता उसकी सर्वनिरपेक्षता है न कि स्वंतत्र इच्छा इसी से स्पिनोज़ा सृष्टि को सप्रयोजन नहीं मानता। ईश्वर जगत् का कारण उसी अर्थ में है जिसमें स्वर्णपिंड आभूषण का या आकाश त्रिभुज का। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि ईश्वर परिवर्तनशील है। जगत् कल्पित है किंतु उसका आधार ईश्वर सत्य है। ईश्वर और जगत् विभिन्न हैं, परंतु विभक्त नहीं।