"खड़ीबोली": अवतरणों में अंतर

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खड़ी बोली, हिंदी का वह रूप है जिसमें [[संस्कृत]] के शब्दों की बहुलता करके वर्तमान हिंदी भाषा की सृष्टि हुई, इसी तरह उसमें [[फारसी]] तथा [[अरबी]] के शब्दों की अधिकता करके वर्तमान [[उर्दू]] भाषा की सृष्टि की गई है। खड़ी बोली से एक तात्पर्य उस बोली से है जिसपर [[ब्रजभाषा]] या [[अवधी]] आदि की छाप न हो । ठेंठ हिंदीं । परिनिष्ठित पश्चिमी हिंदी का एक रूप ।
 
खड़ी बोली निम्नलिखित स्थानों के ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाती है- [[मेरठ]], [[बिजनौर]], [[मुजफ्फरनगर]], [[सहारनपुर]], [[देहरादून]], [[हरिद्वार]] के मैदानी भाग, [[अम्बाला]], [[कलसिया]] और [[पटियाला]] के पूर्वी भाग, [[रामपुर]] और [[मुरादाबाद]]। खड़ी बोली क्षेत्र के पूर्व में [[ब्रजभाषा]], दक्षिण-पूर्व में [[मेवाती]], दक्षिण-पश्चिम में पश्चिमी राजस्थानी, पश्चिम में पूर्वी पंजाबी और उत्तर में [[पहाड़ी]] बोलियों का क्षेत्र है। [[मेरठ]] की खड़ी बोली आदर्श खडी बोली मानी जाती है जिससे आधुनिक हिंदी भाषा का जन्म हुआ, वही दूसरी और [[मुजफ्फरनगर]] व [[सहारनपुर]] [[बागपत]] मे खड़ी बोली मे [[हरयाणवी]] की झलक देखने को मिलती है। बाँगरू, जाटकी या हरियाणवी एक प्रकार से [[पंजाबी]] और [[राजस्थानी]] मिश्रित खड़ी बोली ही हैं जो [[दिल्ली]], [[करनाल]], [[रोहतक]], [[हिसार]] और [[पटियाला]], [[नाभा]], [[झींद]] के ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाती है।
 
खड़ी से 'खरी' का अर्थ लगाया जाता है, अर्थात शुद्ध अथवा ठेठ हिन्दी बोली। उस समय जबकि हिंदुस्तान में अरबी-फारसी या हिंदुस्तानी शब्द मिश्रित उर्दू भाषा का चलन था, या [[अवधी]] या [[ब्रज भाषा]] का। ठेठ या शुद्ध हिंदी का चलन नहीं था। लगभग 18वीं शताब्दी के आरम्भ के समय कुछ हिंदी गद्यकारों ने ठेठ हिंदी बोली में लिखना शुरू किया। इसी ठेठ हिंदी को 'खरी हिंदी' या 'खड़ी हिंदी' कहा गया। शुद्ध अथवा ठेठ हिंदी बोली या भाषा को उस समय साहित्यकारों द्वारा खरी या खड़ी बोली के नाम से सम्बोधित किया गया