Ankit kumar vijeta
Ankit kumar vijeta 14 जून 2015 से सदस्य हैं
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New poem by ankit
मसरूफ Ka
लोग कहते हैं कि हम रोते नहीं,
ये जरा साथ रहने वाले अंधेरो से पूछो.
जिक्र मेरा भी होगा उनकी खामोशियों में।
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कह के निकल जाने दो,
टूट जाने दो हमको बिखर जाने
Khusii mt dhoondo in zindagi ki rah me,
Zine ke liye maut bhi kaafi hothoti hai..
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