"वेद": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोत कम|date=मई 2019}}
 
'''वेद''', [[प्राचीन भारत]] के पवित्र साहित्य हैं जो [[हिन्दू धर्म|हिन्दुओं]]क्षत्रियों के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। वेद, विश्व के सबसे प्राचीन साहित्य भी हैं। [[भारत की संस्कृति|भारतीय संस्कृति]] में वेद सनातन [[हिन्दू वर्ण व्यवस्था|वर्णाश्रम]] धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं।
 
'वेद' [[शब्द]] संस्कृत [[भाषा]] के विद् ज्ञाने धातु से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं।
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*'''[[अथर्ववेद संहिता|अथर्ववेद]]''' - इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 कवितामयी मन्त्र हैं।
 
वेदों को ''अपौरुषेय'' (जिसे कोई व्यक्ति न कर सकता हो, यानि ईश्वर कृत) माना जाता है। यह ज्ञान विराटपुरुष से वा [[ब्रह्म|कारणब्रह्म]] से श्रुति परम्परा के माध्यम से सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने प्राप्त किया माना जाता है। यह भी मान्यता है कि परमात्मा ने सबसे पहले चार महर्षियों जिनके अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नाम थे के आत्माओं में क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान दिया, उन महर्षियों ने फिर यह ज्ञान ब्रह्मा को दिया। इन्हें ''श्रुति'' भी कहते हैं जिसका अर्थ है 'सुना हुआ ज्ञान'। अन्य आर्य ग्रंथों को ''स्मृति'' कहते हैं, यानि वेदज्ञ मनुष्यों की वेदानुगत बुद्धि या स्मृति पर आधारित ग्रन्थ। वेद मंत्रों की व्याख्या करने के लिए अनेक ग्रंथों जैसे [[ब्राह्मण-ग्रन्थ]], [[आरण्यक]] और [[उपनिषद्|उपनिषद]] की रचना की गई। इनमे प्रयुक्त भाषा [[वैदिक संस्कृत]] कहलाती है जो [[संस्कृत भाषा|लौकिक संस्कृत]] से कुछ अलग है। ऐतिहासिक रूप से प्राचीन भारत और [[हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार|हिन्दक्षत्रिय-आर्य]] जाति के बारे में वेदों को एक अच्छा सन्दर्भ श्रोत माना जाता है। संस्कृत भाषा के प्राचीन रूप को लेकर भी इनका साहित्यिक महत्व बना हुआ है।
 
वेदों को समझना प्राचीन काल में भारतीय और बाद में विश्व भर में एक वार्ता का विषय रहा है। इसको पढ़ाने के लिए छः अंगों- [[शिक्षा (वेदांग)|शिक्षा]], [[कल्प (वेदांग)|कल्प]], [[निरुक्त]], [[व्याकरण (वेदांग)|व्याकरण]], [[छंद|छन्द]] और [[ज्योतिष]] के अध्ययन और उपांगों जिनमें छः शास्त्र- पूर्वमीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य, और वेदांत व दस [[उपनिषद्]]- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडुक्य, ऐतरेय, तैतिरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक आते हैं। प्राचीन समय में इनको पढ़ने के बाद वेदों को पढ़ा जाता था। प्राचीन काल के [[वशिष्ठ|, वशिष्ठ]], [[शक्ति]], [[पराशर]], [[वेदव्यास]], [[जैमिनि|जैमिनी]], [[याज्ञवल्क्य]], [[कात्यायन]] इत्यादि ऋषियों को वेदों के अच्छे ज्ञाता माना जाता है। मध्यकाल में रचित व्याख्याओं में [[सायण]] का रचा चतुर्वेदभाष्य "माधवीय वेदार्थदीपिका" बहुत मान्य है। यूरोप के विद्वानों का वेदों के बारे में मत [[हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार|हिन्द-आर्य जाति]] के इतिहास की जिज्ञासा से प्रेरित रही है। अतः वे इसमें लोगों, जगहों, पहाड़ों, नदियों के नाम ढूँढते रहते हैं - लेकिन ये भारतीय परंपरा और गुरुओं की शिक्षाओं से मेल नहीं खाता। अठारहवीं सदी उपरांत यूरोपियनों के वेदों और उपनिषदों में रूचि आने के बाद भी इनके अर्थों पर विद्वानों में असहमति बनी रही है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/वेद" से प्राप्त